मराठा आरक्षण विधेयक | 23 Feb 2024
प्रिलिम्स के लिये:सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC), मराठा आरक्षण, अनुच्छेद 15 मेन्स के लिये:आरक्षण और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित सांविधानिक उपबंध |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र विधानसभा ने हाल ही में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024 पारित किया जिसके तहत सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े श्रेणियों के अंतर्गत नौकरियों एवं शिक्षा में मराठा समुदाय के लिये 10% के आरक्षण का प्रावधान किया गया।
मराठा आरक्षण विधेयक से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024 को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है।
- इस रिपोर्ट द्वारा आरक्षण की आवश्यकता को उचित ठहराते हुए मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में पहचाना गया।
- यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342A (3) के तहत मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में निर्दिष्ट करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के तहत इस वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 342A (3) के अनुसार प्रत्येक राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Class- SEBC) की एक सूची तैयार कर उसे बनाए रख सकता है। ये सूचियाँ संबद्ध विषय की केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती हैं।
- अनुच्छेद 15(4) राज्य को नागरिकों के किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग अथवा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 15(5) राज्य को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अतिरिक्त, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के दौरान सीटों के आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है।
- अनुच्छेद 16(4) राज्य को नागरिकों के किसी भी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये प्रावधान करने का अधिकार देता है, जिसका राज्य की राय में, राज्य के तहत सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- विधेयक यह सुनिश्चित करता है कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू हो, आरक्षण को उन मराठाओं तक सीमित कर दिया गया है जो क्रीमी लेयर श्रेणी में नहीं हैं, जिससे समुदाय के भीतर परम हाशिये पर रहने वाले लोगों को निशाना बनाया जा सके।
- आयोग की रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय (इंदिरा साहनी निर्णय (वर्ष 1992)) द्वारा निर्धारित 50% सीमा से ऊपर मराठा समुदाय को आरक्षण को उचित ठहराते हुए "असामान्य परिस्थितियों और असाधारण स्थितियों" पर प्रकाश डाला गया।
- महाराष्ट्र में वर्तमान में 52% आरक्षण है, जिसमें SC, ST, OBC, विमुक्त घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों एवं अन्य जैसी विभिन्न श्रेणियाँ शामिल हैं। मराठों के लिये 10% आरक्षण के साथ, राज्य में कुल आरक्षण अब 62% तक पहुँच जाएगा।
मराठा आरक्षण की पृष्ठभूमि
- नारायण राणे समिति:
- वर्ष 2014 में, नारायण राणे के नेतृत्व वाली समिति ने चुनाव से पहले मराठों के लिये 16% आरक्षण की सिफारिश की, जिसे बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने चुनौती दी और रोक लगा दी।
- गायकवाड़ आयोग:
- वर्ष 2018 में, महाराष्ट्र सरकार ने गायकवाड़ आयोग के निष्कर्षों के आधार पर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (Socially and Educationally Backward Class- SEBC) अधिनियम बनाया, जिसमें 16% आरक्षण दिया गया।
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% कर दिया।
- इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने 50% कोटा सीमा से अधिक को उचित ठहराने के लिये अपर्याप्त अनुभवजन्य डेटा का हवाला देते हुए, मई 2021 में कोटा को पूरी तरह से रद्द कर दिया।
- इंदिरा साहनी निर्णय, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि 50% का नियम होगा, केवल कुछ असामान्य और असाधारण स्थितियों में दूर-दराज़ के क्षेत्र की आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिये 50% नियम में छूट दी जा सकती है।
- वर्ष 2018 में, महाराष्ट्र सरकार ने गायकवाड़ आयोग के निष्कर्षों के आधार पर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (Socially and Educationally Backward Class- SEBC) अधिनियम बनाया, जिसमें 16% आरक्षण दिया गया।
- महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग:
- मराठा आरक्षण मुद्दे का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये न्यायमूर्ति सुनील बी शुक्रे (सेवानिवृत्त) के नेतृत्व में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना दिसंबर 2023 में की गई थी।
- शुक्रे आयोग ने स्पष्ट किया कि राज्य में मराठों की आबादी 28% है, जबकि उनमें से 84% उन्नत नहीं हैं, उन्होंने कहा कि इतने बड़े पिछड़े समुदाय को OBC वर्ग में नहीं जोड़ा जा सकता है।
- आयोग अत्यधिक गरीबी, कृषि आय में गिरावट एवं भूमि स्वामित्व विभाजन को मराठा समुदाय की दुर्दशा का कारण बताता है। इसके अतिरिक्त, यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि राज्य में आत्महत्या करने वाले 94% किसान मराठा समुदाय से हैं।
- आयोग सार्वजनिक सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को समुदाय के पिछड़ेपन के लिये ज़िम्मेदार मानता है।
- यह सरकारी नौकरियों और विकसित क्षेत्रों में मराठा प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये अतिरिक्त आरक्षण की सिफारिश करता है।
मराठा आरक्षण विधेयक के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?
- पक्ष में तर्क:
- सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन:
- शुक्रे आयोग का तथ्यात्मक शोध मराठा समुदाय के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक बाधाओं पर प्रकाश डालता है, जो उन्हें गरीबी तथा हाशिए पर रहने से ऊपर उठाने के लिये आरक्षण की आवश्यकता का समर्थन करता है।
- मराठों के बीच किसान आत्महत्याओं का उच्च प्रतिशत उनके आर्थिक संकट की गंभीरता और समुदाय के उत्थान के लिये लक्षित हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है।
- शुक्रे आयोग का तथ्यात्मक शोध मराठा समुदाय के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक बाधाओं पर प्रकाश डालता है, जो उन्हें गरीबी तथा हाशिए पर रहने से ऊपर उठाने के लिये आरक्षण की आवश्यकता का समर्थन करता है।
- प्रतिनिधित्व:
- मराठों को उनके पिछड़ेपन के कारण ऐतिहासिक रूप से मुख्यधारा के अवसरों से बाहर रखा गया है। सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा में आरक्षण से विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी में वृद्धि हो सकती है, जिससे समावेशी विकास में योगदान प्राप्त हो सकता है।
- सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन:
- मराठा आरक्षण के विपक्ष में तर्क:
- कानूनी व्यवहार्यता:
- नए विधेयक की न्यायिक जाँच का सामना करने की क्षमता के बारे में अनिश्चितताएँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से 50% सीमा से परे आरक्षण के विस्तार का समर्थन करने वाले अनुभवजन्य साक्ष्य की कमी के कारण मराठा आरक्षण को अमान्य करने के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय के प्रकाश में। ऐसा इसलिये है क्योंकि मराठा आरक्षण के पूर्व प्रयासों को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और अंततः उच्च न्यायालयों में असफल रहे।
- कुनबी प्रमाण-पत्र विवाद:
- OBC आरक्षण के लिये पात्र "ऋषि सोयारे" (कुनबी वंश वाले मराठों के विस्तारित संबंधी) को कुनबी के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव करने वाली एक मसौदा अधिसूचना ने विवाद को जन्म दिया।
- विपक्षी दलों ने नए आरक्षण की व्यवहार्यता और मौजूदा OBC आरक्षण पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में सवाल उठाए हैं।
- OBC आरक्षण के लिये पात्र "ऋषि सोयारे" (कुनबी वंश वाले मराठों के विस्तारित संबंधी) को कुनबी के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव करने वाली एक मसौदा अधिसूचना ने विवाद को जन्म दिया।
- मराठा समुदाय के भीतर असंतोष:
- मराठा समुदाय के भीतर कुछ कार्यकर्त्ताओं और नेताओं ने OBC श्रेणी में शामिल किये जाने को प्राथमिकता देते हुए अलग आरक्षण पर असंतोष व्यक्त किया।
- व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
- हालाँकि आरक्षण तात्कालिक चिंताओं का समाधान कर सकता है, लेकिन यह मराठों के पिछड़ेपन के मूल कारणों को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर सकता है। सतत् विकास के लिये शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढाँचे जैसे मुद्दों को संबोधित करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।
- कानूनी व्यवहार्यता:
आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% कोटा सीमा से परे आरक्षण को उचित ठहराने के लिये मज़बूत अनुभवजन्य डेटा प्रदान करके सुनिश्चित करें कि मराठा आरक्षण विधेयक कानूनी रूप से मज़बूत है और न्यायिक जाँच का सामना करता है।
- सरकार को एकीकृत नीतियाँ अपनानी चाहिये जो मराठों के लिये समग्र विकास सुनिश्चित करने हेतु लक्षित कल्याण कार्यक्रमों, कौशल विकास पहल और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ आरक्षण को जोड़ती हैं।
- पिछड़ेपन के मूल कारणों को संबोधित करने वाली सतत् विकास पहल को अल्पकालिक विचारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिसका लक्ष्य सभी समुदायों के लिये समावेशी विकास और सामाजिक न्याय है।
- ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सकारात्मक कार्रवाई उपायों के लिये समझ तथा समर्थन को बढ़ावा देकर सामाजिक एकजुटता एवं समावेशिता को बढ़ावा देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन. सी. एस. सी.) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |