हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022 | 17 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून, धर्म की स्वतंत्रता पर संवैधानिक प्रावधान, संविधान का अनुच्छेद 21। मेन्स के लिये:हरियाणा धार्मिक कानून के गैर-कानूनी धर्मांतरण की रोकथाम विधेयक, 2022; धर्मांतरण विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे; संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की प्रक्रिया का अपराधीकरण करने की मांग करते हुए हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 का प्रस्ताव दिया है।
- विधेयक द्वारा हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 में संशोधन किया गया, जिसे एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण पर रोकने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन:
- हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 अनुचित टिप्पणी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से या शादी से और उससे जुड़े मामलों के लिये एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है।
- हालाँकि, बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को रोकने के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- यह सामूहिक धर्मांतरण को एक ही समय में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के धर्मांतरण के रूप में परिभाषित करता है।
- यदि कोई व्यक्ति सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो सज़ा को अधिकतम 10 वर्ष तक बढ़ाने और जुर्माने की राशि में वृद्धि का प्रस्ताव किया गया है।
- स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अनुचित टिप्पणी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन, विवाह अथवा किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से या किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा।
- प्राप्त शिकायतों की जाँच किसी ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिये जो सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे का न हो।
- इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे।
- यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म को छुपाकर किसी से विवाह करता है और उसके पश्चात अपने धर्म के अनुपालन का दबाव बनाता है तो उसे न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष के कारावास की सज़ा दी जाएगी।
धर्मांतरण :
- धर्मांतरण दूसरे के बहिष्कार हेतु एक विशेष धार्मिक संप्रदाय के साथ पहचाने गए विश्वासों के एक समूह को अपनाना है।
- इस प्रकार "धर्मांतरण" एक संप्रदाय के अनुपालन को छोड़कर दूसरे के साथ संबद्धता होती है।
- उदाहरण के लिये ईसाई बैपटिस्ट से मेथोडिस्ट या कैथोलिक, मुस्लिम शिया से सुन्नी।
- कुछ मामलों में, धर्मांतरण "धार्मिक पहचान के परिवर्तन और विशेष अनुष्ठानों का प्रतीक है"।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता:
- धर्मांतरण का अधिकार नहीं:
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- धर्मांतरण किसी अन्य व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने वाले के धर्म से परिवर्तनकर्त्ता के धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास है।
- अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता।
- क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले और परिवर्तित होने की मांग करने वाले व्यक्ति के लिये समान रूप से है।
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- कपटपूर्ण विवाह:
- हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये मज़बूर करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों का न्यायिक संज्ञान लिया।
- न्यायालय के अनुसार, इस तरह की घटनाएँ न केवल धर्मांतरित व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं, बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के भी खिलाफ हैं।
भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति:
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के वर्गों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
- कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और इस प्रकार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मज़बूर नहीं किया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानून:
- धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
- हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी सदस्य विधेयक (Private Member’s Bill) पेश किये गए।
- इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।
- वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:
- अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली:
- गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।
- यह काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती है।
- अल्पसंख्यकों का विरोध:
- एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।
- धर्मनिरपेक्षता विरोधी:
- ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों व कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2017 का हादिया मामला:
- हादिया मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने, विचार या विचारधाराओं और प्रेम तथा जीवनसाथी के चुनाव का मामला किसी व्यक्ति की पहचान के केंद्रीय पहलुओं में से एक है।
- ऐसे मामलों में न तो राज्य और न ही कानून किसी व्यक्ति को जीवन साथी के चुनाव के बारे में कोई आदेश दे सकते हैं एवं न ही वे ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।
- अपनी पसंद के साथी के साथ विवाह करने का अधिकार अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग है।
- के.एस. पुट्टास्वामी या 'गोपनीयता' निर्णय 2017:
- किसी व्यक्ति की स्वायत्तता से आशय जीवन के महत्त्वपूर्ण मामलों में उसकी निर्णय लेने की क्षमता से है।
- अन्य मामले:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में माना है कि जीवन साथी चुनने के वयस्क के पूर्ण अधिकार पर आस्था, राज्य और न्यायालय का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- भारत एक ‘स्वतंत्र और गणतांत्रिक राष्ट्र’ है तथा एक वयस्क के प्रेम एवं विवाह के अधिकार में राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- विवाह जैसे मामले किसी व्यक्ति की निजता के अंतर्गत आते हैं, जो कि उल्लंघन योग्य नहीं हैं, साथ ही विवाह या उसके बाहर जीवन साथी के चुनाव का निर्णय व्यक्ति के ‘व्यक्तित्व और पहचान’ का हिस्सा है।
- किसी व्यक्ति के जीवन साथी चुनने का पूर्ण अधिकार कम-से-कम धर्म/आस्था से प्रभावित नहीं होता है।
आगे की राह
- ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न. निजता का अधिकार जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है। निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के संविधान में उपर्युक्त्त कथन का सही और उचित अर्थ है? (2018) (a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान। उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |