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IIT परिषद की सिफारिशें

  • 24 Feb 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Technology- IIT) परिषद द्वारा IITs को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये चार कार्य समूहों का गठन किया गया है।

  • यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) की सिफारिश के आधार पर लिया गया है।
  • IITs द्वारा उसी प्रकार की स्वायत्तता की मांग की जा रही है जिस प्रकार की  स्वायत्तता भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIMs) को प्राप्त है।

प्रमुख बिंदु:

IIT परिषद के बारे में: 

  • सदस्य और प्रमुख:
    • IIT परिषद की अध्यक्षता शिक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
    • इसमें सभी IITs के निदेशक और प्रत्येक IIT के बोर्ड ऑफ गवर्नर (Board of Governor- BoG) के अध्यक्ष शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • प्रवेश मानकों, पाठ्यक्रमों की अवधि, डिग्री और अन्य ‘अकादमिक डिस्टिंक्शन’ (Academic Distinctions) पर सलाह देना। 
    • कैडर, भर्ती के तरीकों और सभी IITs कर्मचारियों की सेवा शर्तों के बारे में नीति निर्धारित करना।

  • परिषद के कार्य समूह:
    • समूह-1: ग्रेडेड ऑटोनॉमी, सशक्त और जवाबदेह बोर्ड ऑफ गवर्नर और निदेशक 
    • समूह-2: IITs के निर्देशन हेतु प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को तैयार करना।
    • समूह-3: एकेडमिक सीनेट/शैक्षणिक प्रबंधकारिणी समिति में सुधार और उसका पुनर्गठन।
    • समूह-4: धन जुटाने के तरीकों का नवीनीकरण। 

अन्य सिफारिशें:

  • प्रौद्योगिकी का उपयोग:
  • कर्मचारियों की संख्या में कमी करना:
    • निचले स्तर पर IIT कर्मचारियों की संख्या को कम करना। 
      • वर्तमान में IITs इस प्रकार से कार्य कर रहे हैं कि प्रत्येक दस छात्रों हेतु एक संकाय सदस्य (One Faculty Member) और प्रत्येक दस संकायों के लिये  उनके पास 11 कर्मचारियों हेतु पूर्व-अनुमोदन (Pre-Approval) होता है।
  • अनुसंधान और विकास प्रदर्शनी:
    • IIT द्वारा उद्योगों हेतु किये जाने वाले अनुसंधान कार्य को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से आईआईटी अनुसंधान और विकास प्रदर्शनियों का आयोजन करना
  • विकास योजनाएंँ:
    • शोध सहयोग को बढ़ावा देने के लिये संस्थान एवं उद्योगों के बीच शोध से संबंधित प्राध्यापकों की अंतरणीयता (Mobility) में सुधार हेतु IITs द्वारा संस्थान विकास योजनाएँ (Institute Development Plans) विकसित करने की सिफारिश की गई है।

स्वायत्तता की आवश्यकता:

  • बेहतर निर्णय लेना:
    • प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता संस्थानों को छात्रों और संगठन के हित में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करती है।
      • स्वायत्तता के अभाव के चलते अधिकांश निर्णय नौकरशाहों द्वारा लिये जाते हैं, जिनके पास तकनीकी संस्थानों से संबंधित निर्णय लेने हेतु आवश्यक तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है।
    • रचनात्मक निर्णय केवल शिक्षाविदों और विशेषज्ञों द्वारा लिये जा सकते हैं, जबकि IITs को पूर्ण स्वायत्तता नहीं प्राप्त है, उन्हें आंशिक स्वतंत्रता दी गई है।
    • हाल ही में IITs में आरक्षण को बेहतर ढंग से लागू करने के उपायों की सिफारिश हेतु नियुक्त एक विशेषज्ञ पैनल ने प्रस्ताव दिया है कि  IITs को संकाय की नियुक्तियों के लिये जातिगत आरक्षण से छूट मिलनी चाहिये क्योंकि वे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान हैं।
  • ज़िम्मेदारियों में बढ़ोतरी :
    • स्वायत्तता का अभाव न केवल हस्तक्षेप कीअनुमति प्रदान करता है, बल्कि ज़िम्मेदारियों का वितरण भी करता है। यह अनिवार्य रूप से यथास्थिति को बनाए रखने में मदद करता है जो वर्तमान भारत में वांछनीय/आवश्यक नहीं है।
    • स्वायत्तता के चलते इन संस्थानों का अपनी नीतियों और उनके संचालन पर पूर्ण नियंत्रण होगा, साथ ही इनके द्वारा प्रदान किये जाने वाले मूल्यों की ज़िम्मेदारी भी इन्ही पर होगी।

स्रोत: द हिंदू

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