भारतीय अर्थव्यवस्था
चिप निर्माण हेतु 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की योजना
- 07 Sep 2024
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प्रिलिम्स के लिये:सेमीकंडक्टर, माइक्रोस्कोपिक स्विच, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) मेन्स के लिये:भारत के सेमीकंडक्टर चिप क्षेत्र का महत्त्व और चुनौतियाँ। |
स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत चिप निर्माण प्रोत्साहन नीति (भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत) के दूसरे चरण के लिये 15 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करने हेतु तैयार है। इसने पहले इस योजना के पहले चरण के लिये 10 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- सरकार ने तीन असेंबली और परीक्षण संयंत्रों को भी स्वीकृति दी है, जिन्हें चिप की भाषा में असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग , पैकेजिंग (ATMP) और आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एवं टेस्ट (OSAT) कहा जाता है, जो फैब्रिकेशन प्लांट की तुलना में कम जटिल हैं।
सेमीकंडक्टर चिप्स क्या हैं?
- सेमीकंडक्टर चिप सेमीकंडक्टर सामग्री (आमतौर पर सिलिकॉन या जर्मेनियम) से बना एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के मूल निर्माण खंड के रूप में कार्य करता है।
- इन चिप्स में एक नाखून से भी छोटी चिप पर अरबों सूक्ष्म स्विच हो सकते हैं।
- सेमीकंडक्टर चिप का मूल घटक एक सिलिकॉन वेफर है, जो छोटे ट्रांजिस्टर के साथ उकेरा गया है, जो विभिन्न कम्प्यूटेशनल निर्देशों के अनुसार विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
- यह विभिन्न कार्य करता है, जैसे डेटा को प्रोसेस करना, जानकारी संगृहीत करना या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नियंत्रित करना।
- निर्माण प्रौद्योगिकी: यह चिप्स और ट्रांजिस्टर जैसे अर्धचालक उपकरणों को बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है और इसमें वेफर निर्माण, फोटोलिथोग्राफी, एचिंग, डोपिंग और पैकेजिंग सहित कई प्रमुख चरण शामिल हैं।
सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग की स्थिति क्या है?
- वैश्विक स्तर पर ताइवान और अमेरिका सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग के बाजार में आगे हैं।
- अमेरिका ने लगभग 50 बिलियन अमरीकी डॉलर के आवंटन के साथ एक सेमीकंडक्टर प्रोत्साहन योजना लागू की है।
- इसी तरह यूरोपीय संघ ने भी अमेरिका के समान पैमाने के प्रोत्साहन कार्यक्रम की घोषणा की है।
- भारत की वर्तमान में सेमीकंडक्टर चिप निर्माण क्षेत्र में लगभग नगण्य उपस्थिति है।
- भारत के चिपमेकिंग उद्योग को विकसित करने की आवश्यकता:
- घरेलू निर्माण संयंत्र भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, यह देखते हुए कि चिप्स का उपयोग रॉकेट से लेकर कार में पावर स्टीयरिंग से लेकर रसोई के टोस्टर तक लगभग सभी डाउनस्ट्रीम उद्योगों में किया जाता है।
- अमेरिका और चीन वैश्विक प्रौद्योगिकी मूल्य शृंखला में दो सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्र हैं। वैश्विक मंच पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित पहलों के माध्यम से अपने घरेलू उद्योग को मज़बूत करने के लिये उभरते अवसरों का लाभ उठाना चाहता है।
- भारत के चिपमेकिंग उद्योग को विकसित करने की आवश्यकता:
चिपमेकिंग के संबंध में भारत में हालिया घटनाक्रम
- हाल ही में भारत ने सिंगापुर के साथ एक चिप डील पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके पास मेमोरी चिप्स और लॉजिक प्रोसेसर में विशेषज्ञता है। इनका इस्तेमाल कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और ऑटोमोबाइल में किया जाता है।
- टाटा भारत का पहला वाणिज्यिक निर्माण संयंत्र बनाने के लिये ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (PSMC) के साथ सहयोग कर रही है।
- इससे पहले वर्ष 2023 में अमेरिका स्थित कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने अहमदाबाद के पास 22,500 करोड़ रुपए की लागत वाली सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करने के लिये गुजरात राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।
- इस परियोजना का उद्देश्य मेमोरी चिप निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता में योगदान देना है।
भारत के सेमीकंडक्टर चिपमेकिंग उद्योग की चुनौतियाँ क्या हैं?
- उच्च पूंजी आवश्यकताएँ: सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट या फैब्स के लिये पर्याप्त पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। इन सुविधाओं को स्थापित करने और बनाए रखने की उच्च लागत घरेलू अभिकर्त्ताओं को रोकती है और उद्योग के विस्तार को सीमित करती है।
- प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता की कमी: सेमीकंडक्टर उद्योग को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता है। भारत वर्तमान में उन्नत सेमीकंडक्टर अनुसंधान, डिज़ाइन और निर्माण क्षमताओं में पिछड़ा हुआ है, जिसके कारण विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ रही है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति, जल संसाधन और रसद सहित मज़बूत बुनियादी ढाँचे की अनुपस्थिति सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना एवं सुचारू संचालन में बाधा डालती है। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये विशेष औद्योगिक क्षेत्रों की कमी एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
- उच्च प्रवेश बाधाएँ: चिप विनिर्माण में प्रवेश के लिये उच्च बाधाएँ स्पष्ट हैं, क्योंकि अत्याधुनिक चिप्स के उत्पादन के लिये प्रौद्योगिकी भारत में अभी भी अविकसित है और ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (TSMC) जैसे प्रतिस्पर्धी को अत्यधिक लाभ होता है।
आगे की राह
- वैश्विक सहयोग और रणनीतिक गठबंधन: द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त उद्यम और अनुसंधान एवं विकास साझेदारी में सहायता मिल सकती है।
- अमेरिका और ताइवान के साथ भारत का सहयोग सही दिशा में उठाया गया कदम है, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप है और इससे वैश्विक सेमीकंडक्टर निर्माता के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत होने की उम्मीद है।
- इसी प्रकार भारत को सेमीकंडक्टर चिप निर्माण उद्योग में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये दक्षिण कोरिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों का लाभ उठाना चाहिये।
- स्टार्टअप्स और SME को प्रोत्साहित करना: सरकार को फंडिंग, इनक्यूबेशन और मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश करके सेमीकंडक्टर क्षेत्र में स्टार्टअप्स और SME के लिये अनुकूल तंत्र बनाना चाहिये।
- स्थिरता और हरित विनिर्माण: सेमीकंडक्टर विनिर्माण में ऊर्जा और जल की खपत को कम करने जैसे संधारणीय पद्धतियों पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण होगा। हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करना और यह सुनिश्चित करना कि पर्यावरण संबंधी नियम उद्योग के विकास के साथ संरेखित हों, इस क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता को बढ़ाएगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग की वर्तमान स्थिति का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा इन चुनौतियों पर काबू पाने और सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये आवश्यक रणनीतिक कदमों पर चर्चा कीजिये? |