भारत में बेरोज़गारी का मापन | 08 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी की माप, बेरोज़गारी दर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), विश्व बैंक, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO)

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी की माप, भारत में बेरोज़गारी के कारक

स्रोत : द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2021-22 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, वर्ष 2021-22 में भारत की बेरोज़गारी दर गिरकर 4.1% हो गई, लेकिन यह अमेरिका से अधिक (3.5% और 3.7% के बीच उतार-चढ़ाव) है , साथ ही यह दोनों देशों के बीच विपरीत आर्थिक परिदृश्य को उजागर करती है। इस प्रकार बेरोज़गारी को मापने के लिये अलग-अलग तरीके हैं।

बेरोज़गारी: 

  • ILO की परिभाषा: 
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, बेरोज़गारी में रोज़गार से बाहर होना, काम के लिये उपलब्ध होना और सक्रिय रूप से रोज़गार की खोज करना शामिल है।
    • एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि सक्रिय रूप से काम की खोज नहीं करने वालों को बेरोज़गार नहीं माना जाता है।
  • श्रम बल:
    • इसमें नौकरीपेशा और बेरोज़गार शामिल हैं। जो लोग इन श्रेणियों में नहीं हैं (उदाहरण के लिये छात्र, अवैतनिक घरेलू कामगार) उन्हें श्रम बल से बाहर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • बेरोज़गारी दर की गणना बेरोज़गारों और श्रम शक्ति के अनुपात के रूप में की जाती है।
      • यदि कोई अर्थव्यवस्था पर्याप्त नौकरियाँ नहीं उत्पन्न कर रही है अथवा यदि लोग काम की तलाश न करने का निर्णय लेते हैं, तो बेरोज़गारी दर गिर सकती है।
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
      • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार में शामिल किया जाता है।
      •  यह मुख्य रूप से भारत के कृषि तथा असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी:
      • यह वह बेरोज़गारी है जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान होती है।
      • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर शायद ही कभी काम होता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी:
      • यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों तथा श्रमिकों के कौशल के मध्य असमानता से उत्पन्न होने वाली बेरोज़गारी की एक श्रेणी है। 
      • भारत में कई लोगों को अपेक्षित कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिल पाती है तथा शिक्षा का स्तर निम्न होने के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी:
      • यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है तथा आर्थिक विकास के साथ इसमें गिरावट आती है।
      • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
    • तकनीकी बेरोज़गारी:
      • यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों में हुई कमी को दर्शाती है।
      • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों में पूर्वानुमान लगाया था कि भारत में स्वचालन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
    • प्रतिरोधात्मक रोज़गार:
      • प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी नौकरियों के बीच के समय अंतराल को संदर्भित करती है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है।
    • असुरक्षित रोज़गार:
      • इसका अर्थ है, लोग बिना किसी उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार उन्हें कोई कानूनी सुरक्षा नहीं मिल रही है।
      • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता है।
      • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।

भारत में बेरोज़गारी का निर्धारण: 

  • NSSO वर्गीकरण विधियाँ:
    • सामान्य गतिविधि और सहायक स्थिति (UPSS): इस गतिविधि का दर्जा उस गतिविधि के आधार पर निर्धारित किया जाता है जिस पर किसी ने पिछले वर्ष सबसे अधिक समय बिताया था।
      • कम-से-कम 30 दिनों तक चलने वाली सहायक भूमिकाओं को भी रोज़गार माना जाता है। यह विधि बेरोज़गारी दर को कम करती है।
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS):
      • एक सप्ताह की छोटी संदर्भ अवधि अपनाई जाती है। ऐसे व्यक्तियों जिन्होंने पिछले सात दिनों में कम-से-कम एक दिन एक घंटा काम किया है, उन्हें नियोजित माना जाता है।
      • छोटी संदर्भ अवधि के कारण CWS के परिणामस्वरूप प्रायः UPSS की तुलना में बेरोज़गारी दर अधिक होती है।

टिप्पणी: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) को वर्ष 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) बनाने के लिये केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के साथ विलय कर दिया गया।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार बेरोज़गारी दर-

भारत में बेरोज़गारी को मापने में जटिलताएँ:

  • सामाजिक मानदंड के कारण उत्पन्न बाधाएँ:
    • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में काम तलाशने के निर्णयों पर सामाजिक मानदंड का काफी प्रभाव पड़ता है, जिससे श्रम बल भागीदारी दर में भिन्नता आती है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2009-10 के NSSO सर्वेक्षण से पता चलता है कि घरेलू काम में लगी 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की 33.3% ग्रामीण महिलाओं तथा 27.2% शहरी महिलाओं ने बताया कि वे काम करने को तब तैयार होंगी यदि काम उनके घर के आस-पास उपलब्ध हो, लेकिन उन्हें बेरोज़गारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि वे सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश में नहीं हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की जटिलता: 
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत में रोज़गार की अनौपचारिक प्रकृति बेरोज़गारी माप को और जटिल बनाती है।
      • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत काफी लोग साल भर विभिन्न प्रकार के कामों में लिप्त होते है, अर्थात् वे एक ही काम पूरे साल भर नहीं करते।
    • लोग अक्सर पूरे वर्ष विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, जिससे उन्हें नियोजित अथवा बेरोज़गार के रूप में वर्गीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
      • ऐसे में हो सकता है कि कोई व्यक्ति इस सप्ताह बेरोज़गार हो लेकिन हो सकता है कि उसने पिछले महीने एक आकस्मिक मज़दूर के रूप में और वर्ष के अधिकांश समय एक किसान के रूप में काम किया हो।
  • ग्रामीण बनाम शहरी असमानताएँ: 
    • UPSS में रोज़गार की कम दर बताती है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर आमतौर पर कम क्यों है।
    • कृषि अर्थव्यवस्थाओं में पारिवारिक खेतों अथवा आकस्मिक कृषि कार्यों तक पहुँच से कुछ काम मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

भारत में बेरोज़गारी के प्रमुख कारण

  • सामाजिक कारण:
    • भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है। कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य करना वर्जित है।
    • बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में ऐसे कई व्यक्ति मिल जाएंगे जो कोई कार्य नहीं करते और परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
  • जनसंख्या की तीव्र वृद्धि:
    • भारत में जनसंख्या में लगातार वृद्धि एक बड़ी समस्या रही है।
  • कृषि का प्रभुत्व:
    • भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
      • हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
      • साथ ही यह मौसमी बेरोज़गारी में भी योगदान करती है।
  • कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन:
    • औद्योगिक विकास का कुटीर एवं लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
    • कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने लगा और कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
  • श्रम की गतिहीनता:
    • भारत में श्रमिकों की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण व्यक्ति रोज़गार के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते।
    • भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी कम गतिशीलता के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • शिक्षा प्रणाली में दोष:
    • पूंजीवादी विश्व में रोज़गार अत्यधिक विशिष्ट हो गया है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली रोज़गार के लिये आवश्यक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
    • इस प्रकार कई व्यक्ति जो कार्य करने के इच्छुक हैं, कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।

आगे की राह 

  • भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बेरोज़गारी माप में अनौपचारिक रोज़गार बाज़ार, श्रम बल भागीदारी में भिन्नता और अलग-अलग मानदंडों से उत्पन्न जटिल चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • बेरोज़गारी को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और सूचित नीतिगत निर्णय लेने के लिये इन जटिलताओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि:  (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)