प्रारंभिक परीक्षा
वायनाड वन्यजीव अभयारण्य
ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत के साथ ही कर्नाटक और तमिलनाडु के निकटवर्ती वन्यजीव अभयारण्यों से केरल के वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (WWS) की ओर वन्यजीवों का मौसमी प्रवास शुरू हो गया है।
- वर्ष भर चारे और पानी की आसान उपलब्धता के कारण गर्मियों के दौरान यह अभयारण्य वन्यजीवों का एक पसंदीदा आश्रय स्थल है।
कहाँ अवस्थित है वायनाड वन्यजीव अभयारण्य?
- केरल में स्थित वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (WWS) नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का एक अभिन्न अंग है। इसकी स्थापना वर्ष 1973 में हुई थी।
- नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व यूनेस्को द्वारा नामित वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व में शामिल होने वाला भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व था (2012 में नामित) ।
- इस रिज़र्व के अंतर्गत आने वाले अन्य वन्यजीव उद्यानों में मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली शामिल हैं।
- 344.44 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैला हुआ वायनाड वन्यजीव अभयारण्य कर्नाटक के नागरहोल और बांदीपुर तथा तमिलनाडु के मुदुमलाई के बाघ अभयारण्यों से सटा हुआ है।
- काबिनी नदी (कावेरी नदी की एक सहायक नदी) इस अभयारण्य से होकर बहती है।
- यहाँ पाए जाने वाले वन प्रकारों में दक्षिण भारतीय नम पर्णपाती वन, पश्चिमी तटीय अर्द्ध-सदाबहार वन और सागौन, नीलगिरी/यूकेलिप्टस तथा ग्रेवेलिया के जंगल शामिल हैं।
- यहाँ हाथी, गौर, बाघ, चीता, सांभर, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, स्लॉथ बियर, नीलगिरि लंगूर, बोनट मकाक, सामान्य लंगूर, मालाबार विशाल गिलहरी आदि प्रमुख स्तनधारी पाए जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
पॉवरथॉन-2022
हाल ही में केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने पावरथॉन-2022 की शुरुआत की।
पॉवरथॉन-2022 के बारे में:
- यह बिजली वितरण में जटिल समस्याओं को हल करने के लिये प्रौद्योगिकी संचालित समाधान खोजने हेतु पुनरोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (Revamped Distribution Sector Scheme-RDSS) के तहत लॉन्च की गई हैकाथॉन प्रतिस्पर्द्धा है।
- इस हैकाथॉन में स्टार्ट-अप, प्रौद्योगिकी समाधान प्रदाता (TSPs), शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थान, उपकरण निर्माता, राज्य विद्युत इकाइयाँ व राज्य एवं केंद्रीय बिजली क्षेत्र की अन्य संस्थाओं की भागीदारी होगी।
- इस हैकाथॉन की नौ थीम्स हैं: मांग/भार पूर्वानुमान, कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) हानि में कमी, ऊर्जा की चोरी का पता लगाना, वितरण ट्रांसफार्मर (DT) विफलता का अनुमान, संपत्ति निरीक्षण, वनस्पति प्रबंधन, उपभोक्ता के अनुभव में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा का संयोजन और बिजली खरीद का अनुकूलन।
RDSS क्या है?
- जुलाई 2021 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने डिस्कॉम (निजी क्षेत्र के डिस्कॉम को छोड़कर) की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार हेतु इसे मंज़ूरी दी थी।
- यह डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) की आपूर्ति के लिये बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- एकीकृत विद्युत विकास योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना जैसी सभी मौजूदा बिजली क्षेत्र सुधार योजनाओं को इस अम्ब्रेला कार्यक्रम में मिला दिया जाएगा।
- यह योजना वर्ष 2025-26 तक उपलब्ध रहेगी।
- आरडीएसएस (RDSS) एक सुधार-आधारित और परिणाम से जुड़ी योजना है तथा आरडीएसएस का प्रमुख उद्देश्य एटीएंडसी (AT&C) के नुकसान को 12-15% तक कम करना, वर्ष 2024-25 तक राजस्व लागत अंतर को समाप्त करने के साथ ही विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता व विश्वसनीयता में सुधार करना है।
विद्युत क्षेत्र से संबंधित अन्य योजनाएँ क्या हैं?
- प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य)
- एकीकृत विद्युत विकास योजना
- दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY)
- गर्व (ग्रामीण विद्युतीकरण) एप
- उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना
- संशोधित टैरिफ नीति में ‘4 Es’
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण के निवारण में सूक्ष्मजीवों का उपयोग
अर्जेंटीना के वैज्ञानिकों की एक टीम अंटार्कटिका के मौलिक विस्तार में मौजूद ईंधन और संभावित प्लास्टिक प्रदूषण को साफ करने के विचार का पता लगाने के लिये मूल रूप से अंटार्कटिका में पाए जाने वाले माइक्रोब्स (सूक्ष्मजीवों) का उपयोग कर रही है।
- यह महाद्वीप वर्ष 1961 के मैड्रिड प्रोटोकॉल द्वारा संरक्षित है जो यह निर्धारित करता है कि इसे एक प्राचीन अवस्था में रखा जाना चाहिये।
- विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों हेतु हर वर्ष 300 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। प्रति वर्ष कम-से-कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में फैक दिया जाता है और यह सतही जल से लेकर गहरे समुद्र में तलछट तक कुल समुद्री मलबे का लगभग 80% हिस्सा होता है।
सूक्ष्मजीवों पर कैसे किया गया यह शोध?
- शोधकर्त्ताओं ने अंटार्कटिक समुद्र से प्लास्टिक के नमूने एकत्र किये और यह पता लगाने का प्रयास किया कि सूक्ष्मजीव प्लास्टिक का उपभोग कर रहे हैं या केवल उन्हें राफ्ट के रूप में उपयोग कर रहे हैं।
- इसके बाद टीम ने जैवोपचार की प्रक्रिया का उपयोग किया।
- टीम ने नाइट्रोजन, आर्द्रता (Humidity) और वातन (Aeration) के साथ रोगाणुओं को उनकी स्थितियों को अनुकूलित करने में मदद की।
- इस कार्य में स्थानिक सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया और कवक जो दूषित होने के बावजूद अंटार्कटिक की मृदा में रहते हैं) की क्षमता का उपयोग किया जाता है तथा इन सूक्ष्मजीवों को हाइड्रोकार्बन के उपभोग हेतु मजबूर किया जाता है।
- ये सूक्ष्म रोगाणु अपशिष्टों को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर उनका उपभोग करते हैं और इस प्रकार जमे हुए अंटार्कटिक में स्थित अनुसंधान केंद्रों में बिजली तथा ऊष्मा के स्रोत के रूप में उपयोग किये जाने वाले डीज़ल के कारण होने वाले प्रदूषण के लिये एक प्राकृतिक क्लीनिंग सिस्टम का निर्माण करते हैं।
- प्लास्टिक अपशिष्ट के मामले में सूक्ष्मजीव किस प्रकार मदद कर सकते हैं, इस विषय पर शोध से व्यापक पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान मिलने की संभावना है।
बायोरेमेडिएशन:
- इसे उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पर्यावरण में मौजूद दूषित पदार्थों को उनकी मूल स्थिति से हटाने एवं बेअसर करने के लिये सूक्ष्मजीवों या उनके एंज़ाइमों का उपयोग किया जाता है।
- बायोरेमेडिएशन का उपयोग तेल रिसाव या दूषित भू-जल को साफ करने में किया जाता है।
- बायोरेमेडिएशन के तहत ‘इन सीटू’- संदूषण को साइट पर या ‘एक्स सीटू’- संदूषण को साइट से दूर ले जाकर हटाया जाता है।
बायोरेमेडिएशन के लाभ:
- बायोरेमेडिएशन पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर आधारित है जो पारिस्थितिक तंत्र को होने वाले नुकसान को कम करता है।
- बायोरेमेडिएशन की प्रक्रिया अक्सर भूमिगत की जाती है, जहांँ भू-जल और मिट्टी में दूषित पदार्थों को साफ करने हेतु सूक्ष्म जीवों को पंप किया जा सकता है।
- नतीजतन, बायोरेमेडिएशन से आस-पास के समुदाय उतने प्रभावित नहीं होते जितना कि अन्य सफाई/शुद्धिकरण पद्धतियों के कारण होते हैं।
- पर्यावरण में "संशोधन/सुधार", जैसे कि गुड़, वनस्पति तेल, या साधारण वायु, सूक्ष्मजीवों के पनपने हेतु परिस्थितियों का अनुकूलन करते हैं, जिससे बायोरेमेडिएशन प्रक्रिया के पूरा होने में तेज़ी आती है।
- बायोरेमेडिएशन प्रक्रिया में अपेक्षाकृत कुछ हानिकारक गौण उत्पाद निर्मित होते हैं (मुख्य रूप से इस तथ्य के कारण कि संदूषक और प्रदूषक जल और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों में परिवर्तित हो जाते हैं)।
- अधिकांश सफाई विधियों की तुलना में बायोरेमेडिएशन सस्ता है क्योंकि इसमें पर्याप्त उपकरण या श्रम की आवश्यकता नहीं होती है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 फरवरी, 2022
‘परम प्रवेग’ सुपर कंप्यूटर
बंगलूरू स्थित ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’ (IISc) ने ‘परम प्रवेग’ नामक सुपरकंप्यूटर को कमीशन करने की घोषणा की है, जो कि राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत नवीनतम सुपर कंप्यूटर है। भारतीय विज्ञान संस्थान के मुताबिक, ‘परम प्रवेग’ भारत में सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटरों में से एक है। ‘परम प्रवेगा’ सुपरकंप्यूटर में 3.3 पेटाफ्लॉप्स की कुल सुपरकंप्यूटिंग क्षमता मौजूद है (1 पेटाफ्लॉप या 1015 ऑपरेशन प्रति सेकेंड के बराबर)। इस सुपरकंप्यूटर का इस्तेमाल अनुसंधान हेतु किया जाएगा। ‘परम प्रवेग’ सुपरकंप्यूटर में सीपीयू नोड्स के लिये इंटेल ज़ियोन कैस्केड लेक प्रोसेसर और जीपीयू नोड्स पर एनवीआईडीआईए टेस्ला वी100 कार्ड के साथ विषम नोड्स का मिश्रण है। परम प्रवेग सुपरकंप्यूटर में कंप्यूट नोड्स के 11 डीसीएलसी रैक, मास्टर/सर्विस नोड्स के 2 सर्विस रैक और डीडीएन स्टोरेज के 4 स्टोरेज रैक शामिल हैं। ‘परम प्रवेग’ सुपरकंप्यूटर को ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग’ (सी-डैक) द्वारा डिज़ाइन किया गया है। इस प्रणाली को बनाने हेतु उपयोग किये जाने वाले अधिकांश घटकों को सी-डैक द्वारा विकसित एक स्वदेशी सॉफ्टवेयर स्टैक के साथ भारत में निर्मित और असेंबल किया गया है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन का संचालन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा किया जाता है तथा सी-डैक एवं IISc द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
सघन मिशन इंद्रधनुष 4.0
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने देश में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को गंभीर बीमारियों से बचाने के लिये हाल ही में ‘सघन मिशन इंद्रधनुष’ के चौथे चरण का शुभारंभ किया है। यह देश में पूर्ण टीकाकरण हेतु एक विशेष अभियान है। इस मिशन के माध्यम से पूर्ण टीकाकरण को और अधिक गति मिलेगी। ज्ञात हो कि मिशन के तहत अब तक बच्चों का टीकाकरण कवरेज बढ़कर 76 प्रतिशत से अधिक हो गया है। ‘सघन मिशन इंद्रधनुष’ कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी। सघन मिशन इंद्रधनुष के तहत उन शहरी क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया, जो मिशन इंद्रधनुष के तहत छूट गए थे। इसके पश्चात् वर्ष 2020 में सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0 और वर्ष 2021 में सघन मिशन इंद्रधनुष 3.0 की शुरुआत की गई।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति
सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित को जेएनयू का नया कुलपति नियुक्त किया गया है। प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित जेएनयू की पहली महिला कुलपति होंगी। वह जेएनयू के कार्यवाहक कुलपति प्राेफेसर एम जगदीश कुमार की जगह लेंगी। इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। वह जेएनयू की पूर्व छात्रा भी रहीं हैं। प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित पुणे विश्वविद्यालय में राजनीति एवं लोक प्रशासन विभाग की प्रोफेसर रही हैं। प्रोफेसर पंडित ने जेएनयू से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और भारतीय संसद एवं विदेश नीति पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। साथ ही उन्होंने अमेरिका की कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी से सोशल वर्क में डिप्लोमा भी किया है। विज्ञान प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से उन्होंने इतिहास और सामाजिक मनोविज्ञान में बीए एवं एमए किया है। प्रोफेसर पंडित ने 1988 में गोवा विश्वविद्यालय से अपने अकादमिक शिक्षण कॅरियर की शुरुआत की और इसके बाद 1993 में वह पुणे विश्वविद्यालय चली गईं। उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक निकायों में प्रशासनिक पदों पर कार्य किया है। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) की सदस्य भी रही हैं।
सचिंद्र नाथ सान्याल
देश ने क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल को उनकी 80वीं पुण्यतिथि पर याद किया। आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल का दौरा किया और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी। सचिंद्र नाथ सान्याल का जन्म तत्कालीन उत्तर-पश्चिमी प्रांत बनारस शहर में वर्ष 1893 में हुआ था। कम उम्र से ही सान्याल अपने मनमौजी और क्रांतिकारी विचारों के लिये जाने जाते थे। 20 साल की उम्र में उन्होंने पटना में अनुशीलन समिति की एक शाखा खोली। सचिंद्र नाथ सान्याल ने गदर पार्टी की साजिश के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिसके लिये उन्हें सज़ा सुनाई गई। उन्होंने जेल में ही अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बंदी जीवन (ए लाइफ ऑफ कैप्टिविटी, 1922) लिखी। सान्याल को वर्ष 1925 में काकोरी षड्यंत्र में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया गया। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन के संस्थापक थे जिसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से भी जाना जाता है। सचिंद्र नाथ सान्याल देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के गुरु थे। सचिंद्र नाथ सान्याल की मृत्यु 7 फरवरी, 1942 को सेलुलर जेल में हुई।