भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता | 14 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौता (FTA), G20 देश, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी सौदा, विश्व व्यापार संगठन।

मेन्स के लिये:

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता और भारत के लिये इसका महत्त्व, मुक्त व्यापार समझौते

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और ब्रिटेन ने औपचारिक ‘मुक्त व्यापार समझौता’ (FTA) वार्ता शुरू की है, जिसे दोनों देशों ने वर्ष 2022 के अंत तक समाप्त करने की परिकल्पना की है।

  • तब तक दोनों देश एक अंतरिम मुक्त व्यापार क्षेत्र पर विचार कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश वस्तुओं पर शुल्क कम हो जाएगा।

North-Sea

प्रमुख बिंदु

  • समझौते के विषय में:
    • दोनों देश कुछ चुनिंदा सेवाओं के लिये नियमों में ढील देने के अलावा वस्तुओं के एक छोटे से समूह पर टैरिफ कम करने के लिये एक प्रारंभिक फसल योजना या एक सीमित व्यापार समझौते पर सहमत हुए हैं।
    • इसके अलावा वे ‘संवेदनशील मुद्दों’ से बचने और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने पर सहमत हुए जहाँ अधिक पूरकता मौजूद है।
      • व्यापार वार्ता में कृषि और डेयरी क्षेत्रों को भारत के लिये संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।
    • साथ ही वर्ष 2030 तक भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य भी रखा गया है।
  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
    • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है।
    • एक मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार खरीदा एवं बेचा जा सकता है, जिसके लिये बहुत कम या न्यून सरकारी शुल्क, कोटा तथा सब्सिडी जैसे प्रावधान किये जाते हैं।
    • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
    • FTAs को अधिमान्य व्यापार समझौता,  व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंध: 

  • परिचय:
    • भारत और ब्रिटेन हमारे साझा इतिहास और समृद्ध संस्कृति पर बनी साझेदारी के साथ जीवंत लोकतंत्र हैं।
    • ब्रिटेन में विविध भारतीय डायस्पोरा जो एक "लिविंग ब्रिज" के रूप में कार्य करता है दोनों देशों के बीच संबंधों को और गति प्रदान करता है।
    • G20 देशों में ब्रिटेन भारत के सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
  • भारत और ब्रिटेन के बीच एफटीए का महत्त्व:
    • माल का निर्यात बढ़ाना: यूके के साथ व्यापार सौदों से कपड़ा, चमड़े का सामान और जूते जैसे बड़े रोज़गार पैदा करने वाले क्षेत्रों के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
      • भारत की 56 समुद्री इकाइयों की मान्यता के माध्यम से भारत समुद्री उत्पादों के निर्यात में भारी उछाल दर्ज़ करने की भी उम्मीद है।
      • फार्मा पर म्युचुअल रिकग्निशन एग्रीमेंट (एमआरए) अतिरिक्त बाज़ार पहुँच प्रदान कर सकता है। 
    • सेवा व्यापार पर स्पष्टता: एफटीए से निश्चितता, पूर्वानुमेयता और पारदर्शिता प्रदान करने की उम्मीद है इसे यह एक अधिक उदार, सुविधाजनक एवं प्रतिस्पर्द्धी सेवा व्यवस्था बनाएगा।
      • आयुष और ऑडियो-विजुअल सेवाओं सहित आईटी/आईटीईएस, नर्सिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे सेवा क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की भी काफी संभावनाएँ हैं।
      • भारत के लिये सेवा व्यापार को बढ़ावा देने हेतु वीज़ा प्रतिबंध एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
    • RCEP से बाहर निकलना: भारत ने नवंबर 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी सौदे से बाहर होने का विकल्प चुना।
      • इसलिये अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूके के साथ व्यापार सौदों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जो भारतीय निर्यातकों के लिये प्रमुख बाज़ार हैं और अपने सोर्सिंग में विविधता लाने के इच्छुक हैं।
    • रणनीतिक लाभ: यूरोप में एक सुरक्षा सहयोगी के रूप में बने रहते हुए ब्रिटेन हिंद-प्रशांत क्षेत्र की तरफ झुक रहा है, जहाॅं भारत एक स्वाभाविक सहयोगी हो सकता है।
      • वैश्विक स्तर पर चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत को क्षेत्रीय संतुलन बहाल करने के लिये व्यापक गठबंधन की आवश्यकता है।
  • संबंधित चुनौतियाॅं: 
    • FTA पर हस्ताक्षर करने में देरी: अंतरिम समझौते, जो कुछ उत्पादों पर टैरिफ को कम करते हैं, हालाँकि कुछ मामलों में व्यापक एफटीए में महत्त्वपूर्ण देरी हो सकती है।
      • भारत ने वर्ष 2004 में थाईलैंड के साथ 84 वस्तुओं पर शुल्क कम करने के लिये एक अंतरिम व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन समझौते को कभी भी पूर्ण एफटीए में परिवर्तित नहीं किया गया।
    • विश्व व्यापार संगठन की चुनौतियाँ: अंतरिम एफटीए पूर्ण एफटीए में स्नातक नहीं है, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) अन्य देशों की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
      •  विश्व व्यापार संगठन के नियम केवल सदस्यों को अन्य देशों के लिये तरजीही की अनुमति देते हैं यदि उनके पास द्विपक्षीय समझौते हैं जो उनके बीच "पर्याप्त रूप से सभी व्यापार" को शामिल करते हैं।

आगे की राह 

  • भारत विश्व की सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और भारत ने यूके के साथ FTA व्यापार को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • हालांँकि नीति निर्माताओं के अनुसार, यूके के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित FTA अपेक्षित लाभप्रदाता की स्थिति में नहीं है एवं इसके विपरीत उदार नियमों के कारण देश के विनिर्माण क्षेत्र को नुकसान पहुंँचा है।
  • इसलिये इसमें शामिल सभी हितधारकों द्वारा वस्तुओं, सेवाओं और निवेश प्रवाह के संदर्भ में FTA  के विस्तृत मूल्यांकन की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस