RTI ऑनलाइन पोर्टल से सार्वजनिक जानकारी गायब | 28 Aug 2023
स्रोत: द हिंदू
प्रिलिम्स के लिये:आरटीआई अधिनियम, संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a), केंद्रीय सूचना आयोग, सार्वजनिक सूचना कार्यालय, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी मेन्स के लिये:भारत में आरटीआई से जुड़े मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार के आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल के समक्ष एक विकट स्थिति उत्पन्न हुई है, इस पोर्टल पर पिछले आवेदनों और प्रतिक्रियाओं सहित बड़ी मात्रा में सार्वजनिक जानकारी गायब होने की खबरें आ रही हैं।
- गायब हुए अभिलेखीय डेटा की पुनर्प्राप्ति के उद्देश्य से पोर्टल के रख-रखाव का कार्य चल रहा है। यह घटना आरटीआई अधिनियम के ढाँचे के भीतर जवाबदेही बनाए रखने से जुड़ी चुनौतियों को रेखांकित करती है।
सूचना का अधिकार अधिनियम:
- परिचय:
- सूचना का अधिकार अधिनियम एक विधायी ढाँचा है जो भारतीय नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों के पास उपलब्ध जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। वर्ष 2005 में अधिनियमित इस अधिनियम का उद्देश्य सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी को बढ़ावा देना है।
- इसने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम 2002 को प्रतिस्थापित किया है।
- इससे पहले राजस्थान में मज़दूर किसान शक्ति संगठन, जो कि एक गैर सरकारी संगठन था, ने राज्य सरकार को वर्ष 1997 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित करने की पहल की थी।
- आरटीआई अधिनियम की धारा 22 के अनुसार, इस अधिनियम के प्रावधान वर्ष 1923 के आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, मौजूदा कानूनों अथवा इस अधिनियम के अलावा अन्य कानूनों के माध्यम से स्थापित किसी भी समझौते के साथ किसी भी विरोधाभास के बावजूद प्रभावी होंगे।
- सूचना का अधिकार अधिनियम एक विधायी ढाँचा है जो भारतीय नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों के पास उपलब्ध जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। वर्ष 2005 में अधिनियमित इस अधिनियम का उद्देश्य सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी को बढ़ावा देना है।
- संवैधानिक समर्थन:
- आरटीआई अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) से लिया गया है, यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार माना जाएगा।
- आरटीआई अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) से लिया गया है, यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- समय-सीमा:
- सामान्य तौर पर किसी आवेदक को सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा आवेदन प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर सूचना प्रदान की जानी होती है।
- यदि मांगी गई जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वतंत्रता से संबंधित है, तो उससे संबंधित जानकारी आवेदक को 48 घंटों के भीतर प्रदान किये जाने का प्रावधान है।
- यदि आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के माध्यम से भेजा गया है या यह किसी गलत लोक प्राधिकारी को भेजा गया है, तो तीस दिन या 48 घंटे की अवधि में मामले के अनुरूप उसकी कार्यवाही में अतिरिक्त पाँच दिन जोड़ दिये जाएंगे।
- मुक्त जानकारी (Exempted Information):
- RTI अधिनियम की धारा 8 (1) इस बारे में बात करती है कि किन सूचनाओं को RTI के तहत छूट दी गई है, इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, राज्य के रणनीतिक मामले, विदेशी संबंध, अपराधों के लिये उकसाना आदि से संबंधित जानकारी शामिल है।
- कार्यान्वयन:
- जन सूचना कार्यालय (PIO) RTI अधिनियम के कार्यान्वयन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- PIO किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के भीतर एक नामित अधिकारी है जो जानकारी मांगने वाले नागरिकों और उस जानकारी को रखने वाले सरकारी संगठन के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है।
- जन सूचना कार्यालय (PIO) RTI अधिनियम के कार्यान्वयन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- अपीलीय प्राधिकारी और तंत्र:
- यदि किसी नागरिक के RTI अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जाता है अथवा वह PIO द्वारा दिये गए जवाब से संतुष्ट नहीं है तो उसी सार्वजनिक प्राधिकरण के भीतर प्रथम अपीलीय प्राधिकरण में अपील की जा सकती है।
- यदि नागरिक अभी भी प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट है तो वह केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दायर कर सकता है।
आरटीआई अधिनियम में हुए हालिया संशोधन:
- वर्ष 2023 में हुए संशोधन: हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 की धारा 44 (3) द्वारा आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (j) में संशोधन किया गया है। इससे अब सभी व्यक्तिगत जानकारी का प्रकटीकरण अनिवार्य नहीं रह गया है और पहले से स्थापित अपवादों को हटा दिया गया जो इस प्रकार की सूचना जारी करने की अनुमति देते थे ।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: इसके द्वारा केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल तथा शर्तों में बदलाव किया गया।
- सूचना आयुक्तों का कार्यकाल: पूर्व निर्धारित 5-वर्षीय कार्यकाल के विपरीत, उनका कार्यकाल अब केंद्र सरकार के निर्देशों (वर्तमान में 3 वर्ष की अवधि के लिये निर्धारित) द्वारा शासित होता है।
- वेतन का निर्धारण: इसमें यह भी प्रावधान है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएँगी।
- वेतन में कटौती: वर्ष 2019 के अधिनियम द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के समय पिछली सरकारी सेवा के लिये पेंशन, या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ में कटौती के प्रावधानों को हटा दिया।
भारत में RTI से संबंधित मुद्दे:
- लंबित मामले: वर्तमान में पूरे भारत में विभिन्न सूचना आयोगों के पास 3 लाख से अधिक शिकायतें अथवा अपीलें लंबित हैं।
- इसके अलावा सूचना आयुक्तों (ICs) और राज्य सूचना आयुक्तों (SICs) के काफी पद रिक्त हैं।
- RTI अधिनियम का दुरुपयोग: कुछ लोग सार्वजनिक हित के बजाय RTI अधिनियम का उपयोग तुच्छ, कष्टप्रद या व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिये करते हैं। इससे सार्वजनिक प्राधिकरणों के समय और संसाधनों की बर्बादी होती है तथा उनकी कार्य कुशलता में बाधा आती है।
- अत्यधिक छूट: अधिनियम संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के लिये छूट प्रदान करता है। हालाँकि ऐसे उदाहरण हैं जहाँ जानकारी के लिये वैध अनुरोधों को अस्वीकार करने के लिये इन छूटों का दुरुपयोग किया गया है।
- सूचना का अधिकार बनाम निजता का अधिकार कानून: RTI अधिनियम और उभरते डेटा संरक्षण एवं गोपनीयता कानूनों के बीच तनाव इन अधिकारों के पदानुक्रम तथा उनके बीच संभावित संघर्षों के बारे में सवाल उठाता है।
आगे की राह
- ओपन डेटा इकोसिस्टम: एक व्यापक ओपन डेटा इकोसिस्टम स्थापित करने की आवश्यकता है जहाँ प्रासंगिक सरकारी डेटा जनता के लिये पठनीय प्रारूप में उपलब्ध हो।
- इससे RTI मामलों में कमी आ सकती है और नागरिकों, शोधकर्ताओं तथा पत्रकारों को डेटा तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुँचने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
- डेटा सुरक्षा के लिये ब्लॉकचेन: RTI से संबंधित सरकारी कार्यों और निर्णयों का एक अपरिवर्तनीय एवं पारदर्शी रिकॉर्ड बनाने, जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा डेटा छेड़छाड़ को रोकने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक के उपयोग का पता लगाने की आवश्यकता है।
- प्राधिकारियों के लिये पारदर्शिता सूचकांक: एक पारदर्शिता सूचकांक विकसित करने की आवश्यकता है जो RTI अनुरोधों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर सार्वजनिक प्राधिकारियों का मूल्यांकन करता हो, ताकि बेहतर जवाबदेही के लिये स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिल सके।
- AI-सहायता प्राप्त प्रतिक्रियाएँ: RTI अनुरोधों को वर्गीकृत करने और संसाधित करने के लिये AI-संचालित प्रणालियों को लागू करने की आवश्यकता है, जिससे सटीक सूचना पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए प्रतिक्रिया प्रक्रिया अधिक कुशल बनाया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न .”सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018) |