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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-फ्रांँस रक्षा साझेदारी

  • 08 Nov 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर  भारत, यूरोपीय संघ, अभ्यास शक्ति, अभ्यास वरुण, ऑकस' (AUKUS)

मेन्स के लिये:

भारत-फ्राँस रक्षा सहयोग, भारत-फ्राँस सामरिक संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-फ्रांँस रणनीतिक वार्ता के दौरान दोनों देशों ने खुफिया जानकारी साझा करने, क्षमताओं को बढ़ाने, सैन्य अभ्यासों का विस्तार करने और समुद्री, अंतरिक्ष तथा साइबर डोमेन में नई पहल के उद्देश्य से रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी का विस्तार करने का संकल्प लिया।

France

प्रमुख बिंदु

  • वार्ता की मुख्य विशेषताएँ:
    • आत्मनिर्भर भारत' को समर्थन: फ्रांँस ने भारत के "आत्मनिर्भर भारत” (Atmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण तथा भारत में रक्षा औद्योगीकरण, संयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के लिये उन्नत क्षमताओं की एक विस्तृत शृंखला हेतु अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
    •  फ्रांँस की इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी: फ्रांँस ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये एक "रेसीडेंस पावर" के तौर पर अपनी निरंतर प्रतिबद्धता और इस क्षेत्र हेतु अपनी रणनीति के ‘प्रमुख स्तंभ’ के रूप में भारत के साथ साझेदारी पर ज़ोर दिया।
      • इसके अलावा वर्ष 2022 की पहली छमाही में यूरोपीय संघ (EU) की फ्राँसीसी प्रेसीडेंसी से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यूरोपीय संघ के जुड़ाव को आकार दिए जाने की उम्मीद है।
      • एक रेसीडेंस पावर वह है जिसके पास दुनिया के किसी विशेष स्थान में क्षेत्र या क्षेत्रीय उपस्थिति नहीं है, लेकिन फिर भी उस क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक शक्ति के रूप में स्थापित है। 
    • बैठक का महत्त्व: भारत के साथ रणनीतिक सहयोग का विस्तार करने के लिये फ्राँस की पुनरावृत्ति ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस द्वारा एक नए सुरक्षा गठबंधन (AUKUS) के समझौते के बाद उजागर हुई है।
      • गठबंधन की अप्रत्याशित घोषणा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के लिये पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है, ने फ्राँस के साथ एक अलग पनडुब्बी समझौते से ऑस्ट्रेलिया के हटने के बाद फ्राँसीसी सरकार ने नाराज़गी व्यक्त की।
      • हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएसए के बीच एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी 'ऑकस' (AUKUS) की घोषणा की गई है।
  • भारत-फ्राँस सामरिक संबंध:
    • पृष्ठभूमि: 
      • जनवरी 1998 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद फ्राँस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने ‘रणनीतिक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर किये थे।
      • वर्ष 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के भारत के फैसले का समर्थन करने वाले बहुत कम देशों में से फ्राँस एक था।
    • रक्षा सहयोग: दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय रक्षा वार्ता आयोजित की जाती है।
      • तीनों सेनाओं द्वारा नियमित समयांतराल पर रक्षा अभ्यास किया जाता है; अर्थात्
      • हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में फ्रेंच राफेल बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान को शामिल किया गया है।
      •  भारत ने वर्ष 2005 में एक प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण व्यवस्था के माध्यम से भारत के मझगाँव डॉकयार्ड में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण के लिये एक फ्राँसीसी कंपनी के साथ अनुबंध किया।
      • दोनों देशों ने पारस्परिक ‘लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Logistics Support Agreement- LSA)  के प्रावधान के संबंध में समझौते पर भी हस्ताक्षर किये।
        • यह समझौता नियमित पोर्ट कॉल के साथ-साथ मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) के अंतर्गत अन्य देशों के युद्धपोतों, सैन्य विमानों एवं सैनिकों के लिये ईंधन, राशन, उपकरणों तथा बर्थिंग व रखरखाव की पुनःपूर्ति की सुविधा में मदद करेगा।
    • हिंद महासागर क्षेत्र: साझा सामरिक हित: 
      • फ्राँस को अपनी औपनिवेशिक क्षेत्रीय संपत्ति जैसे- रीयूनियन द्वीप और हिंद महासागर के भारतीय क्षेत्र पर पड़ने वाले इसके प्रभावों की रक्षा करने की आवश्यकता है।
      • हाल ही में फ्राँस हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) का 23वाँ सदस्य बन गया है। 
        • यह पहली बार है कि कोई ऐसा देश जिसकी मुख्य भूमि हिंद महासागर में नहीं है और उसे IORA की सदस्यता प्रदान की गई है। 
    • आतंकवाद विरोधी: फ्राँस ने आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन के लिये भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया। दोनों देश एक नए ‘नो मनी फॉर टेरर’ - फाइटिंग टेररिस्ट फाइनेंसिंग पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन का भी समर्थन करते हैं।
    • फ्राँस द्वारा भारत का समर्थन: फ्राँस भी कश्मीर को लेकर भारत का लगातार समर्थन कर रहा है जबकि पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों में हाल के दिनों में कमी देखी गई है और चीन का दृष्टिकोण संदेहास्पद रहा है।

आगे की राह

  • फ्राँस, जिसने अमेरिका के साथ अपने गठबंधन के ढाँचे के भीतर रणनीतिक स्वायत्तता की मांग की थी और भारत, जिसने स्वतंत्र विदेश नीति को महत्त्व दिया है, अनिश्चित काल के लिये नए गठबंधन के निर्माण में स्वाभाविक भागीदार हैं। 
  • फ्राँस वैश्विक मुद्दों पर यूरोप के साथ गहरे जुड़ाव का मार्ग भी खोलता है, विशेषकर ब्रेक्ज़िट (BREXIT) के कारण इस क्षेत्र में अनिश्चितता के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई।
  • यह संभवना व्यक्त की गई कि फ्राँस, जर्मनी और जापान जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी वैश्विक मंच पर भारत के प्रभाव के लिये कहीं अधिक परिणामी साबित होगी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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