सामाजिक न्याय
भारत का जल संकट और महिलाएँ
- 18 Aug 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय भूजल बोर्ड मेन्स के लियेजल संसाधन और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
बदलते मौसम परिस्थितियों और बार-बार सूखे की वजह से भारत जल संकट से जूझ रहा है और इस संकट की सबसे ज़्यादा शिकार महिलाएँ होती हैं।
- भारत में पानी की कमी की स्थिति और खराब होने की आशंका है क्योंकि वर्ष 2050 तक कुल जनसंख्या के 1.6 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु:
जल संकट:
- हालाँकि भारत में दुनिया की आबादी का 16% हिस्सा है, लेकिन भारत के पास दुनिया के फ्रेशवाटर संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही है।
- हाल के दिनों में भारत में जल संकट की समस्या बहुत गंभीर है, जिसने पूरे भारत में लाखों लोगों को प्रभावित किया है।
- हाल के केंद्रीय भूजल बोर्ड के आँकड़ों (2017 से) के अनुसार, भारत के 700 में से 256 ज़िलों में भूजल स्तर के 'गंभीर' या 'अत्यधिक दोहन' की सूचना है।
- भारत के तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों की पाइप के पीने योग्य पानी तक पहुँच नहीं है और उन्हें असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है, जो कुल जल का 25% हिस्सा है। हमारे लगभग 70% जल स्रोत दूषित हैं और हमारी प्रमुख नदियाँ प्रदूषण के कारण सूख रही हैं।
जल संकट का कारण:
- जनसंख्या वृद्धि:
- जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति पानी की अपर्याप्तता।
- भारत में उपयोग करने योग्य पानी की कुल मात्रा 700 से 1,200 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच होने का अनुमान लगाया गया है।
- एक देश को जल-तनावग्रस्त माना जाता है यदि उसके पास प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की मात्रा 1,700 क्यूबिक मीटर से कम है।
- खराब पानी की गुणवत्ता:
- भारत में अधिकांश नदियों का पानी पीने के लायक नहीं है और कई हिस्सों में तो नहाने लायक भी नहीं है।
- पानी की खराब गुणवत्ता शहरी जल उपचार सुविधाओं में अपर्याप्त और विलंबित निवेश का परिणाम है।
- इसके अलावा औद्योगिक अपशिष्ट मानकों को लागू नहीं किया जाता है क्योंकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास अपर्याप्त तकनीक और मानव संसाधन हैं।
- घटती भूजल आपूर्ति:
- किसानों द्वारा अधिक दोहन के कारण भूजल आपूर्ति घट रही है।
- कुछ क्षेत्रों में कम बारिश के कारण भी भूजल कम हो रहा है।
- टिकाऊ खपत:
- कुएँ, तालाब और टैंक सूखने की स्थिति में हैं क्योंकि भूजल संसाधनों पर अति-निर्भरता और निरंतर खपत के कारण उन पर दबाव बढ़ रहा है।
- पानी का असमान वितरण, प्रदूषण के कारण स्थानीय जल निकायों का दूषित होना / कमी और उचित जल उपचार सुविधा न होना आदि स्थितियाँ भारत में जल संकट को बढ़ा रही है।
महिलाओं पर प्रभाव:
- महिलाओं की संवेदनशीलता:
- जल संकट महिलाओं को उच्च जोखिम के कारण संवेदनशील बनाता है। भारत में पानी लाना सदियों से महिलाओं का काम माना जाता रहा है।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ निकटतम स्रोत से पानी लेने के लिये मीलों पैदल चलकर आती हैं।
- स्वच्छता तक कम पहुँच:
- महिलाओं का हाशिये पर होना तथा उनके लिये विशिष्ट शौचालय की कमी के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- इस संपूर्ण व्यवस्था के कारण उन्हें जल वाहक बनने के लिये मज़बूर किया जा रहा है, जिसके कारण उनके पास अपने लिये बहुत कम समय होता है। यह महिलाओं के लिये स्वच्छता, बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तक पहुँच को और कम करता है।
- वाटर-वाइफ
- महिलाओं द्वारा समग्र जल प्रबंधन के चलते महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त गाँव में विवाह की एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। इसमें पानी इकट्ठा करने के लिये एक से अधिक जीवनसाथी का होना शामिल है। व्यवस्था को 'वाटर-वाइफ' कहा जाता है।
- यह निस्संदेह प्रतिगामी सोच का एक उदाहरण है, जहाँ महिलाओं को पानी के पाइप या टैंकरों के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
- महिलाओं द्वारा समग्र जल प्रबंधन के चलते महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त गाँव में विवाह की एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। इसमें पानी इकट्ठा करने के लिये एक से अधिक जीवनसाथी का होना शामिल है। व्यवस्था को 'वाटर-वाइफ' कहा जाता है।
संबंधित सरकारी पहलें:
- जल क्रांति अभियान।
- राष्ट्रीय जल मिशन।
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम।
- नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक।
- जल जीवन मिशन।
- जल शक्ति अभियान।
- अटल भू-जल योजना।
आगे की राह
- लैंगिक समानता प्राप्त करने और दुनिया की आधी आबादी की क्षमता को अनलॉक करने में पानी, स्वच्छता और स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित किया जाना एक महत्त्वपूर्ण चालक है। जल संकट महिलाओं का मुद्दा है और नारीवादियों को इस विषय पर बात करने की ज़रूरत है।
- नदी के पानी को दूषित होने से बचाने के लिये बाढ़ के जल स्तर को नदी के जल स्तर से काफी ऊपर रखने की आवश्यकता है।
- जैविक खाद्य वनों या फलों के ऐसे वृक्षों को लगाकर बाढ़ के मैदानों को सुरक्षित किया जा सकता है जो अधिक पानी की मांग या उपभोग नहीं करते हैं।
- जल प्रबंधन में निगमों को अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) प्रयासों का उपयोग करने के लिये नवाचार और जल संरक्षण तथा जल पुनर्भरण की दिशा में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये।