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आंतरिक सुरक्षा

अवैध प्रवासियों का मुद्दा

  • 13 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रोहिंग्या प्रवासी, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये: 

रोहिंग्याओं  के अवैध प्रवास को रोकने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में गृह मंत्रालय ने कुछ रिपोर्ट्स के आधार पर लोकसभा में जानकारी दी है कि कुछ रोहिंग्या प्रवासी अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं।

  • देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे गए सवालों पर यह प्रतिक्रिया आई।

रोहिंग्या

  • रोहिंग्या लोग एक स्टेटलेस (Stateless), इंडो-आर्यन जातीय समूह हैं जो रखाइन राज्य, म्याँमार में रहते हैं।
  • इन्हें संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा विश्व में सबसे अधिक सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है।
  • रोहिंग्या शरणार्थी संकट रोहिंग्या लोगों द्वारा म्याँमार में लंबे समय से हिंसा और भेदभाव का सामना करने का कारण है। 
  • म्याँमार में भेदभाव और हिंसा से बचने के लिये अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमान दशकों से बौद्ध-बहुल देश से पड़ोसी बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों में प्रवास कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

मुद्दे और चिंताएंँ:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा:
    • भारत में रोहिंग्याओं के अवैध अप्रवास का जारी रहना और उनका भारत में लगातार रहना, राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डालता है तथा सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा करता है।
  • हितों का टकराव:
    • यह उन क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के हितों को प्रभावित करता है जो बड़े पैमाने पर अप्रवासियों के अवैध रुप से प्रवेश का सामना करते हैं। 
  • राजनैतिक अस्थिरता:
    • यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ाता है जब नेता राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिये अभिजात वर्ग द्वारा प्रवासियों के खिलाफ देश के नागरिकों की धारणा को लामबंद करना शुरू करते हैं।
  • उग्रवाद का उदय:
    • अवैध प्रवासियों के रूप में माने जाने वाले मुस्लिमों के खिलाफ लगातार होने वाले हमलों ने कट्टरपंथ का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • मानव तस्करी:
    • हाल के दशकों में सीमाओं पर महिलाओं और मानव तस्करी की घटनाओं में काफी वृद्धि देखी गई है। 
  • कानून व्यवस्था में गड़बड़ी:
    • अवैध और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त अवैध प्रवासियों द्वारा देश की कानून व्यवस्था और अखंडता को कमज़ोर किया जाता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को निर्देश जारी किये थे, जिसमें उन्हें अवैध प्रवासियों की त्वरित पहचान हेतु उचित कदम उठाने के लिये कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील बनाने की सलाह दी गई थी।
  • विदेशी नागरिकों के अधिक समय तक रुकने और अवैध प्रवास की समस्या के निपटान हेतु समेकित निर्देश भी जारी किये गए हैं।

मौजूदा कानूनी ढाँचा:

  • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920:
    • इस अधिनियम ने सरकार को भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को अपने पास पासपोर्ट रखने के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया।
    • इसने सरकार को बिना पासपोर्ट के प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत से हटाने की शक्ति भी प्रदान की।
  • विदेशी अधिनियम, 1946:
    • इसने विदेशी अधिनियम, 1940 की जगह सभी विदेशियों से निपटने हेतु व्यापक अधिकार प्रदान किये।
    • इस अधिनियम ने सरकार को बल प्रयोग सहित अवैध प्रवासियों को रोकने के लिये आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया।
    • 'बर्डन ऑफ प्रूफ' की अवधारणा व्यक्ति के पास है, न कि इस अधिनियम द्वारा दिये गए अधिकारियों के पास जो अभी भी सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू है। इस अवधारणा को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने बरकरार रखा है।
    • इस अधिनियम ने सरकार को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया, जिसमें सिविल कोर्ट के समान अधिकार होंगे।
    • फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 में हालिया संशोधन (2019) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िला मजिस्ट्रेटों को यह तय करने के लिये ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार दिया कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
  • विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939:
    • FRRO के तहत पंजीकरण एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत सभी विदेशी नागरिकों (ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक लंबी अवधि के वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने हेतु पंजीकरण अधिकारी के समक्ष खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
    • भारत आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को ठहरने की अवधि की परवाह किये बिना आगमन के 24 घंटों के भीतर पंजीकरण कराना आवश्यक है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955:
    • यह भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण और निर्धारण संबंधी प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • इसके अलावा संविधान ने भारत के प्रवासी नागरिकों, अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिये नागरिकता संबंधी अधिकार प्रदान किये हैं।

अवैध प्रवासी बनाम शरणार्थी

अवैध प्रवासी बनाम शरणार्थी

  • वैध यात्रा दस्तावेज़ों के बिना देश में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना जाता है।

शरणार्थी

  • वर्ष 1951 के ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द स्टेटस ऑफ रिफ्यूजीज़’ और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल के तहत शरणार्थी शब्द किसी भी ऐसे व्यक्ति से संबंधित है, जो अपने मूल देश से बाहर है और नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न के डर से लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक है।
    • ज्ञात हो कि भारत ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द स्टेटस ऑफ रिफ्यूजीज़’ तथा वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • ‘स्टेटलेस’ व्यक्ति भी इस अर्थ में शरणार्थी हो सकते हैं, जहाँ मूल देश (नागरिकता) को 'पूर्व निवास स्थान का देश' माना जाता है।

आगे की राह

  • वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे अधिक शरणार्थी वाले देशों में एक है।
  • हालाँकि यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता, तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत की ओर आने से रोक सकता था।
  • इसके अलावा राष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों की अनुपस्थिति ने शरणार्थियों और आर्थिक प्रवासियों के बीच अंतर को कम कर दिया है, जिसके कारण प्रायः वास्तविक शरण चाहने वालों को भी सहायता से इनकार कर दिया जाता है।
  • अपने घरेलू शरणार्थी कानूनों को लागू करने के बाद भारत को वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के लिये भी विचार करना चाहिये।
  • यदि भारत ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (सार्क) में अन्य देशों को शरणार्थियों को लेकर एक सार्क कन्वेंशन या घोषणा पर विचार के लिये प्रोत्साहित करने की पहल करे तो बेहतर होगा, जिसमें सदस्य राज्य वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल की पुष्टि करने के लिये सहमत हों।

स्रोत: पी.आई.बी.

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