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जैव विविधता और पर्यावरण

मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक

  • 30 Mar 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोप्लास्टिक।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण एवं गिरावट।

चर्चा में क्यों?

नीदरलैंड में शोधकर्त्ताओं के एक समूह द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, पहली बार मानव रक्त में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ नामक प्लास्टिक के छोटे कणों का पता चला है।

  • शोधकर्त्ताओं ने मौजूदा तकनीकों को उन कणों का पता लगाने एवं उनका विश्लेषण करने के लिये अनुकूलित किया, जो आकार में 700 नैनोमीटर जितने छोटे थे।
  • उन्होंने पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (PET) और पॉलीइथाइलीन सहित पाँच सामान्य प्लास्टिक श्रेणियों को लक्षित किया।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?

  • परिचय:
    • ये पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक कण होते हैं जो कि प्रायः गहनों में इस्तेमाल होने वाले मानक मोती की तुलना में भी छोटे होते हैं। ये हमारे समुद्र एवं जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकते हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक की दो श्रेणियाँ हैं: प्राथमिक एवं द्वितीयक।
  • वर्गीकरण:
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: वे छोटे कण जिन्हें व्यावसायिक उपयोग और माइक्रोफाइबर कपड़ों एवं अन्य वस्त्रों में प्रयोग के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
      • उदाहरण के लिये व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों एवं प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: ये पानी की बोतलों जैसे- बड़े प्लास्टिक के टूटने से बनते हैं।
      • यह टूटना पर्यावरणीय कारकों, मुख्य रूप से सूर्य के विकिरण एवं समुद्र की लहरों के संपर्क में आने के कारण होता है।

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • वैज्ञानिकों ने 22 रक्तदाताओं के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया और 17 नमूनों में प्लास्टिक के कण पाए।
    • आधे से अधिक नमूनों में PET प्लास्टिक मौजूद था, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर पेयजल की बोतलों में किया जाता है।
    • एक-तिहाई में पॉलीस्टाइनिन मौजूद था, जिसका उपयोग भोजन एवं अन्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिये किया जाता है।
    • एक-चौथाई रक्त के नमूनों में पॉलीइथाइलीन मौजूद था, जिससे प्लास्टिक वाहक बैग बनाए जाते हैं।
  • यह अपनी तरह का पहला संकेत है कि हमारे रक्त में बहुलक कण मौजूद हैं।
    • पूर्ववर्ती अध्ययनों से पता चलता है कि वयस्कों की तुलना में शिशुओं के मल में माइक्रोप्लास्टिक 10 गुना अधिक था और प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग से बच्चे एक दिन में लाखों माइक्रोप्लास्टिक कण निगल रहे हैं।
  • ये कण पूरे शरीर में फैल जाते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में लंबे समय तक मौजूद रह सकते हैं। स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इनके प्रभावों के बारे में अभी तक पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • अध्ययन का परिणाम इस परिकल्पना का समर्थन करता है कि इन प्लास्टिक कणों के मानव संपर्क के परिणामस्वरूप रक्तप्रवाह में कणों का अवशोषण होता है, लेकिन जोखिमकारी प्रभावों का आकलन करने के लिये और अध्ययन की आवश्यकता है।

माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित चिंताएँ:

  • माइक्रोप्लास्टिक, लाल रक्त कोशिकाओं की बाहरी झिल्लियों से चिपक सकता है और ऑक्सीजन के परिवहन की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • ये कण गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में भी पाए गए हैं, वहीं चूहों में माइक्रोप्लास्टिक भ्रूण के फेफड़ों से दिल, दिमाग और अन्य अंगों में तेज़ी से फैलते हैं।
  • माइक्रोप्लास्टिक मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं और इसके कारण एक वर्ष में लाखों लोगों की असमय मौत हो जाती है।
    • सामान्य तौर पर बच्चे इन कणों के प्रति अधिक सुभेद्य होते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक से निपटने हेतु पहलें:

  • सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उन्मूलन: वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली में इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने के साथ वर्ष 2022 तक देश के अन्य सभी हिस्सों में भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया था।
  • महत्त्वपूर्ण नियम: प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में कहा गया है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रह, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना हेतु प्रत्येक स्थानीय निकाय को उचित कदम उठाना चाहिये।
  • अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
    • यह हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने का प्रयास करता है।
  • समुद्री कचरे पर वैश्विक भागीदारी (Global Partnership on Marine Litter- GPML): मनीला घोषणा में उल्लिखित एक अनुरोध के प्रत्युत्तर में GMPL को वर्ष 2012 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  • लंदन कन्वेंशन, 1972: डंपिंग वेस्ट और अन्य मैटर द्वारा समुद्री प्रदूषण की रोकथाम को लेकर वर्ष 1972 में आयोजित कन्वेंशन पर समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों को नियंत्रित करने तथा अपशिष्ट पदार्थों के समुद्र में डंपिंग के नियमन के माध्यम से समुद्र के प्रदूषण को रोकने के लिये हस्ताक्षर किये गए थे।
  • प्लास्टिक समझौते: प्लास्टिक पैक्ट्स सभी प्रारूपों और उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलने हेतु व्यवसाय आधारित पहल है।

आगे की राह

  • डिग्रेडेशन मैकेनिज़्म का संयोजन: माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावी और पूर्ण अपघटन के लिये फोटोडिग्रेडेशन एवं बायोलॉजिकल डिग्रेडेशन सिस्टम के संयोजन का सुझाव दिया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिये यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते पर आधारित एक नई वैश्विक संधि की मांग करता है।
    • प्लास्टिक संबंधी वैश्विक समस्या का समाधान तभी होगा जब सभी देश अपने-अपने तटों पर माइक्रोप्लास्टिक की निगरानी करने का निर्णय लें और केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग के आदेश को लागू करें।
  • प्लास्टिक की खपत को कम करना: माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के स्तर में कमी सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा प्लास्टिक की खपत को कम किया जा सकता है।
    • समुद्र तटों और महासागरों में कूड़े की मात्रा को कम करने के लिये सरकार, उद्योग और नागरिक समाज को मिलकर काम करना चाहिये।
    • व्यक्तिगत स्तर पर पहल: व्यक्तिगत पहल जैसे कि शून्य-अपशिष्ट, डिस्पोज़ेबल और खुद के बर्तनों का उपयोग करना, बोतलबंद पानी तथा प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग न करना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जिन्हें प्रत्येक नागरिक द्वारा माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये उठाया जा  सकता है।
  • पुनर्चक्रण परियोजनाओं के लिये आर्थिक सहायता: कर छूट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट फंड, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित आर्थिक समर्थन और एकल-उपयोग वाली वस्तुओं की रिसाइक्लिंग तथा कचरे को संसाधन में परिवर्तित करने वाली परियोजनाओं को सहायता दी जानी चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त होने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है?

(a) ये समुद्री पारितंत्र के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्र में सफल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)

स्रोत: द हिंदू

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