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जैव विविधता और पर्यावरण

ESZ अधिसूचना के खिलाफ केरल का विरोध प्रदर्शन

  • 19 Jul 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, संरक्षित वन।

मेन्स के लिये:

जैवविविधता और इसका संरक्षण, पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना।

चर्चा में क्यों?

केरल में किसान पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (ESZ) स्थापित करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का विरोध कर रहे हैं।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों सहित प्रत्येक संरक्षित वन की सीमांकित सीमा से न्यूनतम एक किलोमीटर तक के क्षेत्र को अनिवार्य रूप से ESZ घोषित करने का निर्देश दिया है।
  • केरल राज्य विधानसभा ने केंद्र से राज्य सरकार के प्रस्तावों पर विचार करकें ज़ोन्स को अधिसूचित करने की मांग की है, जिसमें राज्य के लगभग 10 संरक्षित क्षेत्रों को शून्य ESZ के रूप में चिह्नित किया गया है।

इको सेंसिटिव ज़ोन:

  • परिचय:
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) ने निर्धारित किया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को इको सेंसिटिव ज़ोन या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिये।
    • जबकि 10 किमी. के नियम को एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया जाता है, इसके आवेदन की सीमा भिन्न हो सकती है।
    • वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओ से 10 किमी. से अधिक के क्षेत्रों को भी केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है, यदि वे पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण "संवेदनशील गलियारे" हैं।
  • महत्त्व:
    • ESZs को संरक्षित क्षेत्रों के लिये "शॉक एब्जॉर्बर" के रूप में बनाया गया है ताकि आस-पास होने वाली कुछ मानवीय गतिविधियों के "कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र" पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
    • ये क्षेत्र उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करेंगे।
    • ESZ का उद्देश्य आस-पास रहने वाले लोगों की दैनिक गतिविधियों में बाधा डालना नहीं हैं, बल्कि संरक्षित क्षेत्रों की रक्षा करने और आसपास के वातावरण को परिष्कृत करने में मदद करना है।

पृष्ठभूमि:

  • यह आदेश (Order) पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) की रिपोर्ट (गाडगिल रिपोर्ट) के एक दशक बाद आया है, जिसने राज्य में सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक और पारिस्थितिक आख्यानों को मौलिक रूप से प्रभावित किया था।
    • हालाँकि यह WGEEP रिपोर्ट से पहले के दिनों में राज्य द्वारा देखी गई उच्च-स्तरीय सार्वजनिक अशांति और विरोध के स्तर तक सीमित नहीं रहा बल्कि ESZ अधिसूचना ने भी राज्यव्यापी विरोध शुरू कर दिया है।
  • इससे पहले राज्य सरकार ने अपने मसौदा ESZ अधिसूचना के दायरे से उच्च जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों, सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संस्थानों तथा सार्वजनिक संस्थानों को बाहर करने पर ध्यान केंद्रित किया था।
  • पड़ोसी राज्यों के साथ वन सीमा साझा करने वाले संरक्षित क्षेत्रों के लिये ESZ का अंकन एक शांतिपूर्ण मामला था क्योंकि बीच में कोई मानव बस्ती नहीं थी।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया आदेश ने तस्वीर बदल दी है और राज्य सरकार को कम-से-कम दस संरक्षित क्षेत्रों के ESZ पर पुनर्विचार करने के लिये कहा गया है जिन्हें पहले शून्य ESZ के रूप में चिह्नित किया गया था।

ESZ अधिसूचना:

  • इस अधिसूचना से केरल में अप्रिय स्थिति पैदा हो गई है जहाँ भूमि और भूमि उपयोग पैटर्न पर किसी भी नियामक तंत्र का राजनीतिक प्रभाव होगा।
  • केरल अपने अनूठे परिदृश्य पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंतित है।
    • केरल में लगभग 30% वन भूमि है और पश्चिमी घाट राज्य के 48% हिस्से पर उसका कब्ज़ा है।
  • अधिसूचित संरक्षित क्षेत्रों के पास मानव आबादी के उच्च घनत्व के कारण किसान समूह और राजनीतिक दल मांग कर रहे हैं कि सभी मानव बस्तियों को ESZ नियमों से छूट दी जाए।
  • राज्य सरकार को आशंका है कि सर्वोच्च न्यायालय की अधिसूचना से ज़मीनी स्थिति और खराब हो सकती है क्योंकि इससे राज्य के हितों पर तथा संरक्षित क्षेत्रों के पास रहने वाले लाखों लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

आगे की राह

  • राज्यों को प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में आम जनता के लाभ के लिये एक ट्रस्टी के रूप में कार्य करना चाहिये ताकि दीर्घकालिक विकास को प्राप्त किया जा सके।
  • सरकार को अपनी भूमिका को राज्य के तत्काल उत्थान के लिये आर्थिक गतिविधियों के सूत्रधार की भूमिका तक सीमित नहीं रखना चाहिये।
  • वनीकरण और अवक्रमित वनों का पुनर्वनीकरण, लुप्त आवासों का पुनरुद्धार, कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • संरक्षण तकनीकों का प्रचार-प्रसार करना, संसाधनों के अत्यधिक दोहन और जनता के बीच इसके प्रतिकूल

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस

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