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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला

  • 21 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला, न्यूट्रिनो, पश्चिमी घाट, संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र, पेरियार टाइगर रिज़र्व, शोला नेशनल पार्क, वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट, सुपरनोवा।

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक नवाचार और  खोजें , भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला, न्यूट्रिनो, आईएनओ के विपक्ष में तर्क, भविष्य में न्यूट्रिनो के अनुप्रयोगों में भारतीयों की उपलब्धियांँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तमिलनाडु सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में  स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकार नहीं चाहती है कि भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (Indian Neutrino Observatory- INO) को पश्चिमी घाट के इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones) में स्थापित किया जाए।

  • स्थानीय विरोध  के बावजूद INO की स्थापना से वन्य जीवन और जैव विविधता को भारी क्षति हो सकती है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास के 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।

TamilNadu

प्रमुख बिंदु 

तमिलनाडु सरकार की दलील:

  • सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि यह परियोजना पश्चिमी घाट के उस हिस्से के  पहाड़ी ढलानों पर पड़ती है, जिसके भीतर एक महत्त्वपूर्ण बाघ गलियारा, अर्थात् मथिकेत्तन-पेरियार बाघ गलियारा (Mathikettan-Periyar tiger corridor) स्थित है।
    • यह गलियारा केरल और तमिलनाडु की सीमाओं के साथ पेरियार टाइगर रिज़र्व और मथिकेत्तन शोला राष्ट्रीय उद्यान को जोड़ता है।
    • उत्खनन और निर्माण गतिविधियाँ उन जंगली जानवरों को परेशान करेंगी जो मौसमी प्रवास के लिये इस गलियारे का उपयोग करते हैं।
  • यह क्षेत्र संभल और कोट्टाकुडी नदियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण वाटरशेड व जलग्रहण क्षेत्र है।
  • हालांँकि वेधशाला में परीक्षण एक किलोमीटर की गहराई (भूमिगत) में किये जाएंगे जिसमें बड़े पैमाने पर विस्फोट, परिवहन, खुदाई और सुरंग जैसी गतिविधियांँ शामिल हैं जो पश्चिमी घाट क्षेत्र की पारिस्थितिक स्थिरता को खतरे में डाल देगी।
  • पश्चिमी घाटों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है क्योंकि यह  क्षेत्र एक वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट और जैविक विविधता का खजाना हैं।
    • विशिष्ट क्षेत्र में बड़ी संख्या में हाथियों और बाघों के अलावा फूलों के पौधों, मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों, स्तनधारियों और अकशेरुकी जीवों की कई स्थानिक प्रजातियांँ विद्यमान हैं।

भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (INO):

  • यह एक प्रस्तावित कण भौतिकी अनुसंधान मेगा परियोजना है।
  • परियोजना का उद्देश्य 1,200 मीटर गहरी गुफा में न्यूट्रिनो का अध्ययन करना था।
  • इस परियोजना को तमिलनाडु में थेनी ज़िले के पोट्टीपुरम गाँव में स्थापित करने का प्रस्ताव है।
  • इस परियोजना को शुरू में गणितीय विज्ञान संस्थान और फिर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

INO

प्रस्तावित स्थल का महत्त्व:

  • प्रस्तावित स्थल की पहचान थेनी ज़िले में इसलिये की गई क्योंकि सभी दिशाओं में 1 किमी. से अधिक क्षेत्र में फैली चट्टानें डिटेक्टर को अन्य ब्रह्मांडीय किरणों से सुरक्षित करती हैं।
    • चूँकि न्यूट्रिनो किसी भी वस्तु से आसानी से गुज़र सकते हैं,जिससे वे डिटेक्टर तक आसानी से पहुँच सकते है जबकि अन्य कण पहाड़ी चट्टानो द्वारा फील्टर किये जा सकते हैं।
  • इसकी भौगोलिक स्थिति काफी भिन्न है क्योंकि सभी मौज़ूदा न्यूट्रिनो डिटेक्टर (अन्य देशों में) 35 डिग्री उत्तर या दक्षिण से उच्च अक्षांश पर स्थित हैं।
    • जिनमें से कोई भी डिटेक्टर अभी तक भूमध्य रेखा के समीप नहीं है।

न्यूट्रिनो:

  • न्यूट्रिनो एक मौलिक प्राथमिक कण है और जब सौर विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल से टकराता है तो वायुमंडलीय न्यूट्रिनो का अध्ययन किया जा सकता है।
  • उनका पता लगाना बहुत कठिन होता है क्योंकि वे विद्युत आवेश की कमी के कारण पदार्थ के अन्य रूपों के साथ मुश्किल से परस्पर मिलते हैं।
    • हालाँकि वे ब्रह्मांड के प्राथमिक भौतिकी में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसे भौतिक विज्ञानी कुछ दशकों से समझने की कोशिश कर रहे हैं।
  • इनका निर्माण उच्च-ऊर्जा प्रक्रियाओं जैसे सितारों के भीतर और सुपरनोवा से होता है तथा पृथ्वी पर वे कण त्वरक और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों द्वारा निर्मित होते हैं।
  • दूरस्थ तारों और आकाशगंगाओं से न्यूट्रिनो का अवलोकन करने के लिये अब तक न्यूट्रिनो भौतिकी ज़्यादातर बाहरी अंतरिक्ष स्रोतों तक ही सीमित रही है।

न्यूट्रिनो के भविष्य के अनुप्रयोग:

  • सूर्य के गुण: प्रकाश सूर्य की सतह से उत्सर्जित होता है और न्यूट्रिनो जो प्रकाश की गति के करीब यात्रा करते हैं, सूर्य के केंद्र में उत्पन्न होते हैं।
    • इन न्यूट्रिनो का अध्ययन करने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि सूर्य के आंतरिक भाग में क्या चल रहा है।
  • ब्रह्मांड के घटक: दूरस्थ तारों से आने वाले प्रकाश का अध्ययन खगोलविदों द्वारा किया जा सकता है, उदाहरण के लिये नए ग्रहों का पता लगाने हेतु।
    • इसी तरह यदि न्यूट्रिनो के गुणों को बेहतर ढंग से समझा जाए, तो उनका उपयोग खगोल विज्ञान में यह पता लगाने के लिये किया जा सकता है कि ब्रह्मांड किससे बना है।
  • प्रारंभिक ब्रह्मांड की जाँच: न्यूट्रिनो अपने आस-पास मौजूद तत्त्वों के साथ काफी कम क्रिया करते हैं, इसलिये वे लंबी दूरी तक निर्बाध यात्रा कर सकते हैं। एक्सट्रैगैलेक्टिक (मिल्की वे आकाशगंगा के बाहर उत्पन्न होने वाले) न्यूट्रिनो जो हम देखते हैं, वे काफी दूर से आते हैं।
    • ये न्यूट्रिनो हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और बिग बैंग के तुरंत बाद ब्रह्मांड के शुरुआती चरणों के बारे में जानकारी दे सकते हैं।
  • मेडिकल इमेजिंग: प्रत्यक्ष उपयोग के अलावा इसका अध्ययन करने हेतु प्रयोग किये जाने वाले डिटेक्टरों के तकनीकी अनुप्रयोग भी हैं।
    • उदाहरण के लिये एक्स-रे मशीन, एमआरआई स्कैन आदि।
    • इसलिये INO संसूचकों के चिकित्सा इमेजिंग में अनुप्रयोग हो सकते हैं।

इको-सेंसिटिव ज़ोन क्या हैं?

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
    • संवेदनशील गलियारे, संपर्क और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से अधिक क्षेत्र को भी इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • ESZ को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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