मुख्य परीक्षा
कर्नाटक जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट
- 16 Apr 2025
- 7 min read
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा आयोजित जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की गई, जिसे आधिकारिक रूप से सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण कहते हैं।
- इस सर्वेक्षण में आरक्षण कोटा संरचना में महत्त्वपूर्ण सुधार और नई उपश्रेणियाँ शुरू करने की सिफारिश की गई है।
कर्नाटक जाति सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- मुख्य निष्कर्ष: अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या राज्य की समष्टि का 69.6% होने का अनुमान है, जो पहले के अनुमानों से लगभग 38% अधिक है।
- वोक्कालिगा (12.2%) और लिंगायत (13.6%) जैसे प्रमुख समुदायों की जनसंख्या में क्रमशः 17% और 15% के पहले के अनुमानों की तुलना में संख्यात्मक गिरावट दर्ज की गई।
- अनुशंसाएँ: सर्वेक्षण में OBC कोटा को मौजूदा 32% से बढ़ाकर 51% करने की अनुशंसा की गई है, जो एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि है जो इंद्रा साहनी (1992) के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण सीमा के विरुद्ध है।
- II A श्रेणी से सबसे पिछड़े वर्गों के लिये एक नई उप-श्रेणी, I B बनाने का सुझाव दिया गया है।
नोट: इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने सकारात्मक कार्रवाई और योग्यता के बीच संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण पर 50% की सीमा निर्धारित की थी। इसमें ही 'क्रीमी लेयर' की संकल्पना प्रस्तुत की गई थी, जिसके अंतर्गत OBC वर्ग के समृद्ध व्यक्तियों को आरक्षण से अपवर्जित किया गया।
जाति सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय: जाति सर्वेक्षण जनसंख्या के नमूने से डेटा एकत्र करने की एक विधि है, जिसमें जाति-आधारित सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह केवल जनसंख्या के एक उपसमूह का सर्वेक्षण होता है।
- यह सर्वेक्षण आमतौर पर राज्य सरकारों द्वारा नीतिगत निर्णयों के लिये एक व्यापक जाति-वार डेटाबेस बनाने के लिये किया जाता है।
- आवश्यकता: SC, ST और OBC की व्यापक श्रेणियों में विविध जातियाँ शामिल हैं, जो प्रायः आंतरिक असमानताओं को छुपा लेती हैं। विस्तृत जातिगत आँकड़ों के बिना, प्रभावशाली उप-समूह लाभ प्राप्त कर लेते हैं, जबकि वास्तविक रूप से वंचित समूह इससे वंचित रह जाते हैं।
- इससे लक्षित नीति निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और प्रभावी कल्याणकारी वितरण के लिये जाति सर्वेक्षण आवश्यक हो जाता है।
- निहितार्थ: साक्ष्य आधारित नीति निर्माण और लक्षित कल्याणकारी योजनाओं को सक्षम बनाता है। जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के आधार पर 50% आरक्षण सीमा पर पुनर्विचार की मांग का समर्थन करता है।
- यह समूह के भीतर असमानताओं को उज़ागर करके पिछड़े वर्गों के समृद्ध वर्गों द्वारा आरक्षण लाभों के दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है।
जाति जनगणना
- जाति जनगणना संपूर्ण जनसंख्या की एक विस्तृत गणना है, जिसमें देश के प्रत्येक व्यक्ति को शामिल करते हुए जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और अन्य जनसांख्यिकीय कारकों पर विस्तृत आँकड़े एकत्र किये जाते हैं।
- जाति जनगणना गृह मंत्रालय, विशेष रूप से भारत के महापंजीयक (RGI) और भारत के जनगणना आयुक्त के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) शुरू की, जिसके तहत सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जाति संरचना पर आँकड़े एकत्र करने के लिये देश भर में घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया गया।
- qसामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) का उद्देश्य हाशिये पर पड़े समूहों की पहचान करना और कल्याण लक्ष्यीकरण में सुधार करना था। हालाँकि, इसके डेटा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अप्रकाशित है या केवल आंशिक रूप से उपलब्ध है, जिससे नीति निर्माण और सार्वजनिक चर्चा में इसकी उपयोगिता सीमित हो गई है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: अंतर-जातीय असमानताओं को दूर करने में जाति सर्वेक्षण के महत्त्व और भारत में आरक्षण नीति पर इसके प्रभावों की जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. क्या कमजोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014) प्रश्न. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण को ध्यान में रखते हुए इसकी भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) |