जठरांत्र माइक्रोबायोम्स पर माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव | 10 Jul 2023
प्रिलिम्स के लिये:जठरांत्र माइक्रोबायोम्स, FAO, माइक्रोप्लास्टिक्स, डिस्बिओसिस पर माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव। मेन्स के लियेमानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने अपनी रिपोर्ट "मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स का प्रभाव" में बताया कि माइक्रोप्लास्टिक्स तथा नैनो प्लास्टिक मानव एवं पशु जठरांत्र माइक्रोबायोम के साथ-साथ पर्यावरण पर भी काफी प्रभाव डालते हैं।
जठरांत्र माइक्रोबायोम:
- जठरांत्र माइक्रोबायोम गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (GIT) में मौजूद सूक्ष्मजीवों, बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ और कवक तथा उनकी सामूहिक आनुवंशिक सामग्री की समग्रता है।
- जठरांत्र माइक्रोबायोटा पोषक तत्वों और खनिज अवशोषण, एंजाइमों, विटामिन और अमीनो एसिड के संश्लेषण तथा शॉर्ट-चेन फैटी एसिड (SCFAs) के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- माइक्रोबायोम पर्यावरण में सभी सूक्ष्मजीवों से जीनोम के संग्रह को संदर्भित करता है जबकि माइक्रोबायोटा आमतौर पर सूक्ष्मजीवों को संदर्भित करता है जो एक विशिष्ट वातावरण में पाए जाते हैं।
रिपोर्ट की मुख्य बिंदु:
- जठरांत्र सूजन और डिस्बिओसिस:
- प्लास्टिक के संपर्क में आने से जठरांत्रों में सूजन और जठरांत्र डिस्बिओसिस हो रहा है - इनके मुख्य कारक जठरांत्र माइक्रोबायोम और माइक्रोबायोटा में परिवर्तन है।
- माइक्रोप्लास्टिक्स तनाव कारक के रूप में कार्य करते हैं तथा बीमार व्यक्ति में सूजन संबंधी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं, जिससे कुछ सूक्ष्मजीव प्रभावित होते हैं और परिणामस्वरूप माइक्रोबियल डिस्बिओसिस से ग्रसित होता है।
- डिस्बिओसिस को जीवाणु संरचना में असंतुलन, जीवाणु चयापचय गतिविधियों में परिवर्तन, या जठरांत्र के भीतर जीवाणु वितरण में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया गया है।
- मानव शरीर में निक्षेपण:
- पानी की बोतलों,चीनी, शहद, समुद्री नमक, चाय और अन्य खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स अंततः मानव फेफड़ों के ऊतकों, प्लेसेंटा, मल, रक्त और मेकोनियम में एकत्रित हो जाते हैं।
- पर्यावरण के साथ प्लास्टिक का अंतर्संबंध:
- हाइड्रोफोबिक प्रकृति के प्लास्टिक पर्यावरण से हाइड्रोफोबिक रसायनों या लगातार कार्बनिक प्रदूषकों (उदाहरण के लिये, पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन तथा डाइक्लोरो डिफेनिल ट्राइक्लोरोइथेन) को सोख सकते हैं।
- जीव एवं चयापचय पर प्रभाव:
- जठरांत्र में माइक्रोप्लास्टिक का संचय, बलगम की परत और जठरांत्र की पारगम्यता में परिवर्तन, म्यूकोसल संरचना में परिवर्तन, ऑक्सीडेटिव तनाव तथा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया आदि प्रभाव समाहित हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक के भौतिक घर्षण के साथ जठरांत्र में इसके संचय से जीव में तृप्ति हो सकती है और यहाँ तक कि ये भोजनके पाचन को भी कम कर सकते है।
- यह अंततः वजन घटाने और चयापचय परिवर्तन का कारण बन सकता है इसके अतिरिक्त ये यकृत और चयापचय प्रकिया को भी प्रभावित कर सकता है।
- प्रभाव की गंभीरता माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता इसके कणों के आकार के समानुपाती होती है।
इस खोज का महत्त्व:
- यह रिपोर्ट जठरांत्र माइक्रोबायोम और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स तथा नैनोप्लास्टिक्स के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को रेखांकित करती है।
- प्रभावी शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिये जठरांत्र माइक्रोबायोम और पर्यावरण पर इस प्रकार के प्लास्टिक के संपर्क में आने से पड़ने वाले के प्रभावों को समझना महत्त्वपूर्ण है।
माइक्रोप्लास्टिक्स
- परिचय:
- ये पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक हैं, इसे ऐसा समझ सकते हैं कि ये आभूषणों में उपयोग किये जाने वाले मानक मोती के व्यास से भी छोटे होते हैं। यह हमारे समुद्र और जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकता है।
- सौर पराबैंगनी विकिरण, वायु, धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में ये प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स (5 मि.मी. से छोटे कण) अथवा नैनोप्लास्टिक्स (100 नैनोमीटर से छोटे कण) कहा जाता है।
- माइक्रोप्लास्टिक की दो श्रेणियाँ हैं: प्राथमिक और द्वितीयक।
- ये पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक हैं, इसे ऐसा समझ सकते हैं कि ये आभूषणों में उपयोग किये जाने वाले मानक मोती के व्यास से भी छोटे होते हैं। यह हमारे समुद्र और जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकता है।
- वर्गीकरण:
- प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए छोटे कण हैं, कपड़ों और अन्य वस्त्रों से निकलने वाले माइक्रोफाइबर इसके अंतर्गत आते हैं।
- उदाहरण के लिये व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों और प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
- द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये पानी की बोतलों जैसे बड़े प्लास्टिक के विखंडन से बनते हैं।
- यह पर्यावरणीय कारकों, मुख्य रूप से सूर्य के विकिरण और समुद्री लहरों के संपर्क के कारण होता है।
- प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए छोटे कण हैं, कपड़ों और अन्य वस्त्रों से निकलने वाले माइक्रोफाइबर इसके अंतर्गत आते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पर्यावरण में मुक्त हो जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं (माइक्रोबीड्स) के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019) (a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं। उत्तर: (a) |