सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) | 20 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), नीति आयोग, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)। मेन्स के लिये:नौकरशाही में लेटरल एंट्री का मुद्दा, नौकरशाही में उच्च पदों पर आरक्षण का मुद्दा, इसके निहितार्थ और आगे की राह। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने लेटरल एंट्री/पार्श्व प्रवेश योजना के माध्यम से सरकारी विभागों में विशेषज्ञ के रूप में 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की नियुक्ति के लिये अधिसूचना जारी की है।
- कई समूहों के विरोध के कारण, जिन्होंने तर्क दिया कि यह योजना अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण अधिकारों से समझौता करती है, सरकार ने लेटरल एंट्री स्कीम के माध्यम से भर्ती के लिये अपनी योजना को वापस लेने का फैसला किया।
लेटरल एंट्री स्कीम/पार्श्व प्रवेश योजना क्या है?
- परिचय:
- लेटरल एंट्री से तात्पर्य सरकार के बाहर से व्यक्तियों को सीधे मध्य-स्तर और वरिष्ठ स्तर के पदों पर नियुक्त करने की प्रक्रिया से है।
- यह डोमेन-विशिष्ट विशेषज्ञता और नए दृष्टिकोण लाकर शासन में सुधार लाने का प्रयास करता है।
- इन 'लेटरल एंट्रीज़' में व्यक्तियों को 3 वर्ष के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है जिसे अधिकतम 5 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- उत्पत्ति और कार्यान्वयन:
- लेटरल एंट्री की अवधारणा पहली बार वर्ष 2004-09 के दौरान पेश की गई थी और वर्ष 2005 में स्थापित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) द्वारा इसका दृढ़ता से समर्थन किया गया था।
- बाद में, नए कौशल और दृष्टिकोण लाने के लिये इसे वर्ष 2017 में नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- वर्ष 2017 में नीति आयोग ने अपने तीन वर्षीय कार्य एजेंडा तथा शासन पर सचिवों के क्षेत्रीय समूह (SGoS) द्वारा मध्यम एवं वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कार्मिकों की भर्ती के संबंध में केंद्र सरकार को सिफारिश की थी।
- पात्रता:
- निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों, स्वायत्त निकायों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से संबंधित क्षेत्रों में विषय विशेषज्ञता रखने वाले ऐसे व्यक्तियों जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा है, इन पदों के लिये आवेदन करने के पात्र हैं।
- चयन मानदंड सामान्यतः पेशेवर उपलब्धि और विषय वस्तु विशेषज्ञता पर ज़ोर देते हैं।
- लेटरल एंट्री में आरक्षण:
- "13-पॉइंट रोस्टर" नीति के कारण लेटरल एंट्री को आरक्षण प्रणाली से बाहर रखा गया है।
- "13-पॉइंट रोस्टर" नीति, किसी उम्मीदवार के समूह के कोटा प्रतिशत (SC, ST, OBC और EWS) की गणना सौ के अंश के रूप में करके नौकरी के रिक्त पदों की सूची में उसके स्थान का निर्धारण करने हेतु एक विधि स्थापित करती है।
- चूँकि प्रत्येक लेटरल एंट्री की स्थिति को "एकल पद" माना जाता है, इसलिये इसमें आरक्षण प्रणाली लागू नहीं होता है, जिससे आरक्षण दिशानिर्देशों का पालन किये बिना ये नियुक्तियाँ की जा सकती हैं।
- भर्ती के मौजूदा दौर में प्रत्येक विभाग के लिये अलग-अलग 45 रिक्तियों का विज्ञापन किया गया है। यदि इसे एकल समूह के रूप में माना जाए तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के उम्मीदवारों के लिये विशिष्ट आवंटन के साथ आरक्षण लागू होगा।
- हालाँकि, रिक्तियों को अलग-अलग पदों के रूप में माना जाता है, इसलिये इसमें आरक्षण प्रक्रियाओं का पालन नहीं होता है, जिससे प्रभावी रूप से आरक्षित श्रेणियाँ इन पदों से बाहर हो जाती हैं।
- "13-पॉइंट रोस्टर" नीति के कारण लेटरल एंट्री को आरक्षण प्रणाली से बाहर रखा गया है।
- अब तक हुई नियुक्तियों की संख्या:
- वर्ष 2018 में लेटरल एंट्री प्रक्रिया शुरू होने के बाद से कुल 63 व्यक्तियों को विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में नियुक्त किया गया है।
- अगस्त 2023 तक, इनमें से 57 पार्श्व प्रवेशक वर्तमान में केंद्र सरकार के तहत विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं।
लेटरल एंट्री स्कीम पर ARC की सिफारिशें
- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (1966): इसकी स्थापना मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में की गई थी, जिसका उद्देश्य सिविल सेवाओं के भीतर प्रशिक्षण और कार्मिक प्रबंधन को पेशेवर बनाना तथा सुधारना था।
- यद्यपि इसमें विशेष रूप से लेटरल एंट्री का समर्थन नहीं किया गया, फिर भी इसने नौकरशाही में विशेष कौशल की आवश्यकता को संबोधित करने हेतु आधार तैयार किया।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (2005): इसने भारतीय प्रशासनिक प्रणाली की प्रभावशीलता, पारदर्शिता और नागरिक सुलभता में सुधार के लिये सिफारिश की।
- अपनी 10वीं रिपोर्ट में, ARC ने उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री की आवश्यकता पर ज़ोर दिया ताकि विशिष्ट विशेषज्ञता और योग्यताएँ प्राप्त की जा सकें, जो पारंपरिक सिविल सेवा में हमेशा उपलब्ध नहीं होतीं।
- इसने निजी क्षेत्र, शिक्षाविदों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से पेशेवरों की भर्ती का प्रस्ताव रखा, जिससे अल्पकालिक या संविदात्मक भूमिकाओं के लिये टैलेंट पूल का निर्माण हो सके।
- ARC ने पारदर्शी, योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया की भी सिफारिश की और सिविल सेवा की अखंडता को बनाए रखते हुए पार्श्व प्रवेशकों को एकीकृत करने पर ज़ोर दिया।
आयु-आधारित नियुक्ति से लेकर निश्चित कार्यकाल प्रणाली तक नौकरशाही में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना
- वर्तमान में, शीर्ष नौकरशाही पदों (संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव आदि) में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अधिकारी केवल 4% और 4.9% हैं।
- आयु-आधारित सेवानिवृत्ति के स्थान पर एक निश्चित कार्यकाल प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव रखा गया है, जिससे सभी अधिकारियों को वरिष्ठ पदों तक पहुँचने के समान अवसर मिल सकें।
- निश्चित कार्यकाल प्रणाली का अर्थ है सभी सिविल सेवकों (अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिये 35 वर्ष की निश्चित कार्यकाल प्रणाली होना, चाहे प्रवेश की आयु कुछ भी हो, ताकि समान अवसर सुनिश्चित हो और आयु के बजाय योग्यता पर ध्यान दिया जा सके।
- सिविल सेवा परीक्षा के लिये मौजूदा आयु-आधारित पात्रता मानदंड अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और दिव्यांग आवेदकों के लिये प्रतिकूल हैं, जो देरी से प्रवेश तथा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के कारण शीर्ष रैंक प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
- निश्चित कार्यकाल प्रणाली का अर्थ है सभी सिविल सेवकों (अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिये 35 वर्ष की निश्चित कार्यकाल प्रणाली होना, चाहे प्रवेश की आयु कुछ भी हो, ताकि समान अवसर सुनिश्चित हो और आयु के बजाय योग्यता पर ध्यान दिया जा सके।
- पक्ष में तर्क:
- प्रतिनिधित्व में वृद्धि: निश्चित कार्यकाल से SC/ST और OBC अधिकारियों को वरिष्ठ पदों तक पहुँचने में सहायता मिल सकती है, जिससे उनका प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है।
- योग्यता पर ध्यान: प्रवेश के समय आयु की तुलना में योग्यता को प्राथमिकता देना सुनिश्चित करता है कि कुशल व्यक्ति आगे बढ़ सकें।
- सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना: अधिक समावेशी नौकरशाही के लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।
- व्यवहार्यता: बढ़ती जीवन प्रत्याशा और नियमित फिटनेस जाँच के साथ विस्तारित कार्य वर्ष व्यवहार्य हैं।
- विपक्ष में तर्क:
- आयु संबंधी चिंताएँ: कार्यकाल बढ़ाने से सत्तर वर्ष की आयु तक सेवारत अधिकारियों को संभावित रूप से 67 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति सुनिश्चित करने के लिये आयु सीमा कम करने की आवश्यकता हो सकती है।
- परिवर्तन का प्रतिरोध: पारंपरिक वरिष्ठता-आधारित प्रणाली बहुत मज़बूत है और परिवर्तनों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
- राजनीतिक मुद्दे: निश्चित कार्यकाल को योग्यता-आधारित पदोन्नति को कम करने के रूप में देखा जा सकता है और इससे आयु, अनुभव एवं प्रदर्शन पर बहस छिड़ सकती है।
सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री स्कीम के पक्ष में तर्क क्या हैं?
- विशिष्ट कौशल और विशेषज्ञता: लेटरल एंट्री सरकार को प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और वित्त जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले विशेषज्ञों की भर्ती करने की अनुमति देता है, जिससे इन क्षेत्रों, विशेषज्ञता संबंधी अभावो को संबोधित किया जा सकता है, जो विशेषज्ञता सामान्य रूप से भर्ती किये जाने वाले सिविल सेवकों के पास नहीं होती है, यह शासन की जटिलताओं को अनुकूलित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- नवाचार और सुधार: पार्श्व भर्तियाँ के माध्यम से निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों या अन्य संगठनों से मूल्यवान अनुभव को समाविष्ट किया जा सकता है, जो प्रशासनिक प्रक्रियाओं और शासन व्यवस्था को सुधारने तथा उन्हें सुदृढ़ करने में सहायक हो सकता है।
- अंतराल को भरना: कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के आँकड़ों के अनुसार लगभग 1500 IAS अधिकारियों की कमी है। लेटरल एंट्री इस कमी को पूरा करने में सहायता कर सकती है।
- कार्य संस्कृति में बदलाव लाना: यह सरकारी क्षेत्र की कार्यस्थल संस्कृति, जिसकी नियम-पुस्तिका नौकरशाही, यथास्थिति और लालफीताशाही के लिये निंदा की जाती है, में बदलाव लाने में सहायता करेगा।
- सहभागी शासन: आज की शासन व्यवस्था एक बहु-अभिकर्त्ता, अधिक सहभागिता वाले उद्यम के रूप में विकसित हो रही है जो लेटरल एंट्री निजी क्षेत्र एवं गैर-लाभकारी संस्थाओं जैसे हितधारकों को शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करती है।
सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री स्कीम की आलोचनाएँ क्या हैं?
- अल्पावधि: केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिवों के लिये कार्यकाल 3 वर्ष निर्धारित किया है, जो नए लोगों के लिये जटिल शासन प्रणालियों को पूरी तरह से अपनाने और सार्थक योगदान देने हेतु अपर्याप्त है।
- निष्पक्षता और तटस्थता बनाए रखना: विभिन्न पृष्ठभूमि से व्यक्तियों को लाना संभावित हितों के टकराव और निष्पक्षता संबंधी चिंताओं के कारण वस्तुनिष्ठता एवं तटस्थता को चुनौती दे सकता है, विशेषकर अगर भर्ती किये गए लोगों का निजी कंपनियों या हित समूहों से पहले से संबंध रहा हो।
- स्थायी अधिकारियों के मनोबल पर प्रभाव: पार्श्व प्रवेशकों की बढ़ती संख्या उनके और स्थायी अधिकारियों के बीच विभाजन उत्पन्न कर सकती है, जो संभावित रूप से पेशेवर नौकरशाहों के मनोबल को प्रभावित करती है।
- योग्यता-आधारित नियुक्ति में संभावित कमी: सिविल सेवाओं की योग्यता-आधारित भर्ती प्रक्रिया लेटरल एंट्री से कमज़ोर हो सकती है। यदि पारदर्शी तरीके से नहीं किया जाता है तो यह चयन प्रक्रिया में पक्षपात या भाई-भतीजावाद की धारणाओं को जन्म दे सकता है।
- बाह्य सिंड्रोम: परंपरागत नौकरशाही में पदानुक्रम और व्यवधान की चिंता के कारण पार्श्व प्रवेशकों का विरोध हो सकता है, उन्हें बाहरी व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और उनके प्रवेश के प्रति विरोध व्यक्त किया जा सकता है।
- वरिष्ठ पदों के लिये अनुभव की आवश्यकता: स्थायी प्रणाली में, IAS अधिकारियों को 17 वर्ष की सेवा के बाद संयुक्त सचिव स्तर पर पदोन्नत किया जाता है, सामान्यतः लगभग 45 वर्ष की आयु में तथा वे दस वर्षों तक उस स्तर पर बने रहते हैं।
- यदि पार्श्व प्रवेशकों पर भी समान अनुभव प्रतिबंध लगाए गए, तो सर्वश्रेष्ठ आवेदक प्रवेश से हतोत्साहित हो सकते हैं, क्योंकि वे प्रायः उस आयु तक निजी क्षेत्र में अपने कॅरियर के शिखर पर पहुँच जाते हैं।
आगे की राह
- पारदर्शिता सुनिश्चित करना: पार्श्व प्रविष्टियों के लिये पारदर्शी, योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया बनाए रखना जो प्रासंगिक विशेषज्ञता, अनुभव और कौशल पर केंद्रित हो तथा पक्षपात या पूर्वाग्रह की धारणा से बचना।
- ब्रिटेन में UK सिविल सर्विस फास्ट स्ट्रीम कार्यक्रम कई स्तरों पर सिविल सेवा में सीधे अभियर्थियों की भर्ती करता है तथा विशेष कौशल और विशेषज्ञता वाले अभ्यर्थी पर ध्यान केंद्रित करता है।
- पार्श्व प्रवेशकों का प्रशिक्षण: निजी क्षेत्र से सिविल सेवाओं में प्रवेशकों के लिये एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किये जाने की आवश्यकता है, जिससे उन्हें सरकारी कार्यों की जटिल प्रकृति को समझने में मदद मिल सके।
- स्पष्ट अपेक्षाएँ और भूमिका की परिभाषा: भूमिकाओं, ज़िम्मेदारियों तथा अपेक्षाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना एवं योगदान को संगठनात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये विशिष्ट प्रदर्शन संकेतक व उद्देश्य स्थापित करना।
- आयु संबंधी सीमाओं को अनुकूलित करने की आवश्यकता: शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये संयुक्त सचिव पदों के लिये आयु संबंधी आवश्यकताओं में ढील दी जानी चाहिये ताकि 35 वर्ष तक की आयु वाले उम्मीदवारों को भी इसमें शामिल किया जा सके।
- अतीत में मोंटेक सिंह अहलूवालिया और बिमल जालान जैसे अर्थशास्त्री कम उम्र में ही वरिष्ठ पदों पर पहुँच गए थे।
निष्कर्ष
किसी भी क्षेत्र में प्रतियोगिता की तरह पार्श्व प्रवेश भी लाभकारी हो सकता है, लेकिन इसके लिये प्रवेश मानदंड, नौकरी की भूमिका कर्मियों की संख्या और प्रशिक्षण पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सकारात्मक बदलाव लाए। इसके अतिरिक्त व्यापक प्रशासनिक सुधारों हेतु पारंपरिक वरिष्ठता-आधारित प्रणाली में सुधार आवश्यक हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: सिविल सेवाओं के संबंध में सरकार की लेटरल एंट्री योजना क्या है? इसके गुण-दोष और निहितार्थों की चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: “आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है”। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों का सुझाव दीजिये। (2020) |