भारत में कुपोषण उन्मूलन | 14 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:पोषण अभियान, पोषण संबंधी तथ्य मेन्स के लिये:कुपोषण उन्मूलन में सरकारी प्रयास |
चर्चा में क्यों?
स्टेट ऑफ़ इंडियाज़ एन्वायरनमेंटल रिपोर्ट 2020 (The State of India’s Environment Report 2020) के अनुसार, भारत सरकार के पोषण अभियान को कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु
- इस नवीनतम रिपोर्ट को 9 फरवरी, 2020 को जारी किया गया जिसके अनुसार वर्ष 2022 तक भारत में कुपोषण उन्मूलन के लक्ष्यप्राप्ति में समस्याएँ आ सकती है।
- यह स्थिति इस तथ्य के बावजूद है कि भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 1991 की तुलना में दोगुनी वृद्धि हुई है और बाल कुपोषण से निपटने के लिये वर्ष 1975 से देश में ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (Integrated Child Development Services-ICDS) लागू है जो कि कुपोषण से मुक्ति हेतु दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है।
भारत में कुपोषण की स्थिति:
- वर्ष 2017 मे पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 1.04 मिलियन मौतों में से 68.2% से ज़्यादा मौतें कुपोषण के कारण हुई।
- ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (Global Hunger Index) के नवीनतम संस्करण में 117 देशों की सूची में भारत 102वें स्थान पर रहा।
- पिछले दो दशकों में भारत के GHI स्कोर में केवल 21.9% का सुधार हुआ है, जबकि ब्राज़ील के स्कोर में 55.8%, नेपाल में 43.5% और पाकिस्तान में 25.6% का सुधार हुआ है।
भारत सरकार की पहल:
- इस चुनौती का सामना करने के लिये केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में ‘प्रधानमंत्री पोषण अभियान’ की शुरुआत की।
- सरकार ने वर्ष 2017-18 की शुरुआत में इस योजना हेतु तीन वर्ष के लिये 2,849.54 करोड़ रुपए आवंटित किये और वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ का लक्ष्य रखा।
योजना से जुड़ी समस्याएँ:
- योजना द्वारा प्रवर्तित ‘नवजात शिशु आहार कार्यक्रमों’ का क्रियान्वयन खराब रहा है, परिणामस्वरूप ज़मीनी स्तर पर इसके प्रभाव नहीं दिखाई दिये।
- कुपोषण समस्या की गंभीरता पर विचार करने पर योजना का लक्ष्य, वर्ष-दर-वर्ष असंभव प्रतीत होता है।
- पूर्वानुमान बताते हैं कि मौजूदा दर पर स्टंटिंग (Stunting) के मानक पर SDG लक्ष्यों को प्राप्त करने में पंजाब को 23 वर्ष और झारखंड को 100 वर्ष लगेंगे।
- इसी तरह वेस्टिंग (Wasting) संबंधी SDG लक्ष्यों को पूरा करने में मध्य प्रदेश को 28 वर्ष और झारखंड को 88 वर्ष लगेंगे।
आगे के प्रमुख कदम :
- आँगनवाड़ी केंद्रों को क्रेच (पालना-घर) में बदलना।
- सार्वभौमिक रूप से मज़दूरी क्षतिपूर्ति आधारित मातृत्व लाभ प्रदान करना।
- भोजन और पोषण सुरक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में अपनाना।
- कुपोषण से लड़ने में समुदाय आधारित प्रबंधन के लिये प्रतिबद्धता।
अतः आवश्यकता है कि हम अधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करें परंतु साथ ही इस संबंध में की गई प्रगति के आकलन की प्रक्रिया को भी अपनाना चाहिये।