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जैव विविधता और पर्यावरण

भूमि सिंक और उत्सर्जन

  • 04 Sep 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा, कृत्रिम कार्बन पृथक्करण, बॉन चुनौती  

मेन्स के लिये: 

जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में संबंधित पहलें

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद नीति-निर्माताओं और निगमों का अब भी यह मानना है कि भूमि तथा महासागरों जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक उनके जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम कर देंगे।

प्रमुख बिंदु

  • भूमि सिंक :
    • भूमि जलवायु प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो सक्रिय रूप से कार्बन, नाइट्रोजन, जल और ऑक्सीजन के प्रवाह के तौर पर जीवन के लिये बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़ी हुई है।
    • ग्रीनहाउस गैसें (GHG जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड ) एक प्राकृतिक चक्र का अनुसरण करती हैं - वे लगातार वातावरण में प्रवाहित होती हैं तथा प्राकृतिक 'सिंक' जैसे- भूमि और महासागरों के माध्यम से इसको हटाया जाता है।
    • पौधों और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन को अवशोषित करने तथा इसे जीवित बायोमास में संग्रहीत करने की अद्वितीय क्षमता होती है।
      • मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का लगभग 56% महासागरों और भूमि द्वारा अवशोषित किया जाता है।
      • लगभग 30% भूमि द्वारा और शेष महासागरों द्वारा।

Fossil-fuel

  • भूमि की भूमिका का निर्धारण :
    • CO2  उत्सर्जन को कम करने के लिये एक शमन मार्ग के रूप में भूमि (वन और कृषि भूमि) की भूमिका को वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) द्वारा मान्यता दी गई थी।
    • वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल ने इस विचार का समर्थन किया कि सरकारों को न केवल अपने क्षेत्रों की भूमि कार्बन सिंक क्षमता को बढ़ाने के लिये नीतियों को नियोजित करना चाहिये, बल्कि इस तरह के शमन को जीवाश्म ईंधन की खपत से उत्सर्जन में कमी करने हेतु आवश्यकताओं के खिलाफ स्थापित किया जा सकता है।
  • संबंधित आँकड़े :
    • वर्ष 2019 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2007-2016 के दौरान मानवजनित CO2  उत्सर्जन का 13% भूमि उपयोग के लिये ज़िम्मेदार है।
      • लेकिन इसने प्रतिवर्ष लगभग 11.2 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड का शुद्ध सिंक भी प्रदान किया, जो इसी अवधि में कुल CO2  उत्सर्जन के 29% के बराबर है।
    • इसका आशय यह है कि विगत तीन दशकों के दौरान दुनिया के भूमि सिंक द्वारा 29 से 30% मानवजनित CO2  उत्सर्जन को अवशोषित किया गया है।
  • चिंताएँ :
    • ऊष्मा का बढ़ता स्तर :
      • ऊष्मा का बढ़ता स्तर वनों में आर्द्रता की कमी को बढ़ा रहा है तथा जंगलों को भीषण आग/उष्मन का सामना करना पड़ रहा है।
      • इसलिए एक ओर विभिन्न आर्थिक गतिविधियों हेतु वनों को काटा जा रहा है, जिससे जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाले COको कम करने के लिये सिंक के रूप में उनकी भूमिका कम हो रही है।
      • दूसरी ओर जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी वैसे-वैसे वनों के क्षेत्रफल में कमी आएगी। 
    • मानवजनित और प्राकृतिक कारक:
      • मानव-प्रेरित कारक जैसे वनों की कटाई तथा प्राकृतिक कारक जैसे- धूप, तापमान और वर्षा में परिवर्तनशीलता, भूमि कार्बन सिंक की क्षमता में भिन्नता पैदा कर सकती है।
    • CO2 की मात्रा में वृद्धि:
      • जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट: IPCC के अनुसार CO2  उत्सर्जन कम-से-कम दो मिलियन वर्षों में सबसे अधिक है। 1800 के दशक के अंत से मनुष्य ने 2,400 बिलियन टन CO2 का उत्सर्जन किया है।
  • सुझाव:
    • वृक्ष लगाना:
      • पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि को रोकने हेतु वैश्विक स्तर पर आवश्यक पैमाने पर जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिये किसी उचित रणनीति को अपनाया नहीं जा रहा है।
      • इसी स्थित के समाधान हेतु ऐसे तरीके खोजे जाएंँ जिनसे वातावरण में उत्सर्जन को हटाया जा सके और पेड़ उगाने की रणनीति को इसका प्रयास का हिस्सा बनाया जाए।
    • जीवाश्म ईंधन से मुक्त होना :
      • विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ने के इस क्रम में भूमि का उपयोग करने की आवश्यकता है; लेकिन अंत में जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाना होगा।
    • कृत्रिम कार्बन पृथक्करण:
      • कृत्रिम कार्बन पृथक्करण प्रौद्योगिकियांँ बड़ी मात्रा में कार्बन को कुशलता से कैप्चर कर इसे परिवर्तित करती हैं और इसे हज़ारों वर्षों तक संग्रहीत भी करती हैं।
        • यह तकनीक चार्ज इलेक्ट्रोकेमिकल प्लेटों से हवा के गुज़रने की पद्धति पर  आधारित है।
      • प्रौद्योगिकी का उद्देश्य भविष्य के लिये कोयले को एक व्यवहार्य, तकनीकी, पर्यावरणीय अनुकूल और आर्थिक मुद्दा बनाना है।
  • संबंधित पहलें:
    • बॉन चुनौती:
      • बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
      • बॉन चैलेंज एक वैश्विक प्रयास है जिसके तहत 2020 तक दुनिया की वनों की कटाई और खराब हुई भूमि के 150 मिलियन हेक्टेयर और 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि को बहाल किया जा सकता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक :
      • मार्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2021-2030 को दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को रोकने के लिये पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के रूप में घोषित किया है।
    •  LEAF गठबंधन:
      • यह अमेरिका, ब्रिटेन और नॉर्वे के नेतृत्व में अपने उष्णकटिबंधीय वनों (Tropical Forests) की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध देशों को वित्तपोषण प्रदान हेतु कम-से-कम 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर जुटाने का एक प्रयास है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ  

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