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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जापान की ग्लोबल साउथ तक पहुँच

  • 15 Feb 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

G7 एजेंडा, G20 शिखर सम्मेलन, शीत युद्ध, जलवायु परिवर्तन, इंडो-पैसिफिक।

मेन्स के लिये:

जापान की ग्लोबल साउथ तक पहुँच।

चर्चा में क्यों? 

जापान ने ग्लोबल साउथ को G7 एजेंडे में सबसे ऊपर लाने की पहल की है।

  • जापान हिरोशिमा में G7 शिखर सम्मेलन, 2023 की मेज़बानी कर रहा है। भारत इस वर्ष के G-20 शिखर सम्मेलन में ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना चाहता है, ऐसे में दिल्ली और टोक्यो के बीच वैश्विक राजनीतिक सहयोग के लिये कई नई संभावनाएँ हैं। 

ग्लोबल साउथ: 

  • ग्लोबल साउथ शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर उन देशों के संदर्भ में होना शुरू हुआ जो औद्योगीकरण के दौर से बाहर रह गए थे और पूंजीवादी एवं साम्यवादी देशों के साथ विचारधारा का टकराव रखते थे, जिसे शीत युद्ध ने प्रबल किया था। 
    • इसमें अधिकांशतः एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं। 
    • इसके अलावा वैश्विक उत्तर या ‘ग्लोबल नॉर्थ’ को अनिवार्य रूप से अमीर और गरीब देशों के बीच एक आर्थिक विभाजन द्वारा परिभाषित किया गया है।
      • ‘ग्लोबल नॉर्थ’ मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों को संदर्भित करता है। 
  • बड़ी आबादी, समृद्ध संस्कृतियों और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण ‘ग्लोबल साउथ’ एक  महत्त्वपूर्ण भूभाग है। 
  • इसके अतिरिक्त गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिये ग्लोबल साउथ को समझना महत्त्वपूर्ण है। 

ग्लोबल साउथ से संबद्ध मुद्दे:

  • गरीबी और असमानता:
    • ग्लोबल साउथ के कई देश अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे हैं, इसे कुपोषण, शिक्षा तक पहुँच की कमी और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल जैसे कई मुद्दों के रूप में देखा जा सकता है। 
    • ग्लोबल साउथ को अक्सर देशों के भीतर और देशों के बीच असमानताओं के रूप में चिह्नित किया जाता है। उदाहरण के लिये शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच या विभिन्न जातीय या सामाजिक आर्थिक समूहों के बीच संपत्ति तथा संसाधनों तक पहुँच में असमानताएँ।
  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ:  
    • ग्लोबल साउथ के कई देश विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति संवेदनशील हैं। इन मुद्दों का स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य एवं कल्याण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • राजनैतिक अस्थिरता:  
    • ग्लोबल साउथ के कुछ देशों में राजनीतिक अस्थिरता प्रमुख मुद्दों में से एक है, जिसमें सत्ता परिवर्तन और गृह युद्ध से लेकर भ्रष्टाचार तथा कमज़ोर शासन तक की चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी:  
    • कई देश अपनी आबादी हेतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, यह आर्थिक अवसरों को सीमित कर सकता है और गरीबी एवं असमानता को बनाए रख सकता है।
    • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी एक प्रमुख चिंता का विषय है, जहाँ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित या न के बराबर हो सकती है। इससे संक्रामक रोगों, कुपोषण और पुरानी स्थितियों सहित कई स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

जापान का ग्लोबल साउथ तक पहुँचने का उद्देश्य: 

  • जापान को यूक्रेन जैसे प्रभावों का डर: 
    • जापान ने अपनी विदेश और सुरक्षा नीतियों में परवर्तन किया है क्योंकि उसे यूक्रेन जैसे प्रभावों का डर है।
    • उत्तर कोरिया से लंबे समय से खतरा और चीन से बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच यूक्रेन युद्ध ने जापान को अपनी रक्षा नीति में व्यापक सुधार के लिये प्रेरित किया है।
  • कूटनीति और रक्षा: 
    • जापान का मानना है कि यूक्रेन में संघर्ष ने उसे कूटनीति और रक्षा के महत्त्व का एहसास कराया है।
    • रक्षा क्षमताओं को कूटनीति द्वारा समर्थित होना चाहिये तथा इन क्षमताओं को मज़बूत करने से हमारे कूटनीतिक प्रयास और अधिक प्रेरक बनेंगे।
  • पश्चिम की उपेक्षा: 
    • पश्चिम ने हाल के दशकों में ग्लोबल साउथ के साथ राजनीतिक जुड़ाव की उपेक्षा की है।
      • शीत युद्ध में पश्चिम ने ग्लोबल साउथ में रणनीतिक प्रभाव के लिये रूस के साथ जमकर प्रतिस्पर्द्धा की थी।
    • सोवियत संघ के पतन के बाद G7 ने ग्लोबल साउथ के नेताओं को हल्के में लिया और संवाद करने के बजाय सिर्फ उन्हें व्याख्यान देना पसंद किया।
    • बदले में इसने विकासशील विश्व में चीन और रूस को संबंधों की दिशा निर्धारित करने का स्वतंत्र अवसर प्रदान किया।

भारत के लिये आगे की राह 

  • ग्लोबल साउथ के समर्थन के लिये विकासशील विश्व के भीतर निकृष्ट क्षेत्रीय राजनीति के साथ अधिक सक्रिय भारतीय जुड़ाव की आवश्यकता होगी।
  • भारत को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिये कि ग्लोबल साउथ एक एकजुट इकाई के रूप में कार्य नहीं करता है और इसका एक भी सामान्य लक्ष्य नहीं है। धन और शक्ति, ज़रूरतों एवं क्षमताओं के मामले में आज दक्षिणी देशों में बहुत भिन्नता है।
    • यह विकासशील विश्व के विभिन्न क्षेत्रों और समूहों के अनुरूप भारतीय नीति की मांग करता है।
  • भारत पुराने वैचारिक मतभेदों पर ध्यान देने के बजाय व्यावहारिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु बनने के लिये उत्सुक है। यदि भारत इस महत्त्वाकांक्षा को प्रभावी नीति में बदल सकता है, तो सार्वभौमिक तथा विशेष लक्ष्यों की एक साथ प्राप्ति की दिशा में कोई विरोधाभास नहीं होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह में G20 के सभी चार सदस्य देश हैं?

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • G20 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ 19 देशों और यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है।
  • मज़बूत वैश्विक आर्थिक विकास के लिये वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 80% से अधिक का प्रतिनिधित्त्व करने और योगदान करने वाले सदस्य देश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये एक प्रमुख मंच पर एकत्र हुए, जिस पर सितंबर 2009 में पेंसिल्वेनिया (USA) के पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में नेताओं द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी।
  • G20 सदस्यों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, कोरिया गणराज्य, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) शामिल हैं।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। 

मेन्स: 

प्रश्न. 'उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है। विस्तार से समझाइये। (2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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