भारत और शरणार्थी नीति | 30 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत में शरणार्थी, वर्ष 1951 का शरणार्थी सम्मेलन, विदेशी अधिनियम, 1946, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA), रोहिंग्या शरणार्थी, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मेन्स के लिये:भारत में शरणार्थियों की स्थिति, शरणार्थियों से संबंधित भारत में वर्तमान विधायी ढाँचा, भारत में शरणार्थियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बांग्लादेश में चटगाँव के पहाड़ी पथ क्षेत्र से कई कुकी-चिन शरणार्थी बांग्लादेश सुरक्षा बलों के हमले के डर से मिज़ोरम में प्रवेश कर गए।
- मिज़ोरम सरकार ने चिन-कुकी-मिज़ो समुदायों से संबंधित शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है और राज्य सरकार की सुविधा के अनुसार अस्थायी आश्रय, भोजन और अन्य राहत देने का संकल्प लिया।
शरणार्थियों की घुसपैठ का कारण?
- चटगाँव का पहाड़ी पथ क्षेत्र एक कम उपजाऊ पहाड़ी, वन क्षेत्र है जो दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश के खागड़ाछड़ी, रंगमती और बंदरबन ज़िलों के 13,000 वर्ग किमी. से अधिक में फैला हुआ है, जो पूर्व में मिज़ोरम, उत्तर में त्रिपुरा और दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में म्याँमार की सीमा से लगा हुआ है।
- आबादी का एक बड़ा हिस्सा आदिवासी है और सांस्कृतिक और जातीय रूप से बहुसंख्यक मुस्लिम बांग्लादेशियों से अलग है जो देश के डेल्टा मुख्य भूमि में रहते हैं।
- CHT की जनजातीय आबादी का भारत के निकटवर्ती क्षेत्रों में मुख्य रूप से मिज़ोरम में जनजातीय आबादी के साथ जातीय संबंध हैं।
- मिज़ोरम बांग्लादेश के साथ 318 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।
- मिज़ोरम पहले से ही लगभग 30,000 शरणार्थियों का आश्रयदाता है जो जुलाई-अगस्त 2021 के बाद से ही म्याँमार के चिन राज्य में हो रहे लड़ाई से भागे फिर रहे हैं।
भारत में शरणार्थियों की रक्षा कैसे की जाती है?
- भारत यह सुनिश्चित करता है कि शरणार्थी साथी भारतीय लोगों के समान सुरक्षा सेवाओं तक पहुँच प्राप्त कर सकेंं।
- सरकार द्वारा सीधे पंजीकृत श्रीलंका के शरणार्थियों के लिये आर्थिक और वित्तीय समावेशन को सक्षम करने के लिये आधार कार्ड और पैन कार्ड की भी सुविधा दी गई है।
- उन्हें राष्ट्रीय कल्याण योजनाओं का भी लाभ मिल सकता है और वे भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रभावी ढंग से योगदान कर सकते हैं।
- हालाँकि UNHCR के साथ पंजीकृत लोगों के लिये जैसे कि अफगानिस्तान, म्याँमार और अन्य देशों के शरणार्थी, जबकि उनके पास सुरक्षा एवं सीमित सहायता सेवाओं तक पहुँच है, उनके पास सरकार द्वारा जारी दस्तावेज़ नहीं हैं।
- इस प्रकार, वे बैंक खाते खोलने में असमर्थ हैं और सभी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से लाभ प्राप्त नहीं करते हैं और इस प्रकार अनजाने में पीछे रह जाते हैं।
भारत की शरणार्थी नीति
- भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है, इसके बावजूद उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
- इसके वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है।
- हालाँकि शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे पर भारत का शानदार रिकॉर्ड रहा है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
- विदेशी अधिनियम, 1946 शरणार्थियों से संबंधित समस्याओं का समाधान करने में विफल रहता है।
- यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये अपार शक्ति भी देता है।
- इसके अलावा भारत का संविधान मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का भी सम्मान करता है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि विदेशी नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध है।"
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है।
- नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस जाने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति:
- स्वतंत्रता के बाद से भारत ने पड़ोसी देशों के शरणार्थियों के विभिन्न समूहों को स्वीकार किया है, जिनमें शामिल हैं:
- 1947 के विभाजन से पाकिस्तान से शरणार्थी।
- वर्ष 1959 में तिब्बती शरणार्थी।
- वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत वर्तमान बांग्लादेश से चकमा और हाजोंग
- वर्ष 1965 और 1971 में अन्य बांग्लादेशी शरणार्थी।
- वर्ष 1980 के दशक में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी।
- हाल ही में म्याँमार के रोहिंग्या शरणार्थी, 2022।
भारत में अभी तक शरणार्थियों पर कानून नहीं:
- शरणार्थी बनाम अप्रवासी: हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई लोग अवैध रूप से भारत में प्रवास करते रहे हैं और उत्पीड़न के कारण नहीं बल्कि भारत में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में करते हैं।
- जबकि वास्तविकता यह है कि देश में अधिकांश बहस अवैध प्रवासियों के बारे में है, शरणार्थियों के बारे में नहीं, तथा दोनों एक साथ जुड़ जाती हैं।
- विकल्पों का खुला दायरा: कानून की अनुपस्थिति ने भारत को शरणार्थियों के सवाल पर अपने विकल्प खुले रखने की अनुमति दी है। सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध अप्रवासी घोषित कर सकती है।
- यह वह मामला था जो रोहिंग्या के साथ हुआ है (वे राज्यविहीन, इंडो-आर्यन जातीय समूह हैं जो म्यांँमार के रखाइन राज्य में रहते हैं), UNHCR सत्यापन के बावजूद, सरकार ने उन्हें विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के तहत सरकार ने उनसे अत्याचारियों के रूप में निपटने का फैसला किया है।
शरणार्थियों को संभालने के लिये वर्तमान विधायी ढाँचा:
- विदेशी अधिनियम 1946: धारा 3 के तहत, केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: धारा 5 के तहत, अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के तहत बलपूर्वक एक अवैध विदेशी को हटा सकते हैं।
- 1939 का विदेशी नागरिक पंजीकरण अधिनियम: इसके तहत, एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत दीर्घकालिक वीजा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (भारत के विदेशी नागरिकों को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर पंजीकरण अधिकारी के साथ खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955: इसने त्याग, समाप्ति और नागरिकता से वंचित करने के प्रावधान प्रदान किए।
- इसके अलावा, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) केवल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख और बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना चाहता है।
शरणार्थियों और प्रवासियों के बीच अंतर
- शरणार्थी (Refugees) अपने मूल देश से बाहर रहने को विवश ऐसे लोग हैं जो अपने मूल देश में उत्पीड़न, सशस्त्र संघर्ष, हिंसा या गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था के परिणामस्वरूप जीवन, शारीरिक अखंडता या स्वतंत्रता पर गंभीर खतरे का सामना करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता महसूस करते हैं।
- प्रवासी (Migrants) वे लोग होते हैं जो कार्य या अध्ययन करने के लिये अथवा विदेशों में रह रहे अपने परिवार से जुड़ने के लिये अपना मूल देश छोड़ देते हैं।
- किसी व्यक्ति के ‘शरणार्थी’ के रूप में चिह्नित होने के लिये सुपरिभाषित और विशिष्ट आधार सुनिश्चित किये गए हैं जिनकी पुष्टि करनी होती है।
- प्रवासी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कोई कानूनी परिभाषा नहीं है।
आगे की राह
- शरण और शरणार्थियों पर मॉडल कानून जो दशकों पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा तैयार किये गए थे लेकिन सरकार द्वारा लागू नहीं किये गए थे, उन्हें एक विशेषज्ञ समिति द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
- यदि इस तरह के कानून बनाए जाते हैं तो यह मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए कानूनी पवित्रता और एकरूपता प्रदान करेगा।
- यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता तो यह पड़ोस में किसी भी दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत की तरफ भागने से रोक सकता था।
- हमारे संविधान में निहित मौलिक कर्तव्य के अनुरूप अधिकारियों या स्थानीय निवासियों द्वारा हिंसा और उत्पीड़न से महिलाओं तथा बाल शरणार्थियों की सुरक्षा।
- अनुच्छेद 51A (e) प्रत्येक नागरिक को महिलाओं की गरिमा के लिये अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने का आदेश देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमापार प्रवसन किस प्रकार एक खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (मेन्स-2014) |