भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की इथेनॉल योजना और खाद्य सुरक्षा
- 08 Oct 2021
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प्रिलिम्स के लिये:इथेनॉल, राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018, खाद्य एवं कृषि संगठन, भारतीय खाद्य निगम मेन्स के लिये:इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम और इसका महत्त्व, खाद्य सुरक्षा पर इसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
- चावल, मक्का और चीनी से प्राप्त इथेनॉल को बढ़ावा देकर जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजना देश की खाद्य सुरक्षा को कमज़ोर कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- इथेनॉल: यह एक कृषि आधारित उत्पाद है, जो मुख्य रूप से चीनी उद्योग के उप- उत्पाद- ‘शीरे’ से प्राप्त होता है।
- यह प्रमुख जैव ईंधन में से एक है, जिसका उत्पादन प्राकृतिक रूप से खमीर द्वारा शर्करा के किण्वन या एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है।
- इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP): इसका उद्देश्य पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण करना है,ताकि इसे जैव ईंधन की श्रेणी में लाया जा सके और ईंधन आयात में कटौती तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करके लाखों डॉलर की बचत की जा सके।
- सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से कम कर वर्ष 2025 तक कर दिया है।
- वर्तमान में भारत में 8.5% इथेनॉल सम्मिश्रण किया जा रहा है।
- संबद्ध मुद्दे:
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति: इथेनॉल सम्मिश्रण का नया लक्ष्य मुख्यतः अनाज के अधिशेष और प्रौद्योगिकियों की व्यापक उपलब्धता को देखते हुए खाद्य आधारित फीडस्टॉक्स पर केंद्रित है।
- यह ब्लूप्रिंट ‘राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018’ का हिस्सा है, जिसमें घास और शैवाल; खेत एवं वानिकी अवशेष जैसी सेल्यूलोसिक सामग्री तथा चावल, गेंहूँ तथा मकई के भूसे आदि को प्राथमिकता दी गई थी।
- भुखमरी का खतरा: गरीबों के लिये दिया जाने वाला खाद्यान्न कंपनियों को उन कीमतों से भी कम पर बेचा जा रहा है, जो राज्य अपने ‘सार्वजनिक वितरण नेटवर्क’ के लिये भुगतान करते हैं।
- सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिये कंपनियों और ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ के बीच प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और साथ ही देश में भुखमरी की स्थिति भी गंभीर हो सकती है।
- भारत ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020’ में 107 देशों के साथ 94वें स्थान पर है।
- ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) का अनुमान है कि वर्ष 2018 से वर्ष 2020 के बीच लगभग 209 मिलियन भारतीय अथवा देश की 15% आबादी कुपोषित थी।
- इसके अलावा कोविड-19 महामारी ने भी अधिक लोगों को गरीबी में धकेल दिया है।
- लागत: जैव ईंधन के उत्पादन के लिये भूमि की आवश्यकता होती है, इससे जैव ईंधन की लागत के साथ-साथ खाद्य फसलों की लागत भी प्रभावित होती है।
- जल उपयोग: जैव ईंधन फसलों की उचित सिंचाई के साथ-साथ ईंधन के निर्माण के लिये भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय जल संसाधनों को प्रभावित कर सकता है।
- दक्षता: जीवाश्म ईंधन, जैव ईंधन की तुलना में अधिक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिये 1 गैलन इथेनॉल (जीवाश्म ईंधन) 1 गैलन गैसोलीन (जीवाश्म ईंधन) की तुलना में कम ऊर्जा पैदा करता है।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति: इथेनॉल सम्मिश्रण का नया लक्ष्य मुख्यतः अनाज के अधिशेष और प्रौद्योगिकियों की व्यापक उपलब्धता को देखते हुए खाद्य आधारित फीडस्टॉक्स पर केंद्रित है।
- सरकार का तर्क:
- अनाज का पर्याप्त भंडार: इथेनॉल को बढ़ावा देने हेतु किये जा रहे प्रयास भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये कोई खतरा नहीं हैं, क्योंकि सरकार के पास ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के गोदामों में अनाज का पर्याप्त भंडार मौजूद है।
- आँकड़ों के मुताबिक, सरकार के भंडार में 21.8 मिलियन टन चावल मौजूद है, जबकि देश में केवल 13.54 मिलियन टन चावल की आवश्यकता है।
- क्षमता निर्माण: सरकार की दीर्घकालिक योजना में पर्याप्त क्षमता का निर्माण भी शामिल है, ताकि 20% मिश्रण की आवश्यकता का आधा अनाज मुख्य रूप से मक्का और गन्ना द्वारा पूरा किया जा सके।
- किसानों को लाभ: अधिशेष के मुद्दे को संबोधित करते हुए सम्मिश्रण योजना से मक्का और चावल किसानों को लाभ होगा।
- अनाज का पर्याप्त भंडार: इथेनॉल को बढ़ावा देने हेतु किये जा रहे प्रयास भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये कोई खतरा नहीं हैं, क्योंकि सरकार के पास ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के गोदामों में अनाज का पर्याप्त भंडार मौजूद है।
आगे की राह
- अपशिष्ट से इथेनॉल: भारत के पास टिकाऊ जैव ईंधन नीति में वैश्विक नेता बनने का एक वास्तविक अवसर है यदि वह अपशिष्ट से बने इथेनॉल पर फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
- यह मज़बूत जलवायु और वायु गुणवत्ता दोनों में लाभ प्रदान करेगा क्योंकि वर्तमान में इन अपशिष्ट को अक्सर जलाया जाता है, जो स्मॉग में योगदान देता है।
- जल संकट: नई इथेनॉल नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह किसानों को जल-गहन फसलों की ओर न ले जाए और देश के ऐसे क्षेत्रों में जल संकट पैदा न करे जहाँ इसकी कमी पहले से ही गंभीर है।
- गेहूँ के साथ चावल और गन्ने में भारत के सिंचाई जल का लगभग 80% का उपयोग होता है।
- फसल उत्पादन को प्राथमिकता देना: हमारे घटते भूजल संसाधनों, कृषि योग्य भूमि की कमी, अनिश्चित मानसून और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार में गिरावट के साथ ईंधन के लिये फसलों पर खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।