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जैव विविधता और पर्यावरण

हिमालयन वुल्फ का IUCN आकलन

  • 16 Jan 2024
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिए:

हिमालयन वुल्फ, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट, लद्दाख और स्पीति घाटी,  सतत् विकास लक्ष्य, आइची लक्ष्य

मेन्स के लिये:

हिमालयी भेड़ियों की जनसंख्या में गिरावट के कारण, हिमालयी भेड़ियों की सुरक्षा के उपाय, संरक्षण।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हिमालय भर में पाए जाने वाले एक प्रमुख ल्यूपिन शिकारी हिमालयन वुल्फ (कैनिस ल्यूपस चांको) का मूल्यांकन पहली बार अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में किया गया है।

हिमालयन वुल्फ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • हिमालयन वुल्फ एक रहस्यमय ल्यूपिन शिकारी है जो हिमालय की उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में निवास करता है।
    • विशिष्ट आनुवंशिक मार्करों द्वारा विशेषता, इसका माइटोकॉन्ड्रियल DNA होलारक्टिक ग्रे वुल्फ से पहले के आनुवंशिक आधार का सुझाव देता है।
  • प्राकृतिक वास:
    • यह चीन, नेपाल, भारत और भूटान के कुछ हिस्सों में पाया जाता है तथा आमतौर पर 10,000 से 18,000 फीट की ऊँचाई पर अल्पाइन घास के मैदानों एवं घास के मैदानों में रहता है। 
      • वे आमतौर पर छोटे झुंडों में यात्रा करते हैं और जंगली भेड़ तथा बकरियों का शिकार करते हैं, कभी-कभी मर्मोट, खरगोश एवं पक्षियों का भी शिकार करते हैं।
  • जनसंख्या स्थिति:
    • 2,275-3,792 वयस्क व्यक्तियों (Mature Person) की जनसंख्या का अनुमान है, ये सभी नेपाल, भारत और तिब्बती पठार की हिमालय शृंखला में एक उप-जनसंख्या के भीतर हैं।
    • भारतीय खंड में मुख्य रूप से लद्दाख और स्पीति घाटी में 227-378 परिपक्व व्यक्ति हैं।
  •   संरक्षण की स्थिति:
    • IUCN स्थिति: सुभेद्य 
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I

IUCN रेड लिस्ट क्या है?

  • IUCN रेड लिस्ट जीव-जंतुओं, कवक और पादप प्रजातियों में उनके विलुप्ती के संकट का आकलन करने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक संसाधन है।
  • सभी के लिये सुलभ, यह वैश्विक जैवविविधता स्वास्थ्य के एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करता है, यह किसी भी प्रजातियों की विशेषताओं, खतरों और उनके संरक्षण उपायों में व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है तथा सूचित संरक्षण निर्णयों व नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • IUCN रेड लिस्ट श्रेणियाँ मूल्यांकन की गई प्रजातियों के विलुप्त होने के संकट को परिभाषित करती हैं। नौ श्रेणियाँ NE (मूल्यांकित नहीं) से EX (विलुप्त) तक सूचीबद्ध हैं। गंभीर रूप से संकटग्रस्त (CR), संकटग्रस्त (EN) और सुभेद्य (VU) प्रजातियों को विलुप्त होने का खतरा माना जाता है।
  • IUCN रेड लिस्ट में प्रजातियों की IUCN ग्रीन स्टेटस शामिल है, जो प्रजातियों की जीवसंख्या की पुनर्प्राप्ति का आकलन करती है और उनके संरक्षण की सफलता का आकलन करती है।
    • आठ ग्रीन स्टेटस श्रेणियाँ: वन में विलुप्त, गंभीर रूप से विलुप्त, बड़े पैमाने पर विलुप्त, मध्यम रूप से विलुप्त, किंचित् विलुप्त, पूर्णतया पुनर्प्राप्त, गैर-क्षीण और अनिश्चित।
    • ग्रीन स्टेटस मूल्यांकन यह जाँच करता है कि संरक्षण कार्यों ने वर्तमान रेड लिस्ट स्थिति को किस प्रकार प्रभावित किया है।

हिमालयन वुल्फ की संख्या निरंतर क्यों घट रही है?

  • पर्यावास का ह्रास: IUCN रेड लिस्ट आकलन के अनुसार हिमालयी भेड़ियों के पर्यावास के क्षेत्र, विस्तार तथा गुणवत्ता में निरंतर गिरावट जारी है।
  • हत्या संघर्ष: भेड़ियों के पर्यावास में अमूमन पशुओं के चरने के लिये ग्रीष्मकालीन चारागाह शामिल होते हैं, मौसमी अथवा स्थायी उच्च पशुधन बहुतायत के कारण उनके बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है जो भेड़ियों के संरक्षण में चिंता का विषय है।
    • इन संघर्षों के परिणामस्वरूप भेड़िया संरक्षण के प्रति नकारात्मक अवधारणा विकसित होती है और भेड़ियों के बढ़ते हमले को देखते हुए अपने पशुधन के संरक्षण हेतु उनकी हत्या का प्रयास किया जाता है। 
  • कुत्तों के साथ संकरण: उक्त रिपोर्ट में बताया गया कि लद्दाख तथा स्पीति में हिमालयी भेड़ियों के लिये एक बढ़ती समस्या घरेलू कुत्तों के साथ संकरण है। इसकी स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण होती जा रही है क्योंकि इन क्षेत्रों में जंगली कुत्ते की संख्या अधिक है।
    • संकरण के परिणामस्वरूप भेड़ियों तथा भेड़िया-कुत्ते संकरों के बीच क्षेत्र एवं शिकार जैसे संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ सकती है।
  • अवैध शिकार: भेड़िये का उसके फर तथा शरीर के अंगों जैसे पंजे, जीभ, सिर एवं अन्य हिस्सों के व्यापार के लिये भी अवैध रूप से शिकार किया जाता है। हालाँकि इन भेड़ियों का शिकार सभी श्रेणी के राज्यों में विधिक नहीं है।

हिमालयन वुल्फ की सुरक्षा के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • सुरक्षा एवं पुनर्स्थापना: स्वस्थ वन्य शिकार आबादी तथा परिदृश्यों को सुरक्षित एवं पुनर्स्थापित करना और वन्यजीव आवास आश्रयों को पृथक करना।
  • सुरक्षा के तरीकों में सुधार करना: बेहतर पशुधन सुरक्षा उपाय, जैसे कि शिकारी-प्रूफ कोरल पेन और टिकाऊ पशुधन चरवाहा गतिविधियों का उपयोग, जैसे कम पशुधन भार, अनुकूलित चरवाहा तथा रचनात्मक लेकिन परंपरा-आधारित समग्र प्रबंधन रणनीतियों का विकास, भेड़ियों के संरक्षण में मदद करेगा।
  • जंगली कुत्तों की आबादी का प्रबंधन: संयुक्त रूप से रहने वाले कुत्तों की आबादी का प्रबंधन करके, भेड़ियों के आवासों में पारिस्थितिक संतुलन को संरक्षित किया जा सकता है।
  • सीमापारीय प्रयास: यह सीमा पार कनेक्टिविटी भेड़ियों की आबादी की निर्बाध गतिशीलता और उनके प्राकृतिक व्यवहार के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो समन्वित अनुसंधान तथा निगरानी कार्यक्रमों के माध्यम से पूरा किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘संक्रामक (इन्वेसिव) जीव-जाति (स्पीशीज़) विशेषज्ञ समूह’ (जो वैश्विक संक्रामक जीव-जाति डेटाबेस विकसित करता है) निम्नलिखित में से किस एक संगठन से संबंधित है? (2023)

(a) अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (इंटरनैशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर)
(b) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस एन्वाइरनमेंट प्रोग्राम)
(c) संयुक्त राष्ट्र का पर्यावरण एवं विकास पर विश्व आयोग (यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड कमीशन फॉर एन्वाइरनमेंट ऐंड डेवेलप्मेंट)
(d) प्रकृति के लिये विश्वव्यापी निधि (वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर) 

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत में जैवविविधता किस प्रकार भिन्न है? जैवविविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है?  (वर्ष 2018)

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