भारतीय राजनीति
महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट
- 28 Apr 2020
- 9 min read
प्रीलिम्स के लियेसंविधान का अनुच्छेद 164 और 171, जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 151A मेन्स के लियेराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों की सीमा, मुख्यमंत्री की योग्यता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार को आगामी समय में राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य हुए बिना राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
- किंतु संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, उन्हें 27 मई से पहले राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में निर्वाचित होना होगा, यदि ऐसा नहीं होता है तो मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।
- हालाँकि, चुनाव आयोग ने पहले ही COVID-19 महामारी के मद्देनज़र राज्यसभा चुनाव, उपचुनाव और नागरिक निकाय चुनाव स्थगित कर दिये हैं, जिसके कारण महाराष्ट्र सरकार और उद्धव ठाकरे के समक्ष बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है।
संविधान का अनुच्छेद 164
- संविधान के अनुच्छेद 164 (1) के अनुसार, मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
- अनुच्छेद 164(2) के अनुसार, राज्य मंत्रिपरिषद राज्य की विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगा।
- अनुच्छेद 164(3) के अनुसार, किसी मंत्री द्वारा पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गए प्रारूपों के अनुसार उसको पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री यदि निरंतर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा, मौजूदा स्थिति में संविधान का यही प्रावधान महाराष्ट्र सरकार के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर रहा है।
क्या है विकल्प?
- ऐसी स्थिति, जिसमें कोई व्यक्ति विधायिका का सदस्य नहीं है और सरकार का मुख्य कार्यकारी बन जाता है, स्वयं में काफी सामान्य है। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं-
- जून, 1996 में जब एच.डी. देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया तब वे संसद सदस्य नहीं थे।
- इसके अतिरिक्त जब सुशील कुमार शिंदे और पृथ्वीराज चव्हाण को क्रमशः वर्ष 2003 और वर्ष 2010 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया था, तब भी वे राज्य विधायिका के सदस्य नहीं थे।
- इस प्रकार उद्धव ठाकरे को अपने कार्यकाल को बचाने में कोई समस्या नहीं थी, किंतु COVID-19 महामारी ने महाराष्ट्र के इस संकट को और अधिक गंभीर बना दिया है।
- अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के समक्ष नामांकन मार्ग (Nomination Route) शेष है, जो कि अपेक्षाकृत कम सामान्य है, किंतु यह असंवैधानिक नहीं है।
- इस मार्ग का प्रयोग सर्वप्रथम वर्ष 1952 में हुआ जब सी. राजगोपालाचारी को राज्यपाल श्री प्रकाश (Sri Prakasa) द्वारा मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया था।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 171(5) के तहत राज्यपाल ‘साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और सामाजिक सेवा’ जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान तथा व्यावहारिक अनुभव वाले लोगों को सदन में नामित कर सकता है।’
- ऐसी स्थिति में आवश्यकता को पूरा करने का एकमात्र तरीका है कि राज्यपाल द्वारा ठाकरे को उच्च सदन में नामित किया जाए। हालाँकि उद्धव ठाकरे संविधान के अनुच्छेद 171(5) में वर्णित किसी भी क्षेत्र (साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और सामाजिक सेवा) से संबंधित नहीं हैं, किंतु हर शरण वर्मा बनाम चंद्रभान गुप्ता (15 फरवरी, 1961) मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि राजनीति को भी 'सामाजिक सेवा' के रूप में देखा जा सकता है।
राज्यपाल की भूमिका
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल के कोटे में दो विधान परिषद सीटें रिक्त हैं; हालाँकि इन रिक्तियों की अवधि 6 जून को समाप्त हो जाएगी और इसलिये इन सीटों पर नियुक्ति केवल शेष अवधि के लिये ही की जा सकती है।
- किंतु कई लोगों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151(A) इन रिक्त पदों को भरने पर प्रतिबंध लगाती है यदि रिक्ति से जुड़े किसी सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम हो।
- हालाँकि, यह राज्यपाल के लिये नामांकन को अस्वीकार करने का एक कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि यह प्रतिबंध रिक्ति को भरने के लिये उपचुनाव के संबंध में है, न कि नामांकन के संबंध में।
- यद्यपि राज्यपाल द्वारा यह तर्क दिया जा सकता है कि वे मंत्रिपरिषद की सलाह पर तेज़ी से कार्य करने के लिये संविधान के तहत बाध्य नहीं हैं और यह भी कि, उन्हें उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद को बचाने के लिये नामांकित क्यों करना चाहिये, किंतु हमें मौज़ूदा असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिये, भारत वर्तमान में आधुनिक इतिहास के सबसे गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है।
आगे की राह
- महाराष्ट्र का राजनीतिक और संवैधानिक संकट आवश्यक ही महाराष्ट्र की जनता और वहाँ के प्रशासन के लिये एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है किंतु मौजूदा समय में संपूर्ण देश एक अलग स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर रहा है, विदित हो कि महाराष्ट्र इस महामारी के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुआ है।
- महाराष्ट्र में इस वायरस के संक्रमण के 8000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और राज्य में इस वायरस के कारण 342 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
- आवश्यक है कि सभी हितधारक अपने राजनीतिक हितों को अलग रखकर महाराष्ट्र के इस संकट को सुलझाने के लिये यथासंभव प्रयास करे और संतुलित उपाय खोजने का प्रयास करे।
- इसके अतिरिक्त राज्य में कोरोनावायरस के रोगियों की बढ़ती संख्या भी वहाँ के नीति-निर्माताओं के लिये एक बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने के लिये सभी दिशा-निर्देशों का सही ढंग से पालन किया जाना आवश्यक है।