भारत की डी-हाईफेनेशन नीति : इज़रायल और फिलिस्तीन | 06 Nov 2021
प्रिलिम्स के लिये:COP26, डी-हाईफेनेशन नीति, संयुक्त राष्ट्र संकल्प-181 मेन्स के लिये:इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष : भारत की डी-हाईफेनेशन नीति का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन के दौरान फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री ने सभी संबंधित पक्षों के साथ सहयोग बनाए रखते हुए पश्चिम एशिया में एक स्थायी भूमिका निभाने के लिये भारत के समर्थन का आह्वान किया।
- यह वक्तव्य भारत के विदेश मंत्री की इज़रायल यात्रा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीनी क्षेत्र की यात्रा को शामिल नहीं किया था।
- भारत हाल के वर्षों में इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच एक डी-हाईफेनेशन नीति (De-Hyphenated Policy) का पालन कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
- इज़रायल और फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति:
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के अंत में हुई। यह यरुशलम के प्रतीक और भूमि को लेकर सदियों पुराने संघर्ष से जुड़ा है।
- वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने संकल्प-181 को अपनाया गया जिसे विभाजन योजना के रूप में जाना जाता है। इसने फिलिस्तीन के ब्रिटिश जनादेश को अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने की मांग की।
- जिसके परिणामस्वरूप इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच अनसुलझे संघर्ष हुए।
- परंपरागत रूप से, इज़रायल और फिलिस्तीन के प्रति भारत की विदेश नीति एक हाईफेनेशन विदेश नीति रही है।
- हालाँकि इज़रायल के साथ संबंधों को फिलीस्तीनी प्राधिकरण के साथ जोड़ना अनिवार्य रूप से भारत को अपने सर्वोत्तम हित में एक व्यावहारिक नीति का पालन करने से रोकता है।
- हाल के दिनों में भारत को नीति को डी-हाईफनेशन की ओर स्थानांतरित होते हुए देखा गया है।
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के अंत में हुई। यह यरुशलम के प्रतीक और भूमि को लेकर सदियों पुराने संघर्ष से जुड़ा है।
- डी-हाईफनेशन (Dehyphenation) की नीति:
- दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इज़रायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ संतुलन बनाने वाली रही।
- हाल के वर्षों में, भारत की स्थिति को भी इज़रायल समर्थक के रूप में देखा जा रहा है।
- वर्ष 2017 में एक अभूतपूर्व कदम के रूप में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा दोनों देशों के बजाय केवल इज़रायल का दौरा किया गया।
- फिर प्रधानमंत्री की हाल की फिलिस्तीन, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा भी नवीन नीति की ही निरंतरता है।
- पहले की नीति से हटकर और इन दो प्रतिद्वंद्वियों के प्रति एक स्वतंत्र नीति का समर्थन करना भारत की विदेश नीति में डी-हाईफनेशन कहलाता है।
- इसका मतलब है कि दोनों देशों के साथ हितों को देखते हुए भारत के संबंध इज़रायल और फिलिस्तीन के साथ अलग-अलग होंगे।
- डी-हाईफनेशन वास्तव में एक सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने वाला कार्य है, जिसमें भारत स्थिति की मांग के अनुसार एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहा है।
- जैसे-जैसे भारत वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा प्लेयर बनने की ओर बढ़ रहा है, इन पूर्व-मौजूदा नीतियों की समीक्षा की आवश्यकता भी बढ़ रही है तथा इज़रायल व फिलिस्तीन को डी-हाईफनेशन करने की प्रक्रिया भी इन्हीं नीतियों के अंतर्गत आती है।
- हाल के वर्षों में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन का समर्थन करने की परंपरा को तोड़ा है।
- वर्ष 2019 में भारत ने ECOSOC (आर्थिक और सामाजिक परिषद) में इज़रायल के पक्ष में मतदान किया, ताकि शहीद नामक एक फिलिस्तीनी संगठन को पर्यवेक्षक का दर्ज़ा देने से इनकार किया जा सके।
- इसके अलावा भारत ने मानवाधिकार परिषद में गाजा पट्टी में इज़रायल की कार्रवाइयों की जाँच के लिये बुलाए गए एक प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भाग नहीं लिया।
- दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इज़रायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ संतुलन बनाने वाली रही।
- भारत-फिलिस्तीन कॉल:
- भारत में फिलीस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन करने की ऐतिहासिक परंपरा रही है। फिलिस्तीन चाहता है कि भारत का तकनीकी समर्थन "राजनीतिक समर्थन के समानांतर" हो।
- यह चाहता है कि भारत फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और यरुशलम की राजधानी के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के समर्थन की पुष्टि करे।
आगे की राह
- बहुपक्षीय संगठनों में भारत की भूमिका के लिये "मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया में सुरक्षा एवं स्थिरता प्राप्त करने के लिये सभी संबंधित पक्षों के साथ सहयोग में कड़े प्रयास" की आवश्यकता है।
- भारत वर्तमान में 2021-22 के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक अस्थायी सदस्य के रूप में कार्य कर रहा है और 2022-24 के लिये मानवाधिकार परिषद के लिये फिर से निर्वाचित हुआ है। भारत को इन बहुपक्षीय मंचों का उपयोग इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे कोसुलझाने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु करना चाहिये।