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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोडाइकनाल सौर वेधशाला

  • 08 Apr 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का आदित्य-एल1 मिशन, सौर वेधशाला, सनस्पॉट और सौर ज्वालाएँ, KoSO (कोडाईकनाल सौर वेधशाला)।

मेन्स के लिये:

सौर वेधशाला, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोडाइकनाल सौर वेधशाला ने अपना 125वाँ स्थापना दिवस मनाया। वर्षों से इसने सौर गतिविधि और पृथ्वी की जलवायु तथा अंतरिक्ष के मौसम पर अपने प्रभाव के बारे में हमारी समझ को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सौर वेधशाला क्या है?

  • परिचय: सौर वेधशाला एक ऐसा संस्थान है जो सूर्य के अवलोकन और अध्ययन के लिये समर्पित है।
    • ये वेधशालाएँ सूर्य की सतह, उसके वायुमंडल और आसपास के स्थान पर विभिन्न घटनाओं का निरीक्षण करने के लिये विशेष दूरबीनों एवं उपकरणों का उपयोग करती हैं।
  • आवश्यकता: सूर्य पृथ्वी पर जीवन के लिये ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य करता है और इसकी सतह या आसपास के क्षेत्रों में परिवर्तन हमारे पृथ्वी के वायुमंडल को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
    • तीव्र सौर आंधियाँ और सौर ज्वालाएँ अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकी पर निर्भर उपग्रह संचालन, पावर ग्रिड एवं नेविगेशन प्रणालियों के लिये अत्यधिक जोखिम उत्पन्न करती हैं।
    • सौर वेधशालाओं के माध्यम से, वैज्ञानिक इन घटनाओं की निगरानी और भविष्यवाणी भी कर सकते हैं जिनका पृथ्वी के वायुमंडल पर प्रभाव पड़ सकता है।

कोडाइकनाल सौर वेधशाला क्या है?

  • परिचय: कोडाइकनाल सौर वेधशाला एक सौर वेधशाला है जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा किया जाता है। इसकी स्थापना 1899 में की गई थी।
    • यह पलनी पहाड़ियों के दक्षिणी सिरे पर है।
    • एवरशेड प्रभाव (सूर्य पर उसके धब्बों के पेनुम्ब्रा (बाहरी क्षेत्र) में देखा गया गैस का स्पष्ट रेडियल प्रवाह) पहली बार जनवरी 1909 में इस वेधशाला में पाया गया था।
  • स्थापना का कारण: भारत में कोडाइकनाल सौर वेधशाला (KoSO) की स्थापना, सौर गतिविधि और मानसून के बीच संबंध को समझने की आवश्यकता से प्रेरित थी।
    • भारत में वर्ष 1875-1877 के विनाशकारी भीषण सूखे ने सौर गतिविधि और मौसमी वर्षा पैटर्न के बीच संभावित संबंध पर प्रकाश डाला।
      • चीन, मिस्र, मोरक्को, इथियोपिया, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राज़ील, कोलंबिया और वेनेज़ुएला के साथ भारत को वर्ष 1876-1878 के दौरान 3 वर्षों तक सूखे का सामना करना पड़ा, जिसे बाद में भीषण सूखे का नाम दिया गया, और इन देशों को एक वैश्विक अकाल का सामना करना पड़ा, जिसमें लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए।
    • अकाल आयोग ने इस संबंध को समझने के लिये व्यवस्थित सौर अवलोकन के लिये एक सौर वेधशाला स्थापित करने की सिफारिश की।
    • चार्ल्स मिचि स्मिथ, एक भौतिक विज्ञानी, को एक उपयुक्त स्थान की खोज करने का काम सौंपा गया था।
      • तमिलनाडु में कोडाइकनाल स्थान को इसके साफ आसमान, कम आर्द्रता और न्यूनतम कोहरे के कारण चुना गया था।
  • मद्रास वेधशाला (चेन्नई, 1792): वर्ष 1792 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास वेधशाला की स्थापना की, जो विश्व के इस भाग में अपनी तरह की पहली वेधशाला थी।
    • यहाँ, वर्ष 1812-1825 के दौरान दर्ज किये गए सूर्य, चंद्रमा, चमकीले सितारों और ग्रहों के खगोलीय अवलोकनों को दो बड़े डेटा संस्करणों द्वारा संरक्षित किया गया था।
    • अप्रैल, 1899 में सभी भारतीय वेधशालाओं के पुनर्गठन के बाद इसे KoSO में मिला दिया गया।

भारत में स्थापित अन्य प्रमुख अंतरिक्ष वेधशालाएँ कौन-सी हैं?

  • भारतीय खगोलीय वेधशाला (IAO), हनले: यह लद्दाख में स्थित है और देश के प्रमुख खगोलीय संस्थानों में से एक है।
    • यह वेधशाला भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा संचालित है और खगोल विज्ञान तथा भौतिकी के क्षेत्र में भारत के योगदान को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • माउंट आबू इन्फ्रारेड वेधशाला (MIO): यह भारत के राजस्थान के अरावली रेंज में माउंट आबू (गुरुशिखर पर) के शीर्ष पर स्थित है।
    • इसका संचालन भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) द्वारा किया जाता है।
    • इन्फ्रारेड खगोल विज्ञान में विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के इन्फ्रारेड हिस्से में आकाशीय वस्तुओं और घटनाओं का अवलोकन करना शामिल है।
  • विशाल मेट्रोवेव रेडियो टेलीस्कोप: यह भारत के पुणे के पास स्थित एक प्रमुख रेडियो खगोल विज्ञान केंद्र है।
    • नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स (NCRA) द्वारा संचालित, GMRT में एक बड़े क्षेत्र में फैले 30 पूरी तरह से चलाने योग्य परवलयिक रेडियो दूरबीन शामिल हैं।
    • इसका डिज़ाइन रोप ट्रस से जुड़े स्ट्रेच मेश के SMART कॉन्सेप्ट पर आधारित है।

सूर्य का अध्ययन करने के अन्य वैश्विक प्रयास और मिशन:

  • भारत का आदित्य-एल1 मिशन: आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की पर्याप्त दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है।
  • नासा का पार्कर सोलर प्रोब: इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि सूर्य के कोरोना(वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग) के माध्यम से ऊर्जा और ऊष्मा कैसे निष्काषित होती है साथ ही इसका उद्देश्य सौर पवनों के त्वरण के स्रोत का अध्ययन करना भी है।
  • हाल ही में, इसने कोरोनल मास इजेक्शन के भीतर अपनी तरह का पहला अवलोकन किया।
  • इससे पहले 'हेलिओस 2' सौर प्रोब नासा और तत्कालीन पश्चिम जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी का संयुक्त उपक्रम था जोकि वर्ष 1976 में सूर्य की सतह के 43 मिलियन किलोमीटर के दायरे तक पहुँचा था।
  • सोलर ऑर्बिटर: डेटा एकत्र करने के लिये यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी तथा नासा द्वारा चलाया गया संयुक्त मिशन जो हेलियोफिज़िक्स के एक केंद्रीय प्रश्न का उत्तर देने में सहायता करेगा जैसे कि सूर्य पूरे सौर मंडल में निरंतर परिवर्तित अंतरिक्ष वातावरण का निर्माण और नियंत्रण कैसे करता है, आदि।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सोलर ऑब्ज़र्वेशन और सोलर एक्टिविटी डेटा गंभीर भूगर्भीय एवं वायुमंडलीय परिघटनाओं की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान में कैसे सहायक हैं? इस क्षेत्र में भारत की प्रगति के संदर्भ में चर्चा कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा प्रमोचित मंगलयान

  1. को मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
  2.  ने भारत को USA के बाद मंगल के चारों ओर अंतरिक्ष यान को चक्रमण कराने वाला दूसरा देश बना दिया है।
  3.  ने भारत को एकमात्र ऐसा देश बना दिया है, जिसने अपने अंतरिक्ष यान को मंगल के चारों ओर चक्रमण कराने में पहली बार में ही सफलता प्राप्त कर ली।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न.अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

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