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झारखंड हाईकोर्ट द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरी में आरक्षण से संबंधित कानून पर रोक

  • 19 Dec 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 16, अनुच्छेद 371(d), अनुच्छेद 15, भारत का सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

भारत में निवास पर आधारित आरक्षण, आरक्षण नीतियों के सामाजिक-आर्थिक और कानूनी निहितार्थ, बेरोज़गारी

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

झारखंड उच्च न्यायालय ने झारखंड राज्य निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन अधिनियम, 2021 में स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है, जिसमें 40,000 रुपए तक के वेतन वाले निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।

  • यह कानून स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये लाया गया था, लेकिन संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने के कारण इसकी आलोचना की गई। 

निजी क्षेत्र में नियोजन अधिनियम पर झारखंड हाईकोर्ट का फैसला क्या है?

  • लघु उद्योगों द्वारा याचिका: झारखंड लघु उद्योग संघ (JSSIA) ने स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण की गारंटी देने वाले कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि यह समानता के सिद्धांत और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। 
  • JSSIA का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि यह अधिनियम स्थानीय और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के बीच अनुचित रूप से विभाजन उत्पन्न करता है, तथा नियोक्ताओं की स्वतंत्र रूप से नियुक्ति करने की क्षमता को सीमित करता है।
  • याचिका में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा राज्य स्थानीय अभ्यर्थी रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द करने का हवाला दिया गया, जिसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया था।
  • झारखंड हाईकोर्ट का फैसला:  झारखंड हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र की कंपनी में स्थानीय उम्मीदवारों के झारखंड राज्य नियोजन अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
  • न्यायालय ने JSSIA की इस दलील को सही पाया कि यह कानून गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करके अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही निजी कंपनियों के नियुक्ति विकल्पों को प्रतिबंधित करके अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।

अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के अधिवास आधारित आरक्षण कानून:

  • आंध्र प्रदेश: उद्योगों/कारखानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये आंध्र प्रदेश रोजगार अधिनियम, 2019 पारित किया गया (स्थानीय निवासियों के लिए निजी उद्योगों में 75% नौकरियाँ आरक्षित हैं)।
  • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून “असंवैधानिक हो सकता है” लेकिन अभी तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं दिया गया है।
  • कर्नाटक: उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये कर्नाटक राज्य रोज़गार विधेयक, 2024 को मंजूरी दी गई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रबंधन भूमिकाओं में स्थानीय लोगों के लिये 50% और गैर-प्रबंधन पदों पर 75% आरक्षण का प्रावधान है। 
  • इस विधेयक पर काफी विवाद बना हुआ है तथा श्रमिकों की गतिशीलता और व्यवसाय संचालन पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।

राज्य निजी क्षेत्र के रोज़गार में निवास पर आधारित आरक्षण क्यों लागू करते हैं?

  • स्थानीय लोगों में उच्च बेरोजगारी: कई राज्यों में स्थानीय लोगों, को विशेष रूप से निम्न और अर्द्ध-कुशल पदों पर, बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। 
  • स्थानीय नियोजन कानूनों को निवासियों को रोजगार के अवसरों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
  • प्रवासी श्रमिक के कारण रोज़गार में कमी: यह धारणा बढ़ती जा रही है कि अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिक स्थानीय लोगों के लिये निर्धारित रोज़गार छीन रहे हैं। 
  • इससे विशेष रूप से अधिक औद्योगिक और आर्थिक रूप से उन्नत क्षेत्रों में असंतोष बढ़ता है।
  • राज्य रोज़गार प्राथमिकता: निजी क्षेत्र, एक प्रमुख रोज़गार सृजनकर्त्ता के रूप में, स्थानीय लोगों को रोज़गार के लिये प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय का समर्थन कर सकता है, खासकर तब जब इसे कर रियायतों और सस्ते ऋणों जैसे सरकारी प्रोत्साहनों का लाभ मिलता है, जो सकारात्मक नीतियों को उचित ठहराता है।
  • राजनीतिक दबाव और वोट बैंक: राज्य सरकारों को स्थानीय आबादी से अपने हितों को प्राथमिकता देने के लिये दबाव का सामना करना पड़ता है। आरक्षण कानून लागू करना मतदाताओं की भावनाओं को खुश करने और राजनीतिक समर्थन हासिल करने का एक तरीका हो सकता है।
  • कौशल बेमेल और शिक्षा स्तर: स्थानीय लोगों में उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिये कौशल की कमी हो सकती है, जिससे उनके अवसर सीमित हो सकते हैं। 
  • इस कौशल असंतुलन को दूर करने तथा कम शिक्षित आबादी को अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये कम वेतन वाली नौकरियों के लिये कोटा शुरू किया गया है।
  • प्रतिभा को बनाए रखना: यह सुनिश्चित करके कि स्थानीय निवासियों को नौकरियों तक पहुँच प्राप्त हो, राज्य क्षेत्र के भीतर प्रतिभा को बनाए रख सकते हैं। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जहाँ प्रतिभा पलायन हो रहा है, जहाँ कुशल कर्मचारी बेहतर अवसरों के लिये कहीं और चले जाते हैं।

निवास पर आधारित आरक्षण क्या है?

  • निवास पर आधारित आरक्षण: यह प्रणाली व्यक्ति के निवास स्थान के आधार पर लाभ आरक्षित करती है। राज्य शिक्षा और सार्वजनिक नौकरियों जैसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देते हुए निवासियों के लिये कुछ सीटें आवंटित कर सकता है।
    • "जन्म स्थान" और "निवास" अलग-अलग अवधारणाएँ हैं, जिसमें निवास का तात्पर्य किसी व्यक्ति के जन्मस्थान के बजाय उसके निवास स्थान से है।
  • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 16(3), संसद द्वारा निर्धारित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के भीतर सरकारी नियुक्तियों के लिये निवास-आधारित मानदंड की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 371(d) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्थानीय कैडर की स्थापना करता है, जिससे सरकारी नौकरियों में स्थानीय प्रतिनिधित्व और अवसर सुनिश्चित होते हैं।
  • अनुच्छेद 15 केवल जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है, निवास के आधार पर नहीं।
  • ऐतिहासिक निर्णय:
    • डीपी जोशी बनाम मध्य भारत, 1955: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अधिवास-आधारित आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि अपने निवासियों को लाभ पहुँचाना राज्य का वैध हित है।  
    • डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ, 1984: सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः अधिवास-आधारित आरक्षण को बरकरार रखा तथा इस बात पर बल दिया कि यह अनुच्छेद 14 के तहत उचित वर्गीकरण के दायरे में आता है, जब तक कि यह समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है या दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नही करता है।
  • निवास पर आधारित आरक्षण से जुड़ी समस्याएँ: अधिवास-आधारित आरक्षण से योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के कार्य प्रदर्शन में कमी आ सकती है।
    • क्षेत्रीय पहचान पर ज़ोर देने से विभाजन को बढ़ावा मिल सकता है तथा स्थानीय स्तर पर तनाव बढ़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण कमज़ोर हो सकता है।
    • जिन प्रवासियों ने अर्थव्यवस्था और समाज में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, उन्हें अनुचित रूप से अवसरों से वंचित किया जा सकता है।
    • निवास के मानदंडों में हेरफेर किया जा सकता है, जिससे आरक्षित सीटों या पदों के आवंटन में शोषण और पक्षपात को बढ़ावा मिल सकता है ।
    • आरक्षण पर निरंतर निर्भरता शिक्षा और कौशल विकास की गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों को कमज़ोर कर सकती है, जो सशक्तीकरण के लिये अधिक सतत् समाधान हैं।
    • निवास पर आधारित आरक्षण अंतर-क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में विफल हो सकता है, जहाँ धनी या अधिक शिक्षित स्थानीय निवासी उसी क्षेत्र के गरीब, हाशिये पर पड़े समूहों की तुलना में अधिक लाभान्वित होते हैं।

आगे की राह:

  • रोज़गार संतुलन: एक निष्पक्ष तंत्र स्थापित करना जहाँ स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों उम्मीदवार रोज़गार के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर सकें, क्षेत्रीय बेरोज़गारी के मुद्दों का समाधान करते हुए योग्यता आधारित नियुक्ति को बढ़ावा देना।
    • नीतियों को कार्यबल एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, तथा राज्य की सीमाओं की परवाह किये बिना सभी नागरिकों के लिये आर्थिक अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना: स्थानीय लोगों के लिये शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना ताकि उन्हें रोज़गार के प्रति अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके तथा प्रतिबंधात्मक आरक्षण की आवश्यकता कम हो।
  • स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहित करना: सख्त आरक्षण सीमा लागू करने के बजाय, निजी क्षेत्र के उद्यमों को कर छूट या सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन देकर स्थानीय भर्ती को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना, ताकि नियोक्ता स्थानीय प्रतिभा और गुणवत्ता के आधार पर निर्णय ले सकें।
  • श्रम अधिकारों को सुनिश्चित करना: राज्यों को प्रवासियों सहित सभी श्रमिकों के लिये बुनियादी श्रम अधिकारों को लागू करना चाहिये, ताकि उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और स्थानीय एवं प्रवासी दोनों श्रमिकों के लिये समान अवसर उपलब्ध हो सकें।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में निवास पर आधारित आरक्षण के कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण कीजिये। क्या ये कानून क्षेत्रीय बेरोज़गारी को संबोधित करते हैं, या नई चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं? चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रिलिम्स:

प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(c)


मेन्स:

प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

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