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भारतीय अर्थव्यवस्था

के-शेप्ड इकोनाॅमिक रिकवरी

  • 24 Jan 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

के-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी, इकोनॉमिक रिकवरी के प्रकार

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था की के-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी उदाहरण के साथ, आर्थिक विकास का महत्त्व और सीमाएँ।

चर्चा में क्यों?

ICE360 सर्वे 2021 के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, K-आकार की रिकवरी (K-shaped recovery) कोरोनोवायरस महामारी की चपेट में आई अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होती है।

  • यह सर्वेक्षण मुंबई स्थित थिंक टैंक पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज़्यूमर इकॉनमी (PRICE) द्वारा किया गया है।
  • सर्वेक्षण में अप्रैल और अक्टूबर 2021 के बीच, पहले दौर में 2,00,000 घरों और दूसरे दौर में 42,000 घरों को कवर किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • वार्षिक आय पर प्रभाव:
    • सबसे गरीब 20% भारतीय परिवारों की वार्षिक आय वर्ष 1995 से लगातार बढ़ रही थी, जो महामारी वर्ष 2020-21 में वर्ष 2015-16 के स्तर से 53% कम हो गई है।
    • इसी पाँच वर्ष की अवधि में सबसे अमीर 20% की वार्षिक घरेलू आय में 39% की वृद्धि हुई है, जो पिरामिड के सबसे निचले और शीर्ष भाग पर कोविड के विपरीत आर्थिक प्रभाव को दर्शाता है।

Covid

  • शहरी गरीब सर्वाधिक प्रभावित:
    • सर्वेक्षण से पता चलता है कि महामारी ने शहरी गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित किया जिससे उनकी घरेलू आय कम हो गई है।
      • इसके परिणामस्वरूप अनौपचारिक श्रमिकों और घरेलू कामगारों का रोज़गार चौपट हो गया, जिससे उनकी आय में कमी आई है।
      • महामारी ने वर्ष 2020-21 में कम-से-कम दो तिमाहियों के लिये आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया और इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.3% का संकुचन हुआ।

Rural-Urban-Split

  • शहरों में गरीबों की संख्या में वृद्धि:
    • यद्यपि वर्ष 2016 में सबसे गरीब 20% में से 90% लोग ग्रामीण भारत में रहते थे, यह संख्या वर्ष 2021 में घटकर 70% हो गई।
    • दूसरी ओर, शहरी क्षेत्रों में सबसे गरीब 20% की हिस्सेदारी अब लगभग 10% बढ़कर 30% हो गई है।
  • ‘के-शेप्ड’ रिकवरी पर अर्थशास्त्रियों का दृष्टिकोण:
    • सरकार को कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था की ‘के-शेप्ड’ रिकवरी को रोकने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ ‘ब्राइट स्पॉट’ और बहुत से ‘डार्क स्टेंस’ हैं तथा सरकार को अपने व्यय को ‘सावधानीपूर्वक’ लक्षित करना चाहिये, ताकि कोई बड़ा घाटा न हो।
      • बड़ी फर्में, आईटी और आईटी-सक्षम क्षेत्र ‘ब्राइट स्पॉट’ हैं, साथ ही इसमें यूनिकॉर्न का उदय और वित्तीय क्षेत्र भी शामिल है।
      • ‘डार्क स्टेंस’ के तहत बेरोज़गारी और ‘निम्न खरीद शक्ति’ शामिल हैं, विशेष रूप से निम्न मध्यम वर्ग के बीच, वहीं छोटे और मध्यम आकार की फर्में वित्तीय तनाव का अनुभव कर रही हैं, इसके साथ ही ‘क्रेडिट वृद्धि’ कमज़ोर हो गई है तथा स्कूली शिक्षा की स्थिति भी काफी चिंतनीय है।

आर्थिक रिकवरी

  • परिचय:
    • यह मंदी के बाद ‘व्यापार चक्र’ का एक विशिष्ट चरण है, जिसमें प्रायः व्यावसायिक गतिविधि में निरंतर आधार पर सुधार दर्ज किया जा रहा है।
    • आमतौर पर आर्थिक रिकवरी के दौरान अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ GDP में बढ़ोतरी होती है, आय में वृद्धि होती है और बेरोज़गारी में गिरावट आती है।
  • प्रकार:
  • K-शेप्ड रिकवरी:
    • K-शेप्ड रिकवरी (K-Shaped Recovery) तब होती है, जब मंदी के बाद अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग दर, समय या परिमाण में ‘रिकवरी’ होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों, उद्योगों या लोगों के समूहों में समान ‘रिकवरी’ के सिद्धांत के विपरीत है।
    • K-शेप्ड रिकवरी से अर्थव्यवस्था की संरचना में व्यापक परिवर्तन होता है और आर्थिक परिणाम मंदी के पहले तथा बाद में मौलिक रूप से बदल जाते हैं।
    • इस प्रकार की रिकवरी को ‘K-शेप्ड कहा जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र जब एक मार्ग पर साथ चलते हैं तो डायवर्ज़न के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो कि रोमन अक्षर ‘K’ की दो भुजाओं से मिलती-जुलती है।

K-Shaped

आगे की राह 

  • अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों को संतुलित करने हेतु सरकार को इस समय जहांँ आवश्यक हो वहांँ खर्च करना चाहिये।
  • अगले पांँच वर्षों में देश के समेकित ऋण के लिये विश्वसनीय लक्ष्य की घोषणा के साथ-साथ बजट की गुणवत्ता को आगे बढ़ाने हेतु  एक स्वतंत्र वित्तीय परिषद की स्थापना करना बहुत उपयोगी कदम होगा।
  • सरकारी उद्यमों के कुछ हिस्सों और अधिशेष सरकारी भूमि सहित परिसंपत्ति बिक्री के माध्यम से बजटीय संसाधनों का विस्तार किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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