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भू-स्थानिक क्षेत्र का उदारीकरण

  • 17 Feb 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) द्वारा भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र (Geo-Spatial Sector) हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं, जो मौजूदा प्रोटोकॉल को निष्क्रिय कर इस क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धा हेतु अधिक उदार बनाते हैं।

प्रमुख बिंदु:

भू-स्थानिक आँकड़ा:

  • भू-स्थानिक आँकड़ों में पृथ्वी की सतह पर मौजूद वस्तुओं, घटनाओं आदि के विषय से संबंधित आँकड़े शामिल होते हैं।
    • ये आँकड़े स्थिर और अस्थिर दोनों वस्तुओं का हो सकते हैं, जैसे- सड़क का स्थान, भूकंप की घटना, गतिशील वाहन, पैदल यात्री की चाल, संक्रामक रोग का प्रसार आदि।
  • इससे निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्राप्त होगी:
    • अवस्थिति (Location)
    • विशेषता (Attribute- वस्तु, घटना या संबंधित घटनाओं की विशेषताएँ),
    • समय (time)
  • भू-स्थानिक डेटा के उपयोग के परिणामस्वरूप पिछले दशक में खाद्य वितरण, ई-कॉमर्स, मौसम जैसे विभिन्न एप्स की वजह से दैनिक जीवन में वृद्धि देखी गई है।

भू-स्थानिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

  • सख्त प्रतिबंध:
    • वर्तमान विधि के अंतर्गत भू-स्थानिक डेटा के संग्रहण, भंडारण, उपयोग, बिक्री, प्रसार और मानचित्रण पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।
  • नवीनीकरण:
    • इस नीति का नवीनीकरण दशकों से नहीं किया गया था, जिसके कारण इसे लेकर आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चिंताएँ बनी हुई थीं।
  • सरकार द्वारा संचालित:
    • इस क्षेत्र में अभी तक भारत सरकार और सरकार द्वारा संचालित एजेंसियों जैसे कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) का प्रभुत्व है। निजी कंपनियों को भू-स्थानिक डेटा एकत्र करने, तैयार करने व प्रसारित करने के लिये सरकार के विभिन्न विभागों जैसे- रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय आदि से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है।

नई नीति:

  • खुली पहुँच:
    • भारत के सभी संस्थाओं को सुरक्षा से संबंधित आँकड़ों को छोड़कर भू-स्थानिक आँकड़ों और सेवाओं तक खुली पहुँच प्रदान की जाएगी।
  • हटाए गए प्रतिबंध:
    • भारतीय निगमों और अन्वेषकों पर से प्रतिबंधों को हटा लिया गया है। इन्हें अब भारतीय क्षेत्र का डिजिटल भू-स्थानिक आँकड़े इकट्ठा करने और मैप तैयार कर उनके  प्रकाशन, अद्यतन आदि से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
    • इन्हें सुरक्षा मंज़ूरी, लाइसेंस आदि की भी ज़रूरत नहीं होगी।

भू-स्थानिक आँकड़ों के विनियमन का कारण:

  • विलंबित परियोजनाएँ:
    • विशेष रूप से मिशन मोड वाली परियोजनाओं को लाइसेंस या अनुमति प्राप्त करने में महीनों लग जाते हैं, जिससे इन परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होती है।
    • अविनियमन, सुरक्षा कारणों से अनुमति लेने की आवश्यकता को भी समाप्त कर देता है। भारतीय कंपनियाँ अब आत्म-सत्यापन कर सकती हैं।
  • आँकड़ों का अभाव
    • देश में बुनियादी ढाँचे, विकास, व्यवसाय आदि के लिये आँकड़ों की भारी कमी है, जिससे नियोजन में बाधा उत्पन्न होती है।
    • अकेले भारत सरकार को पूरे देश की उच्च सटीकता के साथ मैपिंग करने में दशकों लग सकते हैं।
    • इसलिये सरकार को भू-स्थानिक क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करने और इस क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता महसूस हुई।
  • बदलती आवश्यकताएँ:
    • रणनीतिक कारणों, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चिंताओं की वजह से भू-स्थानिक आँकड़ों पर नियंत्रण दशकों से एक प्राथमिकता थी, इस प्राथमिकता में पिछले 15 वर्षों में बदलाव देखा गया है।
    • प्रारंभ में सुरक्षा से जुड़े भू-स्थानिक आँकड़ों को इकट्ठा करने का विशेषाधिकार  रक्षा बलों और सरकार को प्राप्त था।
      • प्रारंभ में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) मैपिंग व्यवस्था अल्पविकसित थी। कारगिल युद्ध में आँकड़ों के लिये सरकार को विदेशी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ा। इसके बाद सरकार को स्वदेशी स्रोत की आवश्यकता महसूस हुई, अतः सरकार द्वारा इसमें भारी निवेश किया गया।
    • बुनियादी ढाँचा विकास, प्राकृतिक आपदा, कृषि, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विकास, बिजली, जल, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य (बीमारियों, रोगियों, अस्पतालों आदि की ट्रैकिंग) आदि क्षेत्रों में सरकार के लिये भू-स्थानिक आँकड़ों की आवश्यकता अनिवार्य हो गई है।
  • ग्लोबल पुश:
    • भू-स्थानिक आँकड़े आम नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं, जिससे इनकी वैश्विक मांग है।
    • भू-स्थानिक आँकड़े वैश्विक प्लेटफॉर्मों पर भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं, जिससे अन्य देशों में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध आँकड़ों का विनियमन मुश्किल हो जाता है।

अविनियमन का प्रभाव:

  • बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा:
    • सरकार, प्रणाली को उदार बनाकर वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा के लिये भारतीय कंपनियों को योजनाएँ तैयार करने तथा प्रशासन के लिये अधिक सटीक आँकड़े उपलब्ध कराएगी। 
  • नए रोज़गार:
    • इन आँकड़ों का उपयोग स्टार्टअप और व्यवसाय विशेष रूप से ई-कॉमर्स तथा भू-स्थानिक आधारित एप अब अपनी समस्याओं को हल करने में कर सकते हैं, जिसे इन क्षेत्रों में रोज़गार में वृद्धि होगी।
    • भारतीय कंपनियाँ स्वदेशी एप विकसित कर सकेंगी।
  • बढ़ी हुई सार्वजनिक-निजी भागीदारी:
    • इस क्षेत्र के खुलने से भारत सरकार के साथ विभिन्न क्षेत्रीय परियोजनाओं पर काम करने वाली डेटा संग्रह कंपनियों की सार्वजनिक-निजी भागीदारी में वृद्धि होने की भी संभावना है।
  • बढ़ा हुआ निवेश:
    • सरकार को भू-स्थानिक क्षेत्र में निवेश, विदेशी कंपनियों और देशों को आँकड़ों के निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: द हिंदू

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