जलीकट्टू | 18 Jan 2021
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में पोंगल और जल्लीकट्टू जैसे त्योहारों ने देश में राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित किया है।
प्रमुख बिंदु:
क्या है जलीकट्टू?
- परंपरा:
- जल्लीकट्टू लगभग 2,000 वर्ष पुराना एक प्रतिस्पर्द्धी खेल होने के साथ ही बैल मालिकों को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम भी है, जिन्हें वे प्रजनन के लिये पालते हैं।
- यह एक हिंसक खेल है जिसमें प्रतियोगी पुरस्कार प्राप्त करने के लिये बैल को वश/नियंत्रण में करने की कोशिश करते हैं; यदि प्रतियोगी बैल को वश में करने में असफल होते हैं, तो उस स्थिति में बैल मालिक को पुरस्कार मिलता है।
- खेल से संबंधित क्षेत्र:
- यह जल्लीकट्टू बेल्ट के नाम से विख्यात तमिलनाडु के मदुरई, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल ज़िलों में लोकप्रिय है।
- कार्यक्रम का समय:
- यह फसल कटने के समय तमिल त्योहार पोंगल के दौरान जनवरी के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है।
- तमिल संस्कृति में जलीकट्टू का महत्त्व:
- जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है।
- वर्तमान समय में जब पशु प्रजनन अक्सर एक कृत्रिम प्रक्रिया के माध्यम से होता है, ऐसे में संरक्षणवादियों और किसानों का तर्क है कि जल्लीकट्टू इन नर पशुओं की रक्षा करने का एक तरीका है, अन्यथा जुताई में इनकी उपयोगिता घटने के साथ इनका उपयोग केवल मांस के लिये ही किया जाता है।
- जल्लीकट्टू के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लोकप्रिय देशी मवेशी नस्लों में कंगायम, पुलिकुलम, उमबलाचेरी, बारगुर और मलाई मडु आदि शामिल हैं। स्थानीय स्तर पर इन उन्नत नस्लों के मवेशियों को पालना सम्मान की बात मानी जाती है।
- जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है।
जल्लीकट्टू पर कानूनी हस्तक्षेप:
- वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
जल्लीकट्टू पर वर्तमान कानूनी स्थिति:
- राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को वैध कर दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अभी लंबित है।
द्वंद्व:
- जल्लीकट्टू के संदर्भ में एक द्वंद्व यह बना हुआ है कि क्या इस परंपरा को तमिलनाडु के लोगों के सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित किया जा सकता है, जो कि एक मौलिक अधिकार है।
- गौरतलब है कि अनुच्छेद 29(1) के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
- हालाँकि इस विशेष मामले में अनुच्छेद 29(1) पशुओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है।
अन्य राज्यों में ऐसे खेलों की स्थिति:
- कर्नाटक द्वारा भी कंबाला नामक एक ऐसे ही खेल को बचाने के लिये एक कानून पारित किया है।
- तमिलनाडु और कर्नाटक को छोड़कर, जहाँ बैल को नियंत्रित या उनकी दौड़ का आयोजन अभी भी जारी है, सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2014 के प्रतिबंध आदेश के बाद ऐसे खेल आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में प्रतिबंधित हैं।