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भारतीय अर्थव्यवस्था

तकनीकी वस्त्रों का बढ़ता निर्यात

  • 09 Nov 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, तकनीकी वस्त्र, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन

मेन्स के लिये:

तकनीकी वस्त्र के भविष्य की संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने तीन वर्षों में तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) के निर्यात में मौजूदा 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पाँच गुना वृद्धि का लक्ष्य रखा है।

प्रमुख बिंदु

  • तकनीकी वस्त्र:
    • तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक वस्त्र होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा इत्यादि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
      • तकनीकी वस्त्र उत्पाद की मांग किसी देश के विकास और औद्योगीकरण पर निर्भर करती है
    • प्रयोग के आधार पर 12 तकनीकी वस्त्र खंड हैं: एग्रोटेक, मेडिटेक, बिल्डटेक, मोबिल्टेक, क्लोथेक, ओईटेक, जियोटेक, पैकटेक, हॉमटेक, प्रोटेक, इंडुटेक और स्पोर्टेक।
      • उदाहरण:  मोबिलटेक (Mobiltech) वाहनों में सीट बेल्ट और एयरबैग, हवाई जहाज़ की सीट जैसे उत्पादों को संदर्भित करता है। जियोटेक (Geotech) जो कि संयोगवश सबसे तेज़ी से उभरता हुआ खंड है, का उपयोग मृदा आदि को जोड़े रखने में किया जाता है।

textiles

  • तकनीकी वस्त्र परिदृश्य:
    • भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने विगत पाँच वर्षों में गति प्राप्त की है, जो वर्तमान में प्रति वर्ष 8% की दर से बढ़ रहा है।
      • आगामी पाँच वर्षों के दौरान इस वृद्धि को 15-20% के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
    • मौजूदा विश्व बाज़ार 250 अरब अमेरिकी डॉलर (18 लाख करोड़ रुपए) का है और इसमें भारत की हिस्सेदारी 19 अरब अमेरिकी डॉलर है। 
    • भारत इस बाज़ार (8% शेयर) में 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ एक महत्त्वाकांक्षी भागीदार है।
      • सबसे बड़े भागीदारों में यूएसए, पश्चिमी यूरोप, चीन और जापान (20-40%) हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • जागरूकता की कमी:
      • तकनीकी वस्त्रों के लाभ के संदर्भ में अभी भी देश की अधिकांश आबादी में जागरूकता की कमी है।
    • कुशल कार्यबल का विकास:
      • तकनीकी वस्त्रों को श्रमिकों से अलग और उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में घरेलू उद्योग में अनुपस्थित है।
    • अनुसंधान एवं विकास की कमी:
      • भारतीय तकनीकी वस्त्र उद्योग जिन प्रमुख मुद्दों का सामना कर रहा है उनमें से एक उत्पाद विविधीकरण की कमी है।
    • तकनीकी वस्त्रों का आयात:
      • भारत चीन से सस्ते उत्पादों और अमेरिका व यूरोप से हाई-टेक उपकरणों से युक्त तकनीकी वस्त्रों की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा का आयात करता है। यह दर्शाता है कि भारतीय तकनीकी वस्त्र उद्योग में उच्च तकनीक वाले उत्पादों के निर्माण के पैमाने और क्षमता का अभाव है।
  • अवसर:
    • विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि:
      • तकनीकी वस्त्र मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल, निर्माण, विमानन आदि जैसे विभिन्न विनिर्माण उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
        • विनिर्माण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विकास का एक स्तंभ रहा है, जिसमें कई उद्योगों ने पिछले एक दशक में दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज की है।
        • आगामी दशक में ऑटोमोबाइल क्षेत्र के 12% की दर से बढ़ने की संभावना है और वर्ष 2025 में अनुमानित 75 मिलियन वाहनों के उत्पादन की उम्मीद है।
    • स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता का बढ़ता महत्त्व:
      • देश में प्रदूषण और बीमारियों के लगातार बढ़ते खतरे के साथ लोग धीरे-धीरे अधिक स्वच्छ और स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें वाइप्स, फेस मास्क, डायपर, डेंटल फ्लॉस, ईयरबड्स, सैनिटरी नैपकिन आदि जैसे उत्पादों का उपयोग शामिल है।
        •  विभिन्न तकनीकी वस्त्र से संबंधित उत्पादों का अलग- अलग रूपों में उपयोग किया जाता है।
    • खेलों पर बढ़ता केंद्रण:
      • खेल उपकरण, कृत्रिम टर्फ और कंपोज़िट, खेल वस्त्र एवं सक्रिय वस्त्र, खेल के जूते आदि के रूप में तकनीकी वस्त्रों का उपभोग होता है।
        • बढ़ती फिटनेस और खेलों का आयोजन तकनीकी वस्त्रों के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करते हैं।
    • रक्षा और सुरक्षा खर्च में वृद्धि:
      • रक्षा और सुरक्षा पर सरकार के बढ़ते केंद्रण के कारण तकनीकी वस्त्र उपकरण जैसे- बुलेटप्रूफ जैकेट, हाई एल्टीट्यूड (High Altitudes) वाले वस्त्र, दस्ताने, जूते आदि की मांग में वृद्धि हुई है।
  • तकनीकी वस्त्र से संबंधित पहलें:
    • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन:
      • इसे फरवरी 2020 में 194 मिलियनअमेरिकी डॉलर के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था ताकि भारत को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान दिया जा सके।
    • वस्त्र उद्योग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना:
      • इसका उद्देश्य उच्च मूल्य के मानव निर्मित रेशों (Man-Made Fibre-MMF) से बने कपड़े, परिधानों और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
    • तकनीकी वस्त्र के लिये हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (HSN) कोड: 
      • वर्ष 2019 में भारत सरकार ने निर्माताओं को वित्तीय सहायता और अन्य प्रोत्साहन प्रदान कर आयात एवं निर्यात डेटा की निगरानी में मदद करने के लिये तकनीकी वस्त्र क्षेत्र के 207 उत्पादों को हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (Harmonised System of Nomenclature-HSN) कोड प्रदान किया।
    • स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI:
      • भारत सरकार स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देती है। अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र निर्माताओं जैसे- अहलस्ट्रॉम, जॉनसन एंड जॉनसन आदि ने पहले ही भारत में परिचालन शुरू कर दिया है।
    • टेक्नोटेक्स इंडिया:
    • संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS):
      • इसका उद्देश्य निर्यात में सुधार करना और अप्रत्यक्ष रूप से वस्त्र उद्योग क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना है।
      • ATUFS के तहत तकनीकी सलाहकार निगरानी समिति (TAMC) के मार्गदर्शन में कपड़ा और तकनीकी वस्त्र उत्पादों के निर्माण से संबंधित संस्थाओं को प्रौद्योगिकी उन्नयन और CIS की पेशकश की जाती है।

आगे की राह

  • लोगों को तकनीकी वस्त्रों के बारे में शिक्षित करने के लिये सरकार और उद्योग को एक ठोस बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने की आवश्यकता है। इसके तहत स्कूलों और कॉलेजों में तकनीकी वस्त्रों के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करना, रोड शो और सेमिनार जैसे जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना, डिजिटल एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार किया जा सकता है।
  • सरकार तकनीकी वस्त्र उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिये अपनी जनशक्ति विकास योजनाओं को संशोधित कर सकती है।
  • युवा और महत्त्वाकांक्षी उद्यमियों को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये और तकनीकी वस्त्रों के अनुसंधान और विकास में निवेश करने के साथ-साथ आगामी  वर्षों में इसका लाभ उठाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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