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शासन व्यवस्था

केरल में हाई-टेक क्लासरूम

  • 13 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

फर्स्ट बेल कार्यक्रम, नमथ बसई कार्यक्रम

मेन्स के लिये

केरल सरकार के शिक्षा संबंधी कार्यक्रम, भारत के सरकारी विद्यालयों की स्थिति और उनकी समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने हाल ही में घोषणा की है कि केरल देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहाँ सरकार द्वारा संचालित और सहायता प्राप्त सभी विद्यालय हाई-टेक क्लासरूम या हाई-टेक लैब से सुसज्जित हैं।

प्रमुख बिंदु

  • परियोजना की प्रमुख उपलब्धियाँ 
    • राज्य के विद्यालयों को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित करने के लिये केरल सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के तहत प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक के 16,027 विद्यालयों को 3.74 लाख डिजिटल गैजेट्स प्रदान किये गए हैं।
    • राज्य के हाईस्कूल और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 40,000 कक्षाओं को स्मार्ट कक्षाओं में परिवर्तित किया गया है।
    • राज्य के 12,678 विद्यालयों में हाई स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित की गई है। साथ ही राज्य के विद्यालयों में तकरीबन 2 लाख लैपटॉप वितरित किये गए हैं।
    • केरल सरकार की इस परियोजना का कार्यान्वयन केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) द्वारा किया जा रहा था, जो कि राज्य में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये एक नोडल एजेंसी है। वहीं इस परियोजना का वित्तपोषण केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) द्वारा किया जा रहा था।

  • केरल सरकार के शिक्षा संबंधी अन्य कार्यक्रम
    • केरल सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के कारण विद्यालयों के बंद होने के बाद राज्य के 41 लाख छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिये 'फर्स्ट बेल' नामक ऑनलाइन कार्यक्रम द्वारा नियमित कक्षाएँ प्रारंभ की थीं।
      • इस ऑनलाइन पहल के अंतर्गत केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (KITE) द्वारा नए शैक्षणिक सत्र हेतु कक्षाओं का राज्य सरकार के शैक्षणिक टीवी चैनल विक्टर्स (Victers) पर प्रसारण किया जा रहा है।
    • इसके अलावा केरल सरकार जनजातीय बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिये नमथ बसई (Namath Basai) नाम से एक कार्यक्रम का भी संचालन कर रही है।
      • नमथ बसई (Namath Basai) कार्यक्रम को ‘समग्र शिक्षा केरल’ (SSK) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
      • इस कार्यक्रम के माध्यम से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। 

भारत में सरकारी स्कूलों से संबंधित समस्याएँ

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में 10 लाख से अधिक सरकारी विद्यालय हैं। वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सरकारी विद्यालयों में जाने वाले बच्चों की कुल संख्या लगभग 52.2 प्रतिशत है, जो कि वर्ष 1978 में तकरीबन 74.1 प्रतिशत थी। 
  • चुनौतियाँ
    • वित्तपोषण की कमी: कोठारी आयोग (1964-1966) ने सार्वजनिक शिक्षा पर देश की GDP का कुल 6 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने की सिफारिश की थी, किंतु आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत ने शिक्षा क्षेत्र पर अपनी GDP का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया था। यह भारत में सार्वजनिक शिक्षा के वित्तपोषण की कमी को दर्शाता है, जिसके कारण सुधार की संभावना काफी कम हो जाती है।
    • शैक्षणिक संसाधनों की कमी: वित्तपोषण में कमी के कारण भारत के सरकारी विद्यालयों को शैक्षणिक संसाधनों की कमी जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। कई सरकारी विद्यालयों में ब्लैकबोर्ड, किताबें, स्टेशनरी और डेस्क जैसे बुनियादी संसाधनों की भी कमी देखी जाती है, जिसका प्रभाव विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के सीखने की क्षमता पर पड़ता है।
    • अध्यापकों की कमी: शिक्षकों और प्रशिक्षकों की कमी भी देश के सार्वजनिक विद्यालयों की एक बड़ी समस्या है, देश में खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई विद्यालय हैं, जहाँ पर्याप्त संख्या में शिक्षक मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा कई बार शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्य (जैसे चुनाव) में नियुक्त कर दिया जाता है, जिसके कारण उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
    • विद्यार्थियों की अत्यधिक संख्या: भारत में जनसंख्या और गरीबी दोनों में ही वृद्धि हो रही है, जिसके कारण सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। देश में अधिकांश सरकारी विद्यालय ऐसे हैं जहाँ क्षमता से अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं, जिसके कारण शिक्षकों के लिये सभी विद्यार्थियों पर ध्यान केंद्रित करना अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

आगे की राह

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 को मंज़ूरी दी है, जिसमें छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है। 
  • साथ ही इस शिक्षा नीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी के 6 प्रतिशत हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है।
  • उम्मीद है कि नई शिक्षा नीति से भारत की सार्वजनिक शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आएगा और वित्तपोषण, शैक्षणिक संसाधनों तथा अध्यापकों की कमी जैसी समस्याओं को समाप्त किया जा सकेगा।
  • देश के सरकारी विद्यालयों के लिये केरल और दिल्ली द्वारा स्थापित शिक्षा मॉडलों की समीक्षा की जा सकती है और परिस्थितियों के अनुकूल उनमें परिवर्तन किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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