हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग) | 15 Dec 2022
प्रिलिम्स के लिये:मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु पहल, स्वच्छ भारत मिशन मेन्स के लिये:मैनुअल स्कैवेंजिंग का खतरा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJ&E) ने लोकसभा को बताया कि विगत तीन वर्षों (वर्ष 2019 से 2022) में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है।
- इस अवधि में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय "दुर्घटनाओं" में 233 लोगों की मृत्यु हुई है।
हाथ से मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging):
- हाथ से मैला ढोने की प्रथा को ‘‘किसी सुरक्षा साधन के बिना और नग्न हाथों से सार्वजनिक सड़कों एवं सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, गटर एवं सीवर की सफाई करने’’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति द्वारा मानव मल को उसके निपटान तक मैन्युअल रूप से साफ करने, ले जाने, निपटाने या अन्यथा किसी भी तरीके से हैंडलिंग पर प्रतिबंध लगाता है।
- अधिनियम हाथ से मैला ढोने की प्रथा को "अमानवीय प्रथा" के रूप में परिभाषित करता है।
हाथ से मैला ढोने की प्रथा के प्रचलन के कारण:
- उदासीन रवैया:
- कई स्वतंत्र सर्वेक्षणों ने राज्य सरकारों की ओर से यह स्वीकार करने में निरंतर अनिच्छा के बारे में बात की है कि यह प्रथा उनकी निगरानी में प्रचलित है।
- आउटसोर्सिंग के कारण समस्याएँ:
- कई बार स्थानीय निकाय निजी ठेकेदारों को सीवर सफाई कार्य आउटसोर्स करते हैं। हालाँकि उनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर, सफाई कर्मचारियों के उचित रोल का रखरखाव नहीं करते हैं।
- श्रमिकों की दम घुटने से मृत्यु होने के मामले में इन ठेकेदारों ने मृतक के साथ किसी भी संबंध से इनकार किया है।
- सामाजिक मुद्दा:
- यह प्रथा जाति, वर्ग और आय की असमानता आदि से प्रेरित है।
- मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।
- 1993 में, भारत ने मैला ढोने वालों के रूप में लोगों के रोज़गार पर प्रतिबंध लगा दिया (हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों का रोज़गार और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993), हालाँकि, इससे जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी बना हुआ है।
- यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है।
मैला ढोने की समस्या से निपटने के लिये उठाए गए कदम:
- ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020’
- यह सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके अपनाने और सीवर में होने वाली मौतों के मामले में कर्मियों के परिवार वालों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।
- यह हाथ से मैला ढोने वालों के रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
- इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी मिलना शेष है।
- अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम 2013:
- यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
- यह अन्याय और अपमान की क्षतिपूर्ति के रूप में हाथ से मैला ढोने वाले समुदायों को वैकल्पिक रोज़गार तथा अन्य सहायता प्रदान करने के लिये एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी प्रदान करता है।
- 1989:अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
- वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम स्वच्छता संबंधी कार्यकर्त्ताओं के लिये एक समन्वित गार्ड बन गया। इस दौरान मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
- सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
- इसे आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
- सरकार द्वारा सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इसे एक ‘चुनौती’ के रूप में शुरू किया गया, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
- 'स्वच्छता अभियान एप':
- इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान एवं जियोटैग करने हेतु विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सैनिटरी शौचालयों में बदला जा सके और सभी हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने हेतु उनका पुनर्वास किया जा सके।
- यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem- NAMASTE/नमस्ते):
- NAMASTE योजना आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय तथा MoSJ&E द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है और इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं को खत्म करना है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।
आगे की राह:
- स्वच्छ भारत मिशन को 15वें वित्त आयोग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन के साथ हाथ से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया।
- हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था के कारण हाथ से मैला ढोना अभी भी जारी है।
- राज्य एवं समाज को इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से रुचि लेने की ज़रूरत है और इस प्रथा का सही आकलन कर इसके उन्मूलन के लिये सभी संभावित विकल्पों पर गौर करने की ज़रूरत है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016) (a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना। उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |