प्रौद्योगिकी
भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन
- 15 Jun 2019
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2030 तक भारत अमेरिका, रूस और चीन के सर्वोत्कृष्ट अंतरिक्ष क्लब में शामिल होकर अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन शुरू करने योजना बना रहा है।
प्रमुख बिंदु
- स्पेस स्टेशन एक अंतरिक्षयान होता है जिसमें चालक दल के सदस्यों के रहने की सुविधा होती है। इसे इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह लंबे समय तक अंतरिक्ष में रह सके इसके अलावा इसमें एक अन्य अंतरिक्ष यान भी जुड़ सकता है।
- अभी तक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) जिसे वर्ष 1998 में अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है। उल्लेखनीय है कि ISS पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित सबसे बड़ा मानव निर्मित निकाय है।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन
(Indian Space Station)
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Indian Space Station), जिसका भार लगभग 20 टन होगा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तुलना में बहुत हल्का होगा। इसका प्रयोग माइक्रो ग्रेविटी (Microgravity) से संबंधित परीक्षणों में किया जाएगा न कि अंतरिक्ष यात्रा के लिये।
- इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्री इसमें लगभग 20 दिनों तक रह सकेंगे। यह परियोजना गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) का विस्तार के रूप में होगी।
- यह अंतरिक्ष स्टेशन लगभग 400 किमी की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (Space Docking experiment- Spadex) पर काम कर रहा है।
“स्पेस डॉकिंग का तकनीक का तात्पर्य अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की तकनीक से है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होता है। अतः स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।”
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का महत्त्व
- अंतरिक्ष स्टेशन सार्थक वैज्ञानिक डेटा (विशेष रूप से जैविक प्रयोगों के लिये) एकत्र करने के लिये आवश्यक है।
- इससे भारत की निगरानी क्षमता में वृद्धि होगी।
- इससे अंतरिक्ष में बार-बार निगरानी उपग्रह को भेजने पर आने वाले खर्च में भी कमी आएगी।