विद्युत का बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण | 20 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:विद्युत, विद्युत अधिनियम 2003, एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति, एक मूल्य, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC), विद्युत क्षेत्र डिस्कॉम का बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) मेन्स के लिये:विद्युत क्षेत्र में सुधार, संबद्ध चुनौतियाँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) तंत्र में लगभग 1,400 बिलियन यूनिट की संपूर्ण वार्षिक विद्युत खपत को प्रेषित करने के लिये केंद्रीकृत शेड्यूलिंग की परिकल्पना की गई है।
MBED का केंद्रीकृत मॉडल:
- MBED तंत्र अंतर्राज्यीय और राज्य के भीतर दोनों में विद्युत प्रेषण की केंद्रीकृत शेड्यूलिंग का प्रस्ताव करता है।
- यह विकेंद्रीकृत मॉडल में एक स्पष्ट परिवर्तन को चिह्नित करेगा जो विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा समर्थित है।
- MBED केंद्र के ‘एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति, एक मूल्य’ फॉर्मूले के अनुरूप विद्युत बाज़ारों को मज़बूत करने का एक तरीका है।
- MBED यह सुनिश्चित करेगा कि देश भर में सबसे सस्ते उत्पादन के संसाधनों को समग्र प्रणाली की मांग को पूरा करने के लिये उपयोग किया जाए। इस प्रकार यह व्यवस्था वितरण कंपनियों और विद्युत उत्पादकों दोनों के लिये ही एक सफल प्रयास होगी और अंततः इससे विद्युत उपभोक्ताओं को महत्त्वपूर्ण वार्षिक बचत भी होगी।
- MBED के पहले चरण का कार्यान्वयन पहले 1 अप्रैल, 2022 से शुरू करने की योजना थी।
- हालाँकि इसे बाद में वर्ष 2022 में स्थगित कर दिया गया था, जिसके लिये तारीख की घोषणा की जानी है।
विद्युत अधिनियम, 2003:
- विद्युत अधिनियम, 2003 विद्युत क्षेत्र को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
- अधिनियम केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर विद्युत नियामक आयोगों का प्रावधान करता है, अर्थात् केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) तथा राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC)।
- इन आयोगों के कार्यों में शामिल हैं:
- टैरिफ का विनियमन और निर्धारण
- प्रेषण के लिये लाइसेंस जारी करना
- वितरण और विद्युत का व्यापार
- अपने-अपने क्षेत्राधिकार के भीतर विवादों का समाधान।
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022:
- परिचय:
- विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 का उद्देश्य कई अभिकर्त्ताओं को विद्युत आपूर्तिकर्त्ताओं के वितरण नेटवर्क तक खुली पहुँच प्रदान करना और उपभोक्ताओं को किसी भी सेवा प्रदाता को चुनने की अनुमति देना है।
- निहितार्थ:
- विधेयक में विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
- प्रतिस्पर्द्धा को सक्षम बनाने, उपभोक्ताओं हेतु सेवाओं में सुधार करने और विद्युत क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये वितरण लाइसेंसधारियों की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से गैर-भेदभावपूर्ण "खुली पहुँच" के प्रावधानों के तहत सभी लाइसेंसधारियों द्वारा वितरण नेटवर्क के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
- वितरण लाइसेंसधारी को वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
- आयोग द्वारा अधिकतम सीमा और न्यूनतम प्रशुल्क के अनिवार्य निर्धारण के अलावा वर्ष में प्रशुल्क में श्रेणीबद्ध संशोधन का प्रावधान किया जाना।
- दंड को कारावास या जुर्माने से अर्थदंड में परिवर्तित करना।
- नियामकों द्वारा निर्वहन किये जाने वाले कार्यों को मज़बूती प्रदान करना।
- विधेयक में विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) के केंद्रीकृत मॉडल से जुड़ी चिंताएँ:
- MBED का अपने विद्युत क्षेत्र के प्रबंधन में राज्यों की सापेक्ष स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ेगा, जिसमें उनके स्वयं के उत्पादन स्टेशन भी शामिल हैं और विद्युत वितरण कंपनियों- (डिस्कॉम) (ज़्यादातर राज्य के स्वामित्व वाली) को पूरी तरह से केंद्रीकृत तंत्र पर निर्भर बना देंगी।
- MBED संवैधानिक प्रावधानों, मौजूदा विधायी ढाँचे और बाज़ार संरचना के साथ असंगत है तथा यह राज्यों की स्वायत्तता का उल्लंघन का हल करने की तुलना में अधिक चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
- DISCOMs की व्यवहार्यता से संबंधित चिंताओं से वास्तव में निपटने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में विद्युत संविधान की समवर्ती सूची में है, बिजली ग्रिड को राज्य लोड डिस्पैच केंद्रों (SLDC) द्वारा प्रबंधित राज्यवार स्वायत्त नियंत्रण क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसका फिर क्षेत्रीय लोड डिस्पैच केंद्रों (RLDC) और नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है।
- प्रत्येक नियंत्रण क्षेत्र अपने क्षेत्र की तत्कालीन आपूर्ति को उत्पादन संसाधनों के साथ संतुलित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- नया मॉडल स्वैच्छिक बाज़ार डिज़ाइन के तहत वर्तमान में उपलब्ध कई विकल्पों को सीमित कर देगा और दिन-प्रतिदिन अनुबंध निरर्थक होते जाएँगे।
- उदाहरण के लिये DISCOMs और SLDC तत्कालीन (रियल-टाइम) मार्केट में विद्युत खरीदने या बेचने में अक्षम होंगे।
- वर्तमान में विद्युत संविधान की समवर्ती सूची में है, बिजली ग्रिड को राज्य लोड डिस्पैच केंद्रों (SLDC) द्वारा प्रबंधित राज्यवार स्वायत्त नियंत्रण क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसका फिर क्षेत्रीय लोड डिस्पैच केंद्रों (RLDC) और नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है।
- यह संभावित रूप से उभरते बाज़ार के प्रचलनों से टकरा सकता है,अर्थात् समग्र उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि और ग्रिड में प्लग किये गए इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में बढ़त।
- इन सभी को वास्तव में कुशल ग्रिड प्रबंधन और संचालन के लिये बाज़ारों एवं स्वैच्छिक पूलों के अधिक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
- भारत के पास लंबी अवधि के बिजली खरीद समझौते (पीपीए), अंतर्सीमा पीपीए, लघु और मध्यम अवधि के द्विपक्षीय, दिन-ब-दिन बिजली विनिमय और तात्कालिक ऑनलाइन बाज़ार के रूप में विविध बिजली बाज़ार हैं।
- स्थापित बिजली का लगभग 87% दीर्घकालिक पीपीए के तहत जुड़ा हुआ है और शेष का लेन-देन बिजली बाज़ारों में किया जाता है।
- वर्तमान में प्रत्येक नियंत्रण क्षेत्र अंतर्राज्यीय संसाधनों के बास्केट से योग्यता-क्रम प्रेषण (सबसे सस्ती बिजली सबसे पहले प्रेषण) का पालन करता है तथा दिन-ब-दिन बिजली, एक्सचेंज पर खरीदता या बेचता है। लंबी अवधि के पीपीए के तहत इन अनुसूचियों को संशोधित किया जा सकता है।
- हालाँकि पावर एक्सचेंज पर दैनिक आधार पर उपलब्ध व्यापार योग्य बिजली की अखिल भारतीय दृश्यता की यह सुविधा MBED मॉडल के अनुसार उपलब्ध नहीं होगी।
- कुछ विद्युत् संयंत्र, जैसे मुंबई में ट्रॉम्बे TPS और NCR क्षेत्र में दादरी TPS को बंद करने के लिये मज़बूर किया जाएगा।
- ये पावर स्टेशन मुंबई या दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में आपूर्ति की सुरक्षा के लिये और ग्रिड विफलता की स्थिति में द्वीपीय संचालन में हैं।
- मुख्य रूप से पीपीए की कीमतों को अछूता रखने के लिये पीपीए के तहत बाज़ार समाशोधन मूल्य और अनुबंध मूल्य के बीच अंतर के मूल्य को वापस करने के लिये योजना के तहत प्रस्तावित द्विपक्षीय अनुबंध निपटान (BCS) तंत्र एक अन्य चुनौती है।
- यह संपूर्ण लेखाविधि और निपटान प्रक्रिया को जटिल बनाते हुए "बाज़ार संचालित कीमतों" के उद्देश्य को कमज़ोर कर देगा।
- इसके अतिरिक्त यह परीक्षण किये गए PPA की सहजता को ख़त्म कर देगा और एक अस्थिर थोक बाज़ार का निर्माण करेगा।
आगे की राह
- भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने के कारण विधेयक के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये राज्यों की सिफारिशों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- सुरक्षा बाधित आर्थिक प्रेषण (Security Constrained Economic Dispatch-SCED), NLDC द्वारा विकसित एल्गोरिदम संभावित समाधान हो सकता है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रव्यापी आधार पर समयबद्ध निर्णयों के संदर्भ में नियामकों की सहायता करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: b व्याख्या:
प्रश्न. सरकार की योजना 'उदय' का उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन-सा है? (2016) (a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना। उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |