कालबेलिया नृत्य | 01 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये:

कालबेलिया नृत्य, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत,अनुसूचित जनजाति

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोविड-19 महामारी के कारण कालबेलिया नृत्य (Kalbeliya Dance) करने वाले छात्रों के बीच चेंडाविया (Chendavia) नामक एक एप लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।

Kalbeliya-Dance

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • कालबेलिया नृत्य कालबेलिया समुदाय के पारंपरिक जीवनशैली की एक अभिव्यक्ति है।
    • यह इसी नाम की एक राजस्थानी जनजाति से संबंधित है।
  • इसे वर्ष  2010 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठनों (UNESCO) की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) की सूची में शामिल किया गया था।
    • UNESCO की प्रतिष्ठित सूची उन अमूर्त विरासतों से मिलकर बनी है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
    • यह सूची 2008 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा पर कन्वेंशन के समय स्थापित की गई थी।
  • इस नृत्य रूप में घूमना और रमणीय संचरण शामिल है जो इस नृत्य को देखने लायक बनाता है।
    • कालबेलिया से जुड़े मूवमेंट भी इसे भारत में लोक नृत्य के सबसे भावमय रूपों में से एक बनाते हैं।
  • यह प्रायः किसी भी खुशी के उत्सव पर किया जाता है और इसे कालबेलिया संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है।
  • कालबेलिया नृत्य का एक और अनूठा पहलू यह है कि इसे केवल महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जबकि पुरुष वाद्य यंत्र बजाते हैं और संगीत प्रदान करते हैं।

वाद्य-यंत्र और पोशाक:

  • घेरदार काले घाघरे में (काली स्कर्ट) में महिलाएंँ गोल गोल घूमते हुए सर्प की नकल करते हुए नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष उनके साथ ‘खंजारी’ (khanjari) और ‘पुंगी’ (Poongi) वाद्य यंत्र बजाते हैं, जो पारंपरिक रूप से सांँपों को पकड़ने हेतु बजाया जाता है।
  • नर्तक शरीर पर पारंपरिक टैटू निर्मित करवाते हैं तथा आभूषण, छोटे दर्पण और चांदी के धागे से निर्मित कढ़ाई वाले वस्त्र पहनते हैं।

कालबेलिया संगीत/गीत: 

  • कालबेलिया गीतों में कथाओं एवं कहानियों के माध्यम से पौराणिक ज्ञान का प्रसार किया जाता है।
  • इन गीतों में कालबेलिया के काव्य कौशल का प्रदर्शन होता है जिसका प्रयोग नृत्य प्रदर्शन हेतु गीतों को सहज रूप से लिखने और गीतों को बेहतर बनाने हेतु किया जाता है।
  • पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रेषित गीत और नृत्य एक मौखिक परंपरा का हिस्सा हैं, जिसके लिये  कोई पाठ या प्रशिक्षण नियमावली मौजूद नहीं है।

कालबेलिया जनजाति:

  • कालबेलिया जनजाति के लोग कभी पेशेवर रूप से सर्प को पकड़ने  (Professional Snake Handlers) का कार्य करते थे, आज वे संगीत और नृत्य में अपने पूर्व व्यवसाय को बनाए हुए हैं जो नए व रचनात्मक तरीकों के माध्यम से सामने आ रहा  है।
  • वे खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) में शामिल हैं।
  • कालबेलिया की सबसे अधिक आबादी पाली ज़िले में पाई जाती है, उसके बाद  अजमेर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर ज़िले (राजस्थान) में हैं।

राजस्थान के अन्य पारंपरिक लोक नृत्य: गैर, कच्छी घोड़ी, घूमर, भवई आदि शामिल हैं।

यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त 13 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें

1.

वैदिक जप की परंपरा, 2008

8.

लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ, 2012

2.

रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन, 2008

9.

मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्‍ठान, गायन, ढोलक बजाना और नृत्य करना, 2013

3.

कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर, 2008

10.

जंडियाला गुरु, पंजाब, भारत के ठठेरों के बीच पारंपरिक तौर पर पीतल और तांबे के बर्तन बनाने का शिल्प, 2014

4.

रम्माण, गढ़वाल हिमालय (भारत) के धार्मिक उत्‍सव और परंपरा का मंचन, 2009

11.

योग, 2016

5.

मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक, 2010

12.

नवरोज़, 2016

6.

कालबेलिया राजस्थान का लोकगीत और नृत्य, 2010

13.

कुंभ मेला, 2017

7.

छऊ नृत्य, 2010

स्रोत: द हिंदू