GDP संबंधी आँकड़े और आर्थिक संकुचन के निहितार्थ | 01 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सकल घरेलू उत्पाद, सकल मूल्य संवर्द्धन

मेन्स के लिये

कोरोना वायरस महामारी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और GDP संबंधी हालिया आँकड़ों के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा जारी हालिया आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया है, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है।

प्रमुख बिंदु

  • सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारत में इस वर्ष अप्रैल, मई और जून माह में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल मूल्य बीते वर्ष अप्रैल, मई और जून माह में उत्पादित वस्तुओं एवं  सेवाओं के कुल मूल्य से 23.9 प्रतिशत कम है।
  • आँकड़ों का विश्लेषण बताता है कि भारत, कोरोना वायरस (COVID-19) से सबसे अधिक प्रभावित कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
    • ध्यातव्य है कि मौजूदा महामारी का केंद्र माने जाने वाले चीन ने बीते दिनों अपनी अर्थव्यवस्था के पहली तिमाही संबंधी आँकड़े जारी किये थे, जिसमें चीन के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 3.2 प्रतिशत की आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज की गई थी, इस प्रकार चीन इस महामारी के प्रभाव से उबरने वाला पहला देश देश बन गया है।
    • वहीं ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में भी संकुचन देखा गया है। अप्रैल-जून तिमाही की अवधि के दौरान ब्रिटेन ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 20.4 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया, जबकि जर्मनी ने अपनी अर्थव्यवस्था में लगभग 10.1 प्रतिशत संकुचन रिकॉर्ड किया है। 

सभी प्रमुख संकेतकों में संकुचन 

  • अर्थव्यवस्था में विकास के लगभग सभी प्रमुख संकेतक गहरे संकुचन की ओर इशारा कर रहे हैं। जहाँ एक ओर मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के दौरान कोयले के उत्पादन में 15 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया, वहीं इसी अवधि के दौरान सीमेंट के उत्पादन और स्टील के उपभोग में क्रमशः 38.3 प्रतिशत और 56.8 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया। 
  • पहली तिमाही के दौरान कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या में 2 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, जबकि बीते वर्ष इसी अवधि के दौरान उपभोक्ताओं की संख्या में 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। 
  • इसी वर्ष की पहली तिमाही के दौरान महामारी का सबसे अधिक प्रभाव वाहनों की बिक्री और हवाईअड्डों पर आने वाले यात्रियों की संख्या पर देखने को मिला और इस दौरान वाहनों की बिक्री में लगभग 84.8 प्रतिशत और हवाईअड्डों पर आने वाले यात्रियों की संख्या में 94.1 प्रतिशत की कमी देखने को मिली।

Programme-Implementation

आँकड़ों का निहितार्थ

  • अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत समेत विश्व की तमाम अर्थव्यवस्थाओं में हो रहा संकुचन स्पष्ट तौर पर वायरस के प्रभाव को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन का एक गंभीर प्रभाव है, साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में महामारी की शुरुआत से पूर्व भी मंदी देखी जा रही थी, जिसमें इन आँकड़ों में भी अपनी भूमिका अदा की है।
  • अर्थव्यवस्था में संकुचन अनुमान से काफी अधिक है, इसलिये संपूर्ण वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) संबंधी आँकड़े भी काफी खराब रह सकते हैं, जो कि स्वतंत्रत भारत के इतिहास में भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे खराब स्थिति होगी। 
  • सकल मूल्य वर्धित (GVA) के मामले में कृषि को छोड़कर अर्थव्यवस्था के अन्य सभी क्षेत्रों की आय में गिरावट देखने को मिली। 
    • सकल मूल्य वर्धित किसी देश की अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों, यथा- प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र द्वारा किया गया कुल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है।    
    • साधारण शब्दों में कहा जाए तो GVA से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल निष्पादन और आय का पता चलता है।
  • इस तिमाही के दौरान महामारी का सबसे अधिक प्रभाव निर्माण (50 प्रतिशत संकुचन), विनिर्माण (39 प्रतिशत संकुचन), खनन (23 प्रतिशत संकुचन) और व्यापार, होटल तथा अन्य सेवा (47 प्रतिशत संकुचन) क्षेत्रों पर देखने को मिला।
    • यह भी ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि उपरोक्त सभी ऐसे क्षेत्र हैं जो देश में अधिकतम नए रोज़गार पैदा करने में मदद करते हैं।
    • ऐसी स्थिति में जब उपरोक्त क्षेत्रों में तेज़ी से संकुचन हो रहा है अर्थात् उत्पादन और आय में गिरावट हो रही है, तब आने वाले समय में पहले से कार्य कर रहे लोगों को अपना रोज़गार खोना पड़ सकता है और नए लोगों को भी इन क्षेत्रों में काम नहीं मिलेगा।
  • सबसे बड़ी बात यह है कि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था से संबंधित गुणवत्तापूर्ण डेटा एकत्रित करना काफी चुनौतीपूर्ण है, इसलिये कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति इससे भी खराब हो सकती है।

संकुचन का कारण

  • किसी भी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग यानी अर्थव्यवस्था की GDP, मुख्य तौर पर विकास के चार कारकों से उत्पन्न होती है। इसमें निजी उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली मांग या खपत (C) विकास का सबसे बड़ा कारक है।
    • इसमें दूसरा और तीसरा कारक क्रमशः निजी क्षेत्र के व्यवसायों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली मांग (I) है और सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मांग (G) हैं।
    • इसमें चौथा महत्त्वपूर्ण कारक है शुद्ध निर्यात (NX), जिसकी गणना भारत के कुल निर्यात से कुल आयात को घटाने के पश्चात् की जाती है। 

इस प्रकार कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) =  C + I + G + NX

  • आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले निजी उपभोग (C) में कुल 27 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है, इसके अलावा अर्थव्यवस्था के दूसरे सबसे बड़े कारक निजी व्यवसायियों द्वारा किये गए निवेश (I) में कुल 47 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।
    • इस प्रकार अर्थव्यवस्था के दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारकों में संकुचन देखने को मिला है।
  • वहीं अर्थव्यवस्था के दो अन्य कारकों यथा- सरकार द्वारा किये गए निवेश (G) और शुद्ध निर्यात (NX) में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली है, किंतु वह इतनी नहीं है कि अर्थव्यवस्था को नुकसान की भरपाई कर सके।

 आगे की राह

  • जब आय में तेज़ी से गिरावट होती है तो निजी उपभोग अथवा खपत में भी गिरावट होती है, इसी प्रकार जब निजी खपत में गिरावट होती है तो निजी व्यवसाय निवेश करना बंद कर देते हैं और चूँकि ये दोनों स्वैच्छिक निर्णय हैं इसलिये आम लोगों को न तो अधिकाधिक खर्च करने के लिये मज़बूर किया जा सकता है और न ही निजी व्यवसायों को निवेश करने के लिये।
  • ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा किये जाने वाला निवेश (G) अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के लिये एकमात्र साधन प्रतीत होता है। इस प्रकार मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिये सरकार को अधिक-से-अधिक खर्च करना होगा। इस कार्य के लिये सरकार या तो सड़कों और पुलों के निर्माण, वेतन भुगतान और प्रत्यक्ष मौद्रिक भुगतान आदि का प्रयोग कर सकती है।
  • पर यहाँ समस्या यह है कि सरकार के पास खर्च करने के लिये पैसे ही नहीं हैं, COVID-19 महामारी ने पहले ही सरकार के राजस्व को पूरा समाप्त कर दिया है और सरकार को कर के माध्यम से भी कुछ खास राजस्व प्राप्त नहीं हो रहा है।
  • ऐसे में सरकारों को अपने राजस्व को पूरा करने तथा महामारी के प्रभाव से निपटने के लिये नए और अभिनव उपायों की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस