जैव विविधता और पर्यावरण
अंटार्कटिका की बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स
- 13 Jun 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:माइक्रोप्लास्टिक्स, अंटार्कटिका, ग्लोबल वार्मिंग। मेन्स के लिये:अंटार्कटिका में माइक्रोप्लास्टिक खोजने के निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों ने पहली बार अंटार्कटिका में ताजा गिरी हुई बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक (चावल के दाने से छोटे प्लास्टिक के टुकड़े) पाए गए हैं, जो बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाकर जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।
- पिछले अध्ययनों में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जीवों में विकास, प्रजनन और सामान्य जैविक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ इनका मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- अंटार्कटिका में ताजा गिरी हुई बर्फ मेंं माइक्रोप्लास्टिक्स की खोज दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी प्लास्टिक प्रदूषण की सीमा को उजागर करती है।
खोज के निष्कर्ष:
- शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिका में रॉस आइस शेल्फ में 19 विभिन्न स्थलों से बर्फ के नमूने एकत्र किये और उन सभी में प्लास्टिक के कणों की खोज की गई।
- 13 अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक पाए गए, जिनमें सबसे आम पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर शीतल पेय की बोतलें और कपड़े बनाने के लिये किया जाता है। माइक्रोप्लास्टिक के संभावित स्रोतों की जाँच की गई।
- प्रति लीटर पिघली हुई बर्फ में औसतन 29 माइक्रोप्लास्टिक कण होते हैं, जो कि आसपास के रॉस सागर और अंटार्कटिक समुद्री बर्फ में पहले बताई गई समुद्री सांद्रता से अधिक मात्रा में पाए गए हैं ।
- माइक्रोप्लास्टिक्स ने वायु के माध्यम से हज़ारों किलोमीटर की यात्रा की हो, हालांँकि यह संभावना है कि अंटार्कटिका में मनुष्यों की उपस्थिति ने माइक्रोप्लास्टिक 'पदचिह्न' स्थापित किया है।
खोज का महत्त्व:
- स्थानीय और व्यापक दोनों प्रभाव:
- माइक्रोप्लास्टिक में भारी धातु, शैवाल जैसे हानिकारक पदार्थ उनकी सतहों पर चिपक सकते हैं।
- अर्थात् ये हानिकारक प्रजातियों के लिये मार्ग प्रदान कर सकते हैं अन्यथा दूरस्थ और संवेदनशील क्षेत्रों तक नहीं पहुंँच पाएंगे।
- मनुष्य के अंदर वायु, जल और भोजन के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक जाते हैै। मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के उच्च स्तर में हानिकारक प्रभाव पैदा करने की क्षमता होती है, जिसमें कोशिकाओ की मृत्यु एवं एलर्जी शामिल हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग और अन्य आपदाओं का कारक:
- माइक्रोप्लास्टिक भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को बढ़ा सकता है। दुनिया भर में परमाफ्रास्ट, हिमशिखर और ग्लेशियर पहले से ही तेज़ी से पिघल रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि इन स्थानों पर जमा गहरे रंग के माइक्रोप्लास्टिक सूर्य की रोशनी को अवशोषित करके तथा स्थानीय ताप वृद्धि कर स्थिति को बदतर बना सकते हैं।
- स्वच्छ स्नोपैक, परमाफ्रास्ट और ग्लेशियर सूर्य के प्रकाश को बहुत अधिक प्रतिबिंबित कर सकते हैं, लेकिन अन्य प्रदूषणकारी कण जैसे कि ब्लैक कार्बन, हिमालय के हिमक्षेत्रों और ग्लेशियरों पर पाए गए हैं अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि वे बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाते हैं।
- दुनिया भर में पर्वत श्रृंखलाओं पर तेज़ी से पिघलने वाले ग्लेशियर खतरनाक होते जा रहे हैं, जिससे भूस्खलन और हिमस्खलन हो रहा है एवं हिमनद झीलें अपने किनारों को तोड़ रही हैं।
- ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलनेऔर निवर्तन से दुनिया भर के पर्वतीय क्षेत्रों में जल आपूर्ति और कृषि के लिये भी खतरा पैदा हो गया है।
माइक्रोप्लास्टिक्स :
- परिचय:
- माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के वे कण होते हैं, जिनका व्यास 5 मिमी. से कम होता है।
- इसमें वे छोटे कण होते हैं जिन्हें व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किया जाता है और माइक्रोफाइबर कपड़ों और अन्य वस्त्रों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है, जैसे व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों और प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स
- सौंदर्य प्रसाधनों और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों के अलावा, अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक्स प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के खंडन के परिणाम होते हैं जिन्हें पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है साथ ही ये सभी जैव अपघटनीय पदार्थों की श्रेणी मे आते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक कछुओं और पक्षियों सहित जलीय जीवों को नुकसान पहुंँचाता है। यह पाचन तंत्र को अवरुद्ध करता है, और खाने के व्यवहार को बदल देता है। इसके बाद, यह समुद्री जानवरों में वृद्धि और प्रजनन उत्पादन को कम कर देता है।
- भारत द्वारा शुरू की गई पहलें:
- एकल-उपयोग प्लास्टिक का उन्मूलन: वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने दिल्ली शहरी क्षेत्र में तत्काल प्रतिबंध के साथ वर्ष 2022 तक देश में सभी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया।
- महत्त्वपूर्ण नियम: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में कहा गया है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान हेतु बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिये प्रत्येक स्थानीय निकाय को ज़िम्मेदार होना चाहिये।
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
- यह हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने का प्रयास करता है।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR):
- EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों को उपभोक्ता के बाद के उत्पादों के उपचार या निपटान करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी वित्तीय और/या भौतिक रूप में दी जाती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: पर्यावरण में छोड़े जाने वाले 'माइक्रोबीड्स' को लेकर इतनी चिंता क्यों है? (2019) (a) उन्हें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है। उत्तर: (a) |