अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-फ्राँस विदेश मंत्रियों की बैठक
- 23 Feb 2022
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प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण चीन सागर, नीली अर्थव्यवस्था, भारत-फ्राँस सैन्य अभ्यास, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन। मेन्स के लिये:भारत-फ्राँस संबंधों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने अपने फ्राँसीसी समकक्ष के साथ बातचीत की।
- दोनों नेताओं ने भारत-यूरोपीय संघ संबंध, अफगानिस्तान की स्थिति, भारत-प्रशांत रणनीति, दक्षिण चीन सागर विवाद, ईरान परमाणु समझौते और यूक्रेन संकट सहित कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की।
बैठक की मुख्य विशेषताएँ:
- इंडो-पैसिफिक पार्क साझेदारी: दोनों देश ‘इंडो-पैसिफिक पार्क पार्टनरशिप’ के लिये इंडो-फ्रेंच कॉल को संयुक्त रूप से लॉन्च करने पर सहमत हुए।
- इस साझेदारी का उद्देश्य प्रमुख ‘इंडो-पैसिफिक’ सार्वजनिक और निजी प्राकृतिक पार्क प्रबंधकों के इस क्षेत्र के अनुभवों और विशेषज्ञता के एकीकरण और उसे साझा करके संरक्षित क्षेत्रों के स्थायी प्रबंधन द्वारा इस क्षेत्र में क्षमता निर्माण करना है।
- ब्लू इकॉनमी और ओशन गवर्नेंस पर भारत-फ्रांँस रोडमैप: दोनों पक्षों द्वारा "ब्लू इकॉनमी और ओशन गवर्नेंस पर भारत-फ्रांँस रोडमैप" को भी अपनाया गया।
- रोडमैप का उद्देश्य संस्थागत, आर्थिक, ढांँचागत और वैज्ञानिक सहयोग के माध्यम से ब्लू इकॉनमी के क्षेत्र में साझेदारी को बढ़ाना है।
- भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंधों को मज़बूत करना: दोनों देश फ्रेंच प्रेसीडेंसी के तहत भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंधों की मज़बूती पर भी सहमत हुए, साथ ही मुक्त व्यापार और निवेश समझौतों पर बातचीत शुरू करने तथा भारत-ई.यू. कनेक्टिविटी साझेदारी पर भी सहमति व्यक्त की गई।
- बहुपक्षवाद को सुदृढ़ बनाना: दोनों पक्षों द्वारा परस्पर सरोकार के मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ समन्वय करने पर भी सहमति व्यक्त की गई।
- रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना: दोनों देशों के मंत्री रणनीतिक साझेदारी को और अधिक मज़बूत करने पर सहमत हुए, विशेष रूप से व्यापार और निवेश, रक्षा एवं सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, अनुसंधान व नवाचार, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में।
- लोगों के बीच संपर्क को सुगम बनाना: खेल के क्षेत्र में एक संयुक्त घोषणा पर सहमति व्यक्त की गई, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क को और अधिक सुविधाजनक बनाना है।
- संबंधित अधिकारियों के बीच लोक प्रशासन और प्रशासनिक सुधारों पर लंबे समय से चल रहे सहयोग को मज़बूत करना।
भारत-फ्राँस सामरिक संबंध:
- पृष्ठभूमि: जनवरी 1998 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद फ्राँस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने ‘रणनीतिक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर किये थे।
- वर्ष 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के भारत के फैसले का समर्थन करने वाले बहुत कम देशों में से फ्राँस एक था।
- वर्तमान में फ्राँस आतंकवाद और कश्मीर से संबंधित मुद्दों पर भारत का सबसे विश्वसनीय भागीदार बनकर उभरा है।
- रक्षा सहयोग: दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय रक्षा वार्ता आयोजित की जाती है।
- तीनों सेनाओं द्वारा नियमित समयांतराल पर रक्षा अभ्यास किया जाता है; अर्थात्
- अभ्यास शक्ति (स्थल सेना)
- अभ्यास वरुण (नौसेना)
- अभ्यास गरुड़ (वायु सेना)
- हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में फ्रेंच राफेल बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान को शामिल किया गया है।
- भारत ने वर्ष 2005 में एक प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण व्यवस्था के माध्यम से भारत के मझगाँव डॉकयार्ड में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण के लिये फ्राँसीसी कंपनी के साथ अनुबंध किया।
- दोनों देशों ने पारस्परिक ‘लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Logistics Support Agreement- LSA) के प्रावधान के संबंध में समझौते पर भी हस्ताक्षर किये।
- तीनों सेनाओं द्वारा नियमित समयांतराल पर रक्षा अभ्यास किया जाता है; अर्थात्
- द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंध: भारत-फ्राँस प्रशासनिक आर्थिक और व्यापार समिति (AETC) द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर बाज़ार पहुँच के मुद्दों के समाधान में तेज़ी लाने के तरीकों का आकलन करने तथा खोजने के लिये एक उपयुक्त ढाँचा प्रदान करती है।
- वैश्विक एजेंडा: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, नवीकरणीय ऊर्जा, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी आदि:
- जलवायु परिवर्तन को सीमित करने और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के विकास के लिये संयुक्त प्रयास किये गए हैं।
- दोनों देश साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी पर एक रोडमैप पर सहमत हुए हैं।
आगे की राह
- फ्राँस वैश्विक मुद्दों पर यूरोप के साथ गहरे जुड़ाव का मार्ग भी खोलता है, यह स्थिति इस क्षेत्र में विशेषकर ब्रेक्ज़िट (BREXIT) के कारण अनिश्चितता के बाद उत्पन्न हुई।
- यह संभवना व्यक्त की गई है कि फ्राँस, जर्मनी और जापान जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी वैश्विक मंच पर भारत के प्रभाव के लिये कहीं अधिक प्रभावी साबित होगी।