COVID-19 के कारण मनरेगा के तहत रोज़गार में गिरावट | 14 Apr 2020
प्रीलिम्स के लिये:मनरेगा, COVID-19 मेन्स के लिये:ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, मनरेगा, COVID-19 से निपटने हेतु भारत सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण देश में ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’ (मनरेगा) के तहत अप्रैल 2020 में रोज़गार पाने वाले लोगों की संख्या पिछले महीनों की तुलना में घटकर मात्र 1% रह गई है।
मुख्य बिंदु:
- मनरेगा के तहत रोज़गार में गिरावट को देखते हुए कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में यह मांग करते हुए एक अपील दायर की है कि सरकार को भी अन्य नियोक्ताओं/संस्थाओं की तरह ही उच्चतम न्यायलय के आदेश का पालन करते हुए लॉकडाउन के दौरान सभी मनरेगा कार्ड धारकों को पूर्ण मज़दूरी देनी चाहिये।
- मनरेगा की वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 में अभी तक मनरेगा के तहत देशभर में मात्र 1.9 लाख परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया है।
- वेबसाइट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन लागू होने से पहले मार्च 2020 में देशभर में मनरेगा के तहत लगभग 1.6 करोड़ परिवारों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया जबकि फरवरी 2020 में मनरेगा के तहत रोज़गार प्राप्त करने वाले परिवारों की संख्या लगभग 1.8 करोड़ थी।
- अप्रैल 2020 में देश में इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज़्यादा (70,000 से अधिक) परिवारों को रोज़गार प्रदान किया गया।
- इस दौरान मनरेगा के तहत सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा, आंध्र प्रदेश में अप्रैल 2020 में मनरेगा के तहत रोज़गार पाने वालों की संख्या 53,000 से अधिक रही।
ग्रामीण भारत के विकास में मनरेगा की भूमिका:
- वर्ष 2005 में इस योजना के लागू होने के बाद से ही इस योजना का ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास के साथ मज़दूरों के अधिकारों की जागरूकता, कार्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि आदि के द्वारा ग्रामीण विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- इस योजना के तहत आवेदन के 15 दिनों के भीतर ही आवेदक को रोज़गार उपलब्ध कराया जाता है, 15 दिनों के भीतर रोज़गार न मिलने की स्थिति में आवेदक को भत्ता दिये जाने का प्रावधान है।
- इस योजना के तहत रोज़गार प्राप्त करने वालों में एक-तिहाई (1/3) महिलाओं का होना अनिवार्य है, अतः इसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के माध्यम से समाज में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में सहायता मिली है।
- इस योजना के तहत आवेदक को स्थनीय स्तर (5 किमी. की सीमा में) पर रोज़गार उपलब्ध करा कर ऐसे बहुत से लोगों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने में सहायता मिली है जिनके लिये किन्हीं कारणों से रोज़गार हेतु शहरों में पलायन करना संभव नहीं था।
- ग्रामीण स्तर पर आधारिक संरचना के विकास में भी इस योजना का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
ग्रामीण रोज़गार पर COVID-19 का प्रभाव:
- देश में COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू लॉकडाउन के तहत अन्य उद्योगों/व्यवसायों से अलग मनरेगा के लिये कोई विशेष छूट प्रदान नहीं की गई थी।
- हालाँकि राज्यों को सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) को बनाए रखते हुए योजना को चालू रखने के निर्देश दिये गए थे।
- वर्तमान में मनरेगा के तहत देश के विभिन्न राज्यों में प्रतिदिन की मज़दूरी औसतन 209 रुपए और वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी के साथ यह योजना गरीबी में रह रही एक बड़ी आबादी के लिये आजीविका का मुख्य साधन तथा ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ (Backbone) मानी जाती है।
- वर्तमान में इस योजना के तहत 7.6 करोड़ परिवारों को जॉब कार्ड प्रदान किया गया है और पिछले वर्ष लगभग 5.5 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत रोज़गार उपलब्ध कराया गया था।
- लॉकडाउन के कारण मंडियों के बंद होने और कृषि उपज की आपूर्ति बाधित होने का प्रभाव इससे जुड़े रोज़गारों पर भी पड़ा है।
- COVID-19 के कारण उद्योगों के बंद होने से बड़ी संख्या में भारत के विभिन्न शहरों से गाँवों की तरफ मज़दूरों का पलायन हुआ है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी और कामगारों की अधिकता तथा प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण असंगठित क्षेत्र (दिहाड़ी, कृषि मज़दूर आदि) की मज़दूरी में कमी आई है।
- शहरों से होने वाले पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरों की वृद्धि के बीच मनरेगा जैसी योजनाओं के अंतर्गत रोज़गार की कमी होना एक बड़ी चिंता का विषय है।
- मार्च 2020 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ राहत पैकेज जारी करते समय मनरेगा की मज़दूरी में 20 रुपए प्रतिदिन की वृद्धि करने की घोषणा की थी, परंतु COVID-19 के कारण इस योजना के तहत रोज़गार न उपलब्ध होने की स्थिति में मज़दूरों को इस वृद्धि का लाभ नहीं मिल पाएगा।
- वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में भले ही COVID-19 के मामले अधिक न हों परंतु यदि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अस्थिरता पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में यह एक बड़ी समस्या बन सकती है।
समाधान:
- भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल, 2020 को COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशव्यापी लॉकडाउन को 3 मई, 2020 तक पुनः बढ़ा दिया गया है, ऐसे में आर्थिक सहायता के साथ ही अन्य प्रयासों से सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
- जिन क्षेत्रों में COVID-19 के कारण रोज़गार उपलब्ध कराना संभव न हो वहाँ मनरेगा कार्ड धारकों को बेरोज़गारी भत्ता उपलब्ध कराया जाना चाहिये (उदाहरण- हाल ही में ओडिशा सरकार ने मनरेगा कार्ड धारकों को बेरोज़गारी भत्ता देने के लिये केंद्र सरकार की अनुमति मांगी थी।)
- मनरेगा योजना की एक और बड़ी समस्या समय पर मज़दूरी का भुगतान न होना है, ऐसे में सरकार को सभी बकाया मज़दूरियों का समय पर भुगतान किया जाना चाहिये।
- मनरेगा के तहत महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि और इसके तहत कौशल विकास के प्रयासों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- अन्य क्षेत्रों और रोज़गार के अवसरों को मनरेगा के तहत शामिल किया जाना चाहिये जिससे अधिक-से-अधिक लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराया जा सके।