भारत बना खिलौनों का शुद्ध निर्यातक | 10 Feb 2024
प्रिलिम्स के लिये:मेक इन इंडिया पहल, लाइसेंस राज, शुद्ध निर्यात मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये खिलौना उद्योग का योगदान और महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2022-23 के बीच उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जिसमें आयात में 52% की भारी गिरावट तथा निर्यात में 239% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे भारत शुद्ध निर्यातक बन गया।
- खिलौना उद्योग चीन में उच्च लागत से जूझ रहे हैं और अपने उत्पादन को स्थानांतरित करने के लिये सस्ते स्थान खोजने हेतु संघर्ष कर रहे हैं।
भारत के खिलौना उद्योग की स्थिति क्या है?
- खिलौना उद्योग पर फोकस:
- नीतिगत चर्चाएँ पुराने "परमिट लाइसेंस राज" युग से लेकर वर्तमान 'मेक इन इंडिया' पहल तक फैली हुई हैं।
- एक अध्ययन उद्योग की हालिया सफलता का श्रेय 'मेक इन इंडिया' पहल को देता है।
- व्यापार संतुलन में सकारात्मक बदलाव:
- वर्ष 2014-15 में व्यापार संतुलन नकारात्मक 1,500 करोड़ रुपए था, लेकिन वर्ष 2020-21 से सकारात्मक हो गया है।
- इस बदलाव को निम्नलिखित हेतु ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है:
- फरवरी 2020 में आयात शुल्क 20% से बढ़ाकर 60% कर दिया गया।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) और अनिवार्य नमूना परीक्षण की तरह हैं।
- COVID-19 के समय हुए व्यवधानों ने वैश्विक स्तर पर आयात को प्रभावित किया।
- वर्ष 2022-23 में शुद्ध निर्यात में गिरावट:
- उच्च आयात शुल्क के बावजूद, शुद्ध निर्यात 1,614 करोड़ रुपए से गिरकर 1,319 करोड़ रुपए हो गया।
- यह गिरावट सभी खिलौनों (18%) की तुलना में खिलौनों (31%) के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है।
भारत को शुद्ध निर्यातक बनने हेतु क्या प्रेरित किया?
- टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएँ: फरवरी 2020 में खिलौनों पर सीमा शुल्क में 20% से 60% की वृद्धि और उसके बाद मार्च 2023 में 70% की वृद्धि ने खिलौना आयात के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में काम किया।
- जनवरी 2021 से गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) एवं प्रत्येक आयात खेप के अनिवार्य नमूना परीक्षण जैसी गैर-टैरिफ बाधाओं ने आयात को और प्रतिबंधित कर दिया है।
- इन उपायों का उद्देश्य आयातित खिलौनों की मांग को कम करना और घरेलू उद्योग की रक्षा करना है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान: कोविड-19 महामारी ने वर्ष 2020-21 में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया, जिससे आयात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जैसे ही वर्ष 2022-23 में वैश्विक आपूर्ति शृंखला बहाल हुई, शुद्ध निर्यात कम हो गया, जो आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और भारत के शुद्ध निर्यात प्रदर्शन के बीच संबंध का संकेत देता है।
चुनौतियाँ क्या हैं?
- सीमित घरेलू उत्पादक क्षमताएँ: उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के आँकड़ों के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि प्रति श्रमिक निश्चित पूंजी, उत्पादन के सकल मूल्य और श्रम उत्पादकता में गिरावट में शायद ही कोई स्थिर वृद्धि हो।
- इससे पता चलता है कि घरेलू उद्योग ने विचाराधीन अवधि (2014-15 से 2019-20) के दौरान अपनी उत्पादक क्षमताओं में पर्याप्त सुधार का अनुभव नहीं किया होगा।
- श्रम उत्पादकता में गिरावट: श्रम उत्पादकता में लगातार गिरावट आ रही है, जो वर्ष 2014-15 के प्रति श्रमिक 7.5 लाख रुपए से घटकर वर्ष 2019-20 में प्रति श्रमिक 5 लाख रुपए हो गई है। यह गिरावट उद्योग की दक्षता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता के बारे में चिंता पैदा करती है, जो उत्पादकता बढ़ाने में संभावित चुनौतियों का संकेत देती है।
- कच्चे माल की प्राप्ति के लिये विदेशों पर निर्भरता: भारतीय विनिर्माता बोर्ड गेम, सॉफ्ट टॉयज एवं प्लास्टिक के खिलौने और पज़ल्स आदि के निर्माण में विशेषज्ञता रखते हैं। हालाँकि कंपनियों को इन खिलौनों के निर्माण के लिये दक्षिण कोरिया और जापान से सामग्री आयात करनी पड़ती है।
- प्रौद्योगिकी का अभाव: यह भारतीय खिलौना उद्योग के लिये बाधक है। अधिकांश घरेलू विनिर्माता पुरानी तकनीक और मशीनरी का उपयोग करते हैं, जिससे खिलौनों की गुणवत्ता एवं डिज़ाइन प्रभावित होती है।
- करों की उच्च दरें: खिलौनों पर उच्च जीएसटी दरें भारत में खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 18% जबकि गैर-इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 12% जीएसटी अधिरोपित किया जाता है।
- सस्ते विकल्प उपलब्ध होना: चीन जैसे देशों से सस्ते और निम्न गुणवत्तापूर्ण आयात से उत्पन्न प्रतिस्पर्द्धा भारतीय खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। भारत के खिलौना आयात में चीन की 80% हिस्सेदारी है, जिससे घरेलू खिलौना निर्माताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इस क्षेत्र का असंगठित होना: भारतीय खिलौना उद्योग अभी भी व्यापक (लगभग 90%) रूप से असंगठित है जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है।
खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Toys- NAPT)
- खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPT) भारत सरकार द्वारा पारंपरिक हस्तशिल्प और हस्तनिर्मित खिलौनों सहित भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020 में शुरू की गई एक व्यापक योजना है, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक खिलौना केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
- NAPT में 21 विशिष्ट कार्य बिंदु शामिल हैं, जो औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा समन्वित है और इसे कई केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- NAPT डिजाइन, गुणवत्ता नियंत्रण, नवाचार, विपणन, ई-कॉमर्स, कौशल विकास और स्वदेशी खिलौना समूहों को बढ़ावा देने जैसे विभिन्न पहलुओं को संबोधित करता है।
आगे की राह:
- संरक्षणवाद और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में संतुलन:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे दीर्घकालिक निर्भरता को बढ़ावा दिये बिना उद्योग को अस्थायी प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, संरक्षणवादी उपायों और टैरिफ की प्रभावशीलता का मूल्यांकनकिया जा सकता है।
- निवेश को प्रोत्साहित करने, नवाचार को बढ़ावा देने तथा समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने वाली नीतियों के साथ-साथ संरक्षणवाद को लागू करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- घरेलू क्षमताओं में निवेश:
- ऐसी निवेश नीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना जो खिलौना उद्योग को उत्पादकता व गुणवत्ता बढ़ाने हेतु आधुनिक प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास तथा कौशल विकास में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करें।
- उद्योग की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये, जैसे सब्सिडी, कर प्रोत्साहन और किफायती ऋण तक पहुँच आदि।
- गुणवत्ता नियंत्रण और मानक:
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि घरेलू स्तर पर उत्पादित खिलौने अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हैं, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) जैसे गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करना जारी रखना चाहिये।
- वैश्विक बाज़ार में भारतीय खिलौनों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये उद्योग-विशिष्ट मानकों की स्थापना और प्रचार में निवेश करना चाहिये।
- संपूर्ण खिलौना मूल्य शृंखला में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को लागूकिया जा सकता है, जिसमें पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग, धारणीय पैकेजिंग के साथ पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये पुन: उपयोग तथा पुनः साझाकरण योग्य मॉडल को अपनाना शामिल है।
- बुनियादी ढाँचा विकास:
- खिलौना विनिर्माण समूहों को समर्थन देने के लिये स्थानीय, उद्योग-विशिष्ट सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा विकसित किया जा सकता है। इसमें कुशल परिवहन, लॉजिस्टिक्स और उत्पादन सुविधाएँ भी शामिल हो सकती हैं।
- खिलौना उद्योग में विकास को बढ़ावा देने के लिये कौशल विकास, वित्तीय सहायता एवं अन्य प्रकार के समर्थन के माध्यम से छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) का समर्थन किया जाना चाहिये।
- अवसंरचनात्मक खामियों को चिह्नित करने के साथ उन्हें दूर करने के लिये उद्योग हितधारकों, शिक्षा जगत और सरकार के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
- खिलौना विनिर्माण समूहों को समर्थन देने के लिये स्थानीय, उद्योग-विशिष्ट सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा विकसित किया जा सकता है। इसमें कुशल परिवहन, लॉजिस्टिक्स और उत्पादन सुविधाएँ भी शामिल हो सकती हैं।