सतत् पशुधन परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी | 24 Jul 2023

प्रिलिम्स के लिये:

G20, अनुच्छेद 48, अनुच्छेद 51A(g), गाँठदार त्वचा रोग, गर्मी का तनाव, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 

मेन्स के लिये:

भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

G20 के कृषि कार्य समूह (AWG) के तहत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, आनंद में सतत् पशुधन परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया।

भारत में पशुधन क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई हिस्से को आजीविका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।
      • भारत में डेयरी सबसे बड़ा एकल कृषि क्षेत्र है। भारत दूध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23% का योगदान देता है।
    • 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 303.76 मिलियन गोवंश (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक), 74.26 मिलियन भेड़, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 9.06 मिलियन सूअर और लगभग 851.81 मिलियन मुर्गियाँ हैं।
    • खाद्य और कृषि संगठन कॉर्पोरेट सांख्यिकीय डेटाबेस (FAOSTAT) उत्पादन डेटा (2020) के अनुसार, भारत विश्व में अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में 8वें स्थान पर है।
  • संबंधित संवैधानिक प्रावधान:  
    • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत: 
      • अनुच्छेद 48: राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने की दिशा में काम करेगा।
      • यह गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू तथा माल ढोने वाले मवेशियों की नस्लों के संरक्षण एवं सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाएगा तथा हत्या पर रोक लगाएगा।
    • मौलिक कर्तव्य:
      • अनुच्छेद 51A(g): जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना तथा सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया दिखाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:  
  • पशुधन क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:  

आगे की राह 

  • पशुधन आहार के लिये पोषण संबंधी नवाचार: वैकल्पिक एवं सतत् चारा स्रोतों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
    • पारंपरिक चारा फसलों पर निर्भरता कम करने के लिये कीट-आधारित प्रोटीन, शैवाल-आधारित पूरक और उपोत्पाद उपयोग हेतु प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • पशुधन अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाएँ:  बायोगैस उत्पादन के लिये पशुधन अपशिष्ट का उपयोग करने वाले बायोएनर्जी संयंत्रों की स्थापना को बढ़ावा देना।
    • यह न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।  
      • बायोगैस उत्पादन के उपोत्पादों का उपयोग जैविक उर्वरकों के रूप में किया जा सकता है, जिससे संसाधन उपयोग की बाधा समाप्त होगी और स्थिरता बढ़ेगी। 
    • साथ ही कृषि अपशिष्ट को पौष्टिक पशु आहार में परिवर्तित करके चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना, जो पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी दोनों हो सकता है
  • आनुवंशिक निगरानी: भारत में पशुधन के लिये विशेष रूप से वायरस की आनुवंशिक निगरानी को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • चूँकि लम्पी रोग (Lumpy Skin Disease) का प्रकोप उच्च मृत्यु दर के साथ तेज़ी से फैल रहा है, इसलिये इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये इसकी आनुवंशिक संरचना की जाँच करने और इसके व्यवहार का विश्लेषण करने की आवश्यकता है
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाना: व्यक्तियों, जानवरों, पौधों और पर्यावरण के अंतर्संबंध को समझना तथा वन हेल्थ दृष्टिकोण को पहचानना महत्त्वपूर्ण है।
    • अनुसंधान और ज्ञान साझा करने में अंतःविषय सहयोग को प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है तथा ज़ूनोटिक रोगों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है?  (वर्ष 2012)

 (A) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती
 (B) एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों की खेती
 (C) पशुओं का पालन और फसलों की एक साथ खेती
 (D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

 उत्तर: (C)


मेन्स  

प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार और आय प्रदान करने के लिये पशुधन पालन में बड़ी संभावना है। भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त उपायों का सुझाव देने पर चर्चा कीजिये।(2015) 

स्रोत: पी.आई.बी.