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सामाजिक न्याय

शैक्षिक केन्द्रों में आत्महत्या के मामले

  • 15 Nov 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के मामलों का मुद्दा, आत्महत्याएँ, लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS), अवसाद, चिंता और द्विध्रुवी विकार, मनोदर्पण

मेन्स के लिये:

शैक्षणिक केंद्रों में आत्महत्या के मामले, भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) ने एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें कोटा में बढ़ती छात्र आत्महत्याओं के चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है। 

  • लोकनीति-CSDS सर्वेक्षण को हिंदी में एक संरचित प्रश्नावली का उपयोग करके आमने-सामने आयोजित किया गया था, जिसमें अक्तूबर 2023 में 1,000 से अधिक छात्र शामिल थे। सैंपल में 30% लड़कियाँ शामिल थीं।  
  • कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश से आते हैं। उनमें से लगभग आधे छोटे शहरों और कस्बों से हैं; केवल 14% गाँवों से आते हैं।

अधिक छात्रों के कोटा जाने के क्या कारण हैं?

  • परिवार और रिश्तेदारों का प्रभाव:
    • बड़ी संख्या में छात्रों के परिवार के सदस्य या रिश्तेदार कोटा में पढ़ते हैं, जिससे कोटा आने का उनका निर्णय प्रभावित हुआ।
    • सोशल मीडिया और दोस्तों तथा माता-पिता की सिफारिशें भी उनके निर्णय में भूमिका निभाती हैं।
  • प्रवेश परीक्षा पर फोकस:
    • कोटा में छात्र मुख्य रूप से NEET (मेडिकल प्रवेश परीक्षा) और JEE (इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) की तैयारी करते हैं।
      • NEET लड़कियों के बीच अधिक लोकप्रिय है, जबकि JEE को लड़कों द्वारा पसंद किया जाता है।
  • नियमित उपस्थिति के बिना प्रतिरूपी  स्कूल: 
    • प्रवेश परीक्षा के लिये बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करना एक शर्त है। कोटा में अधिकांश छात्र 'प्रतिरूपी स्कूलों' में नामांकित हैं, जिन्हें नियमित उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है और केवल बोर्ड परीक्षा में बैठने की सुविधा होती है।

NCRB की ADSI रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में आत्महत्याओं की स्थिति क्या है?

  • समग्र आत्महत्या स्थिति:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ (ADSI) 2021 के अनुसार, वर्ष 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 आत्महत्याएँ हुईं, जो वर्ष 2020 की तुलना में 7.2% की वृद्धि दर्शाती हैं।
    • वर्ष 2021 में भारत में आत्महत्या की दर 12.0% थी।

  • छात्रों में आत्महत्या की स्थिति:
    • भारत में वर्ष 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, वर्ष 2020 में 12,526 मृत्यु के साथ 4.5% की वृद्धि हुई, 10,732 आत्महत्याओं में से 864 मामलों में परीक्षा में विफलता ज़िम्मेदार है।
    • रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि वर्ष 2021 में छात्राओं की आत्महत्या का प्रतिशत पाँच वर्ष के निचले स्तर यानी 43.49% पर था, जबकि छात्रों के मामले में यह कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
      • वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में यह आँकड़ा  बढ़कर 5,693 हो गया।

शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक कौन-से हैं?

  • शैक्षणिक दबाव:
    • माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
    • असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:  
    • अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
      • ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
  • अलगाव और अकेलापन:  
    • शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
    • यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • वित्तीय चिंताएँ:  
    • वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
    • इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है। 
  • समर्थन की कमी:  
    • शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं। 
      • यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है। 
    • समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं। 
  • विफलता की निंदा:
    • भारतीय समाज में प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता के चलते अक्सर विद्यार्थियों की निंदा की जाती है। छात्रों को अपने संघर्षों को स्वीकार करने या अपने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने में शर्म महसूस हो सकती है, जिससे उन्हें समर्थन की कमी महसूस हो सकती है।

आत्महत्याओं को कम करने हेतु कौन-सी पहलें की गई हैं?

  • वैश्विक पहल: 
    • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD): यह प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है, WSPD की स्थापना वर्ष 2003 में WHO के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी। यह स्टिग्मा को कम करता है और संगठनों, सरकार एवं जनता के बीच जागरूकता बढ़ाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है।
    • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: 10 अक्तूबर को प्रत्येक वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का समग्र उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। 
  • भारतीय पहल:
    • मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम (MHA), 2017: MHA 2017 का उद्देश्य मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
    • किरण (KIRAN): सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से परेशान लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन "किरण" शुरू की है।
    • मनोदर्पण पहल: मनोदर्पण आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
      • इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के दौरान उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति:
      • वर्ष 2023 में घोषित राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति देश में अपनी तरह की पहली योजना है, जो वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग है। यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।

आगे की राह

  • छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
  • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय समाज में नवयुवतियों में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? स्पष्ट कीजिये। (2023)

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