तटीय क्षरण में वृद्धि | 05 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:तटीय क्षरण, जलवायु परिवर्तन, कट्टुपल्ली बंदरगाह, सुंदरबन, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लवणीकरण, ग्रोइन, आर्द्रभूमि, राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR), तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना 2019, नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ), तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ (CZMP), राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), तटीय संरक्षण हेतु राष्ट्रीय रणनीति, तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (CMIS) मेन्स के लिये:तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में तटीय क्षरण के कारण और प्रभाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि तटीय क्षरण के कारण तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में मछुआरों और अन्य निवासियों की आजीविका को खतरे में है।
- इसके तट का लगभग 43% हिस्सा क्षरण/कटाव का सामना कर रहा है, जिससे 4,450 एकड़ से अधिक भूमि का क्षय/ह्रास हो रहा है।
- पूर्वी तट पर क्षरण का क्षेत्र प्रतिवर्ष 3 मीटर और पश्चिमी तट पर 2.5 मीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और समुद्री क्षरण को रोकने के उद्देश्य से बनाई गई विकास परियोजनाएँ तटरेखा को बदलकर स्थिति को और खराब कर रही हैं।
तमिलनाडु तट के संबंध में अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- तमिलनाडु में, वर्ष के अधिकांश समय (लगभग आठ महीने) पवन और समुद्री धाराएँ दक्षिण से उत्तर की ओर चलती हैं, अपने साथ रेत ले जाती हैं। पूर्वोत्तर मानसून (लगभग चार महीने) के दौरान, वे विपरीत दिशा में बहती हैं।
- जब बंदरगाह, ब्रेकवाटर या ग्रोइन जैसी संरचनाओं का समुद्र में विस्तार होता हैं, तो वे रेत की प्राकृतिक गति को रोकती हैं।
- इससे एक ओर रेत जमा हो जाती है और दूसरी तरफ क्षरण होता है, जहाँ रेत का क्षय होता है।
- यह असंतुलन तटीय क्षरण को तेज़ करता है, जिससे लहरें स्थल की ओर बढ़ती जाती हैं और तटीय क्षेत्रों के लिये जोखिम बढ़ जाता है।
तटीय क्षरण क्या है?
- परिचय: तटीय क्षरण तब होता है जब समुद्र के द्वारा भूमि का क्षरण होता है, जो प्रायः तट को तोड़ने वाली प्रबल व तेज़ लहरों के कारण होता है।
- यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा स्थानीय समुद्र स्तर में वृद्धि, प्रबल समुद्री लहर क्रिया और तटीय भूमि के साथ चट्टानों, मिट्टी और/या रेत को नष्ट कर देती है या बहा ले जाती है।
- प्रक्रिया: तटीय क्षरण की चार मुख्य प्रक्रियाएँ हैं। ये हैं: संक्षारण, अपघर्षण, हाइड्रोलिक क्रिया और घर्षण।
- संक्षारण: यह तब होता है जब प्रबल लहरें सागरीय पदार्थ, मलबे, कंकड़ को चट्टान के आधार पर फेंकती हैं, धीरे-धीरे इसे तोड़ती हैं जिससे चट्टान के आधार पर एक तरंग-सदृश चिह्न (चट्टान के आधार पर छोटा, घुमावदार इंडेंट) बनता हैं।
- अपघर्षण: यह तब होता है जब रेत और बड़े टुकड़े ले जाने वाली लहरें चट्टान या हेडलैंड के आधार को नष्ट कर देती हैं। यह सैंडपेपर प्रभाव की तरह है जो विशेष रूप से शक्तिशाली तूफानों के दौरान आम है।
- हाइड्रोलिक क्रिया: यह तब होता है जब लहरें चट्टान से टकराती हैं, दरारों और जोड़ों में हवा को संपीड़ित करती हैं। जब लहरें पीछे हटती हैं, तो अंदर फँसी (Trapped) हुई हवा विस्फोटक तरीके से बाहर निकलती है, जिससे चट्टान टूट जाते हैं। यह अपक्षय चट्टान को कमज़ोर कर देता है, जिससे यह प्रक्रिया और अधिक प्रभावी हो जाती है।
- संघर्षण: यह तब होता है जब लहरें चट्टानों और कंकड़ों को आपस में टकराकर तोड़ देती हैं।
- कारण:
- लहरें: शक्तिशाली लहरें घर्षण, क्षरण और हाइड्रोलिक क्रिया के माध्यम से तटरेखाओं को नष्ट कर सकती हैं। उदाहरण के लिये, इंग्लैंड में डोवर की चट्टानें इंग्लिश चैनल की लहरों की निरंतर क्रिया से नष्ट हो रही हैं।
- ज्वार: उच्च और निम्न ज्वार क्षरण की मात्रा को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण ज्वारीय सीमाओं वाले क्षेत्रों में। उदाहरण के लिये कनाडा में फंडी की खाड़ी में अत्यधिक समुद्री ज्वार की घटनाएँ होती हैं जो तटरेखाओं को काफी हद तक नष्ट कर सकते हैं।
- पवन और समुद्री धाराएँ: यह धीरे-धीरे और दीर्घकालिक क्षरण का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु तट पर, वर्ष के अधिकांश समय (आठ महीने) पवन और समुद्री धाराएँ दक्षिण से उत्तर की ओर चलती हैं, जो तट के साथ रेत ले जाती हैं। पूर्वोत्तर मानसून (चार महीने) के दौरान, यह दिशा उत्क्रमित हो जाती है।
- कठोर संरचनाएँ: बंदरगाह, ब्रेकवाटर और ग्रोइन रेत की प्राकृतिक गतिशीलता में बाधा डालते हैं, जिससे नीचे की ओर क्षरण होता है तथा ऊपर की ओर रेत जमा होती है।
- ग्रोइन निम्न स्तर की लकड़ी या कंक्रीट की संरचनाएँ हैं जो तलछट को रोकने, तरंग ऊर्जा को नष्ट करने तथा तटीय बहाव के माध्यम से तलछट को समुद्र तट से दूर स्थानांतरित होने से रोकने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- विकास परियोजनाएँ: आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ तटरेखा में बदलाव करके क्षरण को बढ़ा रही हैं। उदाहरण के लिये, मुंबई जैसी जगहों पर भूमि पुनर्ग्रहण से आस-पास के तटीय क्षेत्रों में क्षरण होता है।
- बंदरगाह विस्तार: जब पत्तन और बंदरगाहों का विस्तार किया जाता है, तो ब्रेकवाटर एवं जेटी जैसी संरचनाएँ तट के किनारे रेत तथा तलछट की प्राकृतिक गति को अवरुद्ध करती हैं। इससे संरचना के एक तरफ तलछट जमा हो सकती है और दूसरी तरफ क्षरण बढ़ सकता है। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में एन्नोर बंदरगाह और अदानी कट्टुपल्ली बंदरगाह।
भारत की तटरेखा
- भारत की तटरेखा 7516.6 किमी. [मुख्य भूमि की 6100 किमी. + द्वीपों की 1197 किमी.] लंबी है, जो 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) से लगती है।
- राज्यों में सबसे लंबी तटरेखा गुजरात (1214.7 किमी.) की है, जिसके बाद आंध्र प्रदेश (973.7 किमी.) और तमिलनाडु (906.9 किमी.) का स्थान है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (1962 किमी.) की तटरेखा केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे लंबी है।
- कोरोमंडल तट (तमिलनाडु) उभरता हुआ तट है, जबकि कोंकण तट (महाराष्ट्र और गोवा तट) डूबता हुआ तट है।
तटीय क्षरण के प्रभाव क्या हैं?
- भूमि की हानि: कटाव से मूल्यवान तटीय भूमि का नुकसान हो सकता है, जिससे संपत्ति और बुनियादी ढाँचे पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिये, चेन्नई में मरीना बीच क्षेत्र के साथ भूमि के नुकसान ने संपत्ति तथा सार्वजनिक स्थानों को बुरी तरह प्रभावित किया।
- तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: कटाव से मैंग्रोव, नमक दलदल और रेत के टीले जैसे आवास नष्ट हो सकते हैं, जो विभिन्न प्रजातियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये, पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र में कटाव के कारण मैंग्रोव वन नष्ट हो गए हैं।
- बाढ़ का खतरा: कटाव से तटीय क्षेत्रों को बाढ़ से बचाने वाली प्राकृतिक बाधाएँ कम हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, केरल के तटीय क्षेत्रों में, कटाव से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है, निचले इलाकों पर असर पड़ा है और भारी बारिश तथा तूफानों का असर और भी बढ़ गया है।
- समुदायों का विस्थापन: कटाव के कारण समुदायों को स्थानांतरित होना पड़ सकता है, जिससे सामाजिक और आर्थिक व्यवधान पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिये, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तटीय कटाव के कारण स्थानीय समुदायों का विस्थापन हुआ है, खासकर छोटे द्वीपों पर जहाँ भूमि का नुकसान अधिक है।
- खारे पानी का अतिक्रमण: तटीय कटाव से कृषि भूमि में लवणीकरण हो सकता है, जिससे फसल की पैदावार कम हो सकती है।
- उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में खारे पानी के प्रवेश से फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और कृषि भूमि की उत्पादकता कम हो गई।
- समुद्री और तटीय जैवविविधता पर प्रभाव: यह पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य शृंखलाओं को बदल सकता है। उदाहरण के लिये, इसने लक्षद्वीप द्वीपसमूह में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बाधित किया।
तटीय कटाव को कैसे रोकें?
- वनस्पति: समुद्री घास और अन्य तटीय पौधों का रणनीतिक रोपण कटाव को रोकने में मदद करता है। इन पौधों की जड़ें रेत को स्थिर रखने में मदद करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि कटाव के दौरान यह बह न जाए।
- समुद्र तट पोषण: प्रकृति-आधारित या "हरित अवसंरचना" संरक्षण उपाय प्राकृतिक तटीय प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप किये बिना तूफानी ऊर्जा को अवशोषित करने और नष्ट करने के लिये तटरेखाओं की प्राकृतिक क्षमता को बढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, कटाव के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता के रूप में मैंग्रोव का रोपण करना।
- तटीय पुनरुद्धार: इसका उद्देश्य महत्त्वपूर्ण नर्सरी मैदान उपलब्ध कराकर समुद्री और तटीय प्रजातियों को लाभ पहुँचाने के लिये आर्द्रभूमि जैसे आवासों को बहाल करना है। इसके पर्यावरणीय लाभ हैं, जैसे- कार्बन पृथक्करण और खुली जगहों की बहाली।
- नियामक उपाय: तटीय विकास को विनियमित करने के लिये ज़ोनिंग कानून, भवन संहिता तथा नई इमारतों या बुनियादी ढाँचा सुविधाओं हेतु तटरेखा से न्यूनतम दूरी बनाए रखना।
तटीय कटाव से निपटने के लिये सरकार ने क्या पहल की है?
- तटरेखा मानचित्रण प्रणाली: राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (National Centre for Coastal Research- NCCR) ने पाया है कि भारतीय तटरेखा का 33.6% हिस्सा क्षरण के प्रति संवेदनशील है, 26.9% हिस्सा अभिवृद्धि (बढ़ रहा है) के अधीन है तथा 39.6% स्थिर अवस्था में है।
- खतरा रेखा: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने तटरेखा में परिवर्तन तथा समुद्र स्तर में वृद्धि को इंगित करने के लिये खतरा रेखा को परिभाषित किया है।
- इसका उपयोग तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन, अनुकूली योजना और शमन उपायों के लिये किया जाता है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना 2019: यह कटाव नियंत्रण उपायों की अनुमति देता है और अतिक्रमण तथा कटाव से समुद्र तट की रक्षा के लिये नो डेवलपमेंट जोन (No Development Zones- NDZ) की स्थापना करता है।
- तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ (CZMP): राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेश के बाद, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को CZMP को अंतिम रूप देने के लिये कहा गया है, जिसमें कटाव-प्रवण क्षेत्रों का मानचित्रण और तटरेखा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करना शामिल है।
- तटीय संरक्षण के लिये राष्ट्रीय रणनीति: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों हेतु तटीय संरक्षण हेतु एक राष्ट्रीय रणनीति तथा दिशा-निर्देश विकसित किये हैं।
- बाढ़ प्रबंधन योजना: समुद्र-कटाव रोधी योजनाओं की योजना और क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा तकनीकी, परामर्शदात्री, उत्प्रेरक तथा संवर्द्धनात्मक क्षमताओं में केंद्र सरकार की सहायता से किया जाता है।
- तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (CMIS): यह तटीय सुरक्षा संरचनाओं की योजना बनाने, डिज़ाइन करने और रखरखाव के लिये तटीय डेटा एकत्र करती है। केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में तीन-तीन स्थानों पर एक प्रायोगिक CMIS स्थापित किया गया था।
निष्कर्ष
तटीय क्षरण भारत के तटीय क्षेत्रों को खतरे में डाल रहा है, जिससे पर्यावरण और स्थानीय समुदायों को नुकसान पहुँच रहा है। प्राकृतिक और मानवीय कारक तटरेखा में होने वाले बदलावों को और खराब कर रहे हैं, जिससे आवास नष्ट हो रहे हैं तथा मछुआरे प्रभावित हो रहे हैं। बेहतर तटरेखा मानचित्रण और हैज़ार्ड लाइन तथा CRZ अधिसूचना 2019 जैसे सरकारी उपायों का उद्देश्य तटीय क्षेत्रों का प्रबंधन एवं सुरक्षा करना है। CMIS जैसे चल रहे प्रयास इन रणनीतियों को बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता समुद्री स्तर भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये किस प्रकार खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। |
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