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सामाजिक न्याय

मध्याह्न भोजन योजना पर नया अध्ययन

  • 19 Jul 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना, कुपोषण

मेन्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में भारत की मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme) के अंतर-पीढ़ीगत लाभों (Intergenerational Benefits) पर एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु: 

 अध्ययन के बारे में:

  • अध्ययन में देखा गया कि मध्याह्न भोजन का प्रभाव लंबे समय तक होता है। मध्याह्न भोजन योजना के तहत लाभार्थी बच्चों का बेहतर विकास हुआ है।
  • इस अध्ययन हेतु बच्चों के जन्म वर्ष और 23 वर्षों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ माताओं और उनके बच्चों के समूह पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि डेटा का इस्तेमाल किया गया। 
  • यह सामूहिक आहार कार्यक्रम के प्रभावों का अपनी तरह का पहला अंतर-पीढ़ीगत विश्लेषण है।

लंबाई-से-आयु तक का अनुपात:

  • जिन लड़कियों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया गया, उनकी लंबाई-उम्र का अनुपात उन बच्चों की तुलना में अधिक था, जिन लड़कियों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त में भोजन प्राप्त नहीं हुआ।

मध्याह्न भोजन और स्टंटिंग में संबंध:

  • जिन क्षेत्रों में  वर्ष 2005 के दौरान मध्याह्न भोजन योजना लागू की गई थी वहाँ वर्ष 2016 तक स्टंटिंग की व्यापकता में काफी कमी आई।
  • अगली पीढ़ी में जहाँ  महिलाओं की शिक्षा, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर उपयोग किया गया वहाँ निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर में मध्याह्न भोजन और स्टंटिंग की कमी के बीच मज़बूत संबंध  थे।

रुकावट/अवरोध:

  • स्कूली शिक्षा और मध्याह्न भोजन योजना में रुकावट का दीर्घकालिक प्रभाव अगली पीढ़ी के पोषण स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचा सकता है।

नोट:

  • कुपोषण से तात्पर्य किसी व्यक्ति के ऊर्जा और/या पोषक तत्त्वों के सेवन में कमी, अधिकता या असंतुलन से है। 
  • कुपोषण शब्द में दो व्यापक समूह एवं परिस्थितियाँ शामिल हैं:
    • प्रथम 'अल्पपोषण'(Undernutrition) जिसमें स्टंटिंग (Stunting), निर्बलता (Wasting) कम वज़न (Underweight) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी या अपर्याप्तता (महत्त्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) शामिल है।
    • द्वितीय, ‘छिपी हुई भूख’ (Hidden Hunger) जो कि विटामिन और खनिजों की कमी है। यह स्थिति तब होती है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। भोजन में विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होती है जो शारीरिक वृद्धि एवं विकास हेतु आवश्यक होते हैं।

मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme)

परिचय:

  • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।
  • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।

उद्देश्य:

  • भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना।

गुणवत्ता की जाँच:

  • एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है।

खाद्य सुरक्षा:

  • यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।

विनियमन:

  • राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।

पोषण स्तर:

  • प्राथमिक (I-V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन। 

कवरेज़:

  • सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसे और मकतब जो सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं।

मुद्दे और चुनौतियाँ:

  • भ्रष्ट आचरण:
    •  नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं।
  • जाति पूर्वाग्रह और भेदभाव: 
    • भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है।
  • कोविड-19: 
    • कोविड -19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है।
    • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने मध्याह्न भोजन (Mid-Day Meals) सहित कई आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बाधित कर दिया है।
    • हालाँकि इसके बजाय परिवारों को सूखा खाद्यान्न (Dry foodgrains) या नकद हस्तांतरण प्रदान किया जाता है, साथ ही भोजन एवं शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि इसका स्कूल परिसर में गर्म पके हुए भोजन के समान प्रभाव नहीं होगा, विशेष रूप से उन लड़कियों के लिये जो घर पर अधिक भेदभाव का सामना करती हैं तथा अधिकांश को स्कूल बंद होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा।
  • कुपोषण का खतरा: 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है।
    • भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का केंद्र है।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020: 
    •  ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (GHI)- 2020  

आगे की राह

  • उन महिलाओं और युवतियों के माँ बनने के वर्षों पहले मातृत्व क्षमता और शिक्षा या जागरूकता में सुधार के उपायों को लागू किया जाना चाहिये।
    • बौनापन (Stunting) के खिलाफ लड़ाई में अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों ने लंबे समय से तर्क दिया है कि मातृत्त्व स्वास्थ्य और कल्याण उनकी संतानों में बौनेपन को कम करने की कुंजी है।
  • अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं,  उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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