पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना | 10 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर भूकंप का पहला भूगर्भीय साक्ष्य पाया है, जिसका उल्लेख इतिहास में सदिया भूकंप (Sadiya Earthquake) के रूप में किया गया है। यह खोज पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान करने और उसके अनुरुप यहाँ निर्माण गतिविधियों की योजना बनाने में मददगार हो सकती है।

  • यह साइट पूर्वी हिमालय के एक प्रमुख भाग टुटिंग-टिडिंग सिवनी ज़ोन (Tuting-Tidding Suture Zone) के पास है, जहाँ हिमालय दक्षिण की ओर झुका हुआ है और इंडो-बर्मा रेंज से जुड़ता है।

प्रमुख बिंदु 

  • वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (Wadia Institute of Himalayan Geology- WIHG) के वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश के हिमबस्ती गाँव के उस क्षेत्र में उत्खनन किया जहाँ वर्ष 1697 में सदिया भूकंप आने के ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं। उत्खनन में प्राप्त इन साक्ष्यों का आधुनिक भूवैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से विश्लेषण किया गया।
    • भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के तहत WIHG एक स्वायत्त संस्थान है।
  • वैज्ञानिकों को सुबनसिरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में गाद वाले स्थान पर बड़े-बड़े वृक्षों की टहनियाँ (सदिया सुबनसिरी नदी के दक्षिण-पूर्व में लगभग 145 किमी. दूर स्थित) दबी मिलीं, इससे पता चलता है कि भूकंप की इस घटना के बाद भी छह महीने तक भूकंप के हल्के झटकों की वज़ह से नदी में इतनी मिट्टी और मलबा जमा हो गया कि उसकी सतह ऊपर उठ गई। 
    • भू-वृद्धि (Aggradation) वह शब्द है जिसका प्रयोग तलछट के जमाव के कारण भूमि के उन्नयन में वृद्धि के लिये भूविज्ञान में किया जाता है।
    • आफ्टरशॉक वह भूकंपीय स्थिति है जो भूकंप क्रम के सबसे बड़े झटके का अनुसरण करती है।

महत्त्व: 

  • पूर्व में आए भूकंपों के अध्ययन से क्षेत्र की भूकंपीय क्षमता को निर्धारित करने में मदद मिलती है। यह क्षेत्र में भूकंप के खतरे के प्रतिचित्रण में मदद करता है और तद्नुसार विकास गतिविधियों के समन्वयन को सक्षम बनाता है।
  • भारत-चीन सीमा के पास स्थित अरुणाचल प्रदेश रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, यह कभी-कभी स्वामित्व को लेकर विवाद के केंद्र में रहता है।
    • यहाँ सड़क, पुल और पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण जैसी विकास की कई पहलें शुरू की जा रही हैं, इसलिये इस क्षेत्र में भूकंप के पैटर्न को समझने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत का भूकंपीय जोखिम मानचित्रण:

  • विवर्तनिक रूप से सक्रिय वलित पर्वत हिमालय की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • भूकंपीयता से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी, अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक व्यवस्था के आधार पर भारत को चार ‘भूकंपीय ज़ोनों’ (II, III, IV और V) में वर्गीकृत किया गया है।
    • पूर्व के भूकंप क्षेत्रों को उनकी गंभीरता के आधार पर पाँच ज़ोनों में विभाजित किया गया था, लेकिन 'भारतीय मानक ब्यूरो' (Bureau of Indian Standards- BIS) ने प्रथम 2 ज़ोनों का एकीकरण कर देश को चार भूकंपीय ज़ोनों में बाँटा है।
  • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे (Hazard Maps) और कोड प्रकाशित करने के लिये आधिकारिक एजेंसी है।

Seismic-zone

  • भूकंपीय ज़ोन II:
    • मामूली क्षति वाले भूकंपीय ज़ोन की तीव्रता MM के पैमाने पर V से VI तक होती है (MM- संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना)।
  • भूकंपीय ज़ोन III:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति।
  • भूकंपीय ज़ोन IV:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति।
  • भूकंपीय ज़ोन V:
    • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
    • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक परिमाण वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

भूकंपीय लहरें, रिक्टर पैमाना और मरकली पैमाना:

  • भूकंपीय तरंगें भूकंप के कारण होने वाला कंपन है जो पृथ्वी के माध्यम से गति करते हैं और जिन्हें भूकंपमापी यंत्र (Seismographs) द्वारा दर्ज किया जाता है।
    • भूकंपमापी यंत्र तरंगों को एक टेढ़े-मेढ़े ग्राफ के रूप में प्रस्तुत करता है जो भूमिगत तरंगों के दोलन से संबंधित विभिन्न आयामों को दर्शाता है।
  • भूकंप की घटनाओं को झटके की तीव्रता के अनुसार जाना जाता है।
    • इसे परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है। यह भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा के मापन से संबंधित है इसे 0-10 तक की संख्या में व्यक्त किया जाता है।
    • हालाँकि 2 से कम तथा 10 से अधिक रिक्टर तीव्रता के भूकंप का मापन करना सामान्यतः संभव नहीं है।

स्रोत:  पीआईबी