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सामाजिक न्याय

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

  • 11 Oct 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा, सतत् विकास लक्ष्य

मेन्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे, महिलाओं से संबंद्ध मुद्दे

चर्चा में क्यों?

प्रत्येक वर्ष 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • इतिहास में पहली बार वर्ष 1995 में बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन ने लड़कियों के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिये एक कार्ययोजना का प्रस्ताव रखा।
    • वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में घोषित करने हेतु संकल्प 66/170 को अपनाया।
  • वर्ष 2022 की थीम: 'हमारा समय अभी है - हमारे अधिकार, हमारा भविष्य' (Our Time is now- our rights, our Future)।
  • महत्त्व:
    • यह दिन लड़कियों के अधिकारों और दुनिया भर में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों को पहचानने के लिये मनाया जाता है।
    • यह दिवस लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और लड़कियों के सशक्तीकरण एवं उनके मानवाधिकारों की पूर्ति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • साथ ही यह महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता समेत 17 सतत् विकास लक्ष्यों का अभिन्न अंग है।
    • लैंगिक समानता की उपलब्धि सतत् विकास एजेंडा में निर्धारित 17 सतत् विकास लक्ष्यों में पाँचवा है।
      • सभी लक्ष्यों में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को सुनिश्चित करके ही न्याय, समावेश, आर्थिक विकास एवं एक स्थायी वातावरण प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में बालिकाओं की स्थिति:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट "भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2021" के अनुसार:
      • कोविड से संबंधित प्रतिबंध के कारण वर्ष 2020 में गिरावट के बाद बच्चों के खिलाफ अपराध महामारी पूर्व के स्तर को पार कर गया।
      • वर्ष 2021 में 1.49 लाख ऐसे मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2019 के 1.48 लाख से अधिक हैं।
    • NCRB द्वारा प्रकाशित आँकड़े भारत के पूर्वी राज्यों के मामले में विशेष रूप से गंभीर हैं:
      • सिक्किम में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की दर सबसे अधिक है, इसके बाद केरल, मेघालय, हरियाणा और मिज़ोरम का स्थान है।
      • पश्चिम बंगाल और ओडिशा शीर्ष पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, एमपी और यूपी के साथ) में शामिल हैं, जो देश भर में बच्चों के खिलाफ किये गए कुल अपराधों का 47.1% है।
        • वर्ष 2021 में अकेले पश्चिम बंगाल में बच्चों के खिलाफ अपराध के 9,523 मामले दर्ज किये गए।
  • बालिकाओं से संबंधित मुद्दे:
    • कन्या बाल हत्या और भ्रूण हत्या:
      • भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है।
      • कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र को वरीयता देना, दहेज प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
      • वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 के 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।
    • बाल विवाह:
      • प्रत्येक वर्ष भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों की शादी हो चुकी है।
      • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 5 के अनुसार, बाल विवाह में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2015-16 के 27% से घटकर वर्ष 2019-20 में 23% हो गई है।
    • शिक्षा:
      • लड़कियाँ घर के कामों में अधिक व्यस्त रहती हैं और कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं।
        • इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल में पढ़ रही लड़कियों की तुलना में स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक होती है या उनकी शादी पहले तय हो चुकी होती है।
    • स्वास्थ्य और मृत्यु दर:
      • भारत में लड़कियों को अपने घरों के अंदर और बाहर अपने समाज में ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में असमानता का अर्थ है लड़कियों के लिये असमान अवसर।
      • भारत में पाँच साल से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 फीसदी अधिक है। विश्व स्तर पर यह लड़कों के लिये 14% अधिक है।
  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम
    • बेटी बचाओ बेटी पढाओ: इसे वर्ष 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात और कम होते बाल लिंगानुपात (वर्ष 2011 में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में यह योजना शुरू की गई। यह माता-पिता को लड़कियों के भविष्य के अध्ययन और विवाह पर होने वाले खर्च के लिये निवेश करने तथा धन एकत्रित करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
    • सीबीएसई उड़ान योजना: यह योजना सीबीएसई द्वारा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन और स्कूली शिक्षा एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच शैक्षिक अंतराल को दूर करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
    • माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): यह वर्ष 2008 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर 14-18 आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से ऐसी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये जिन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है।
    • किशोरियों हेतु योजना: सरकार किशोर लड़कियों हेतु योजना भी लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य किशोरियों (AG) को सुविधा प्रदान करना, शिक्षित करना और सशक्त बनाना है ताकि वे आत्मनिर्भर एवं जागरूक नागरिक बन सकें।

आगे की राह

  • बाल संरक्षण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण:
    • देश की बाल संरक्षण प्रणाली को मज़बूत करने और पुलिस, न्यायिक एवं कानूनी प्रणालियों को अधिक सक्रिय बनाने के लिये तत्काल उपाय किये जाने की आवश्यकता है।
  • समुदाय आधारित बाल संरक्षण तंत्र:
    • बच्चों से संबंधित अपराधों में दोषसिद्धि दर कम होती है और लंबितता दर ज़्यादा होती है, इसलिये समुदाय-आधारित बाल संरक्षण तंत्र को बढ़ावा देना, जैसे कि ग्राम-स्तरीय बाल संरक्षण समितियाँ इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  • सामाजिक जागरूकता बढ़ाना:
    • स्कूली शिक्षा में लैंगिक मुद्दों पर संवेदीकरण को शामिल करके पितृसत्तात्मक सामाजिक दृष्टिकोण और पूर्वाग्रहों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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