हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी | 21 Sep 2023
प्रिलिम्स के लिये:हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई, पिनातुबो, क्राकाटोआ, टैम्बोरा, समालास, ग्रीनहाउस गैसें, अल-नीनो, पेरिस समझौता, IPCC, कूलिंग क्रेडिट, सन डिमिंग मेन्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग पर ज्वालामुखी का प्रभाव, ज्वालामुखी के प्रकार |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 में अब तक वैश्विक स्तर पर अभूतपूर्व तापमान वृद्धि दर्ज़ की गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका एक कारण वर्ष 2022 में दक्षिण प्रशांत में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी का जल के नीचे विस्फोट हो सकता है।
हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी के विषय में मुख्य तथ्य:
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी पश्चिमी दक्षिण प्रशांत महासागर में टोंगा साम्राज्य द्वारा बसे हुए द्वीपों के पश्चिम में है।
- यह टोफुआ आर्क के साथ 12 पुष्ट अंडर-सी ज्वालामुखियों (Submarine Volcanoes) में से एक है, जो बड़े केरमाडेक-टोंगा ज्वालामुखी आर्क का एक खंड है।
- टोंगा-केरमाडेक आर्क का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के नीचे प्रशांत प्लेट के सबडक्शन के परिणामस्वरूप हुआ।
- यह एक अंडर-सी ज्वालामुखी है जिसमें दो छोटे निर्जन द्वीप, हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा शामिल हैं।
पृथ्वी के तापमान पर हुंगा टोंगा ज्वालामुखी का प्रभाव:
- सामान्यतः बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट तापमान को कम करते हैं क्योंकि वे भारी मात्रा में सल्फर डाइ-ऑक्साइड को उत्सर्जित करते हैं, जो सल्फेट एरोसोल बनाते हैं जो सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित कर पृथ्वी की सतह को अस्थायी रूप से ठंडा कर सकते हैं, जिसे सामान्यतः सन डिमिंग कहा जाता है।
- टोंगा विस्फोट जोकि जल के नीचे हुआ था, का एक और प्रभाव वर्ष 2022 में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई के विस्फोट से 58 किमी ऊँचा उद्गार था और यह अब तक का सबसे बड़ा वायुमंडलीय विस्फोट था।
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई विस्फोट अजीब है क्योंकि, दशकों में समतापमंडलीय एयरोसोल में सबसे अधिक वृद्धि के अलावा, इसने समतापमंडल में भारी मात्रा में जल वाष्प को भी इंजेक्ट किया।
- जल वाष्प एक प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस है जो सौर विकिरण को अवशोषित करती है और वातावरण में गर्मी को एकत्रित करती है।
- एरोसोल तथा जल वाष्प विपरीत तरीकों से जलवायु प्रणाली को प्रभावित करते हैं, लेकिन कई अध्ययनों में पाया गया है कि ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न बड़े और अधिक स्थायी जल वाष्प बादल के कारण सतह पर अस्थायी नेट वार्मिंग प्रभाव देखा जा सकता है।
पिछले ज्वालामुखी विस्फोटों का वैश्विक स्तर पर जलवायु प्रभाव:
- इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, पिछले 2,500 वर्षों में लगभग आठ बड़े ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं।
- इन ज्वालामुखियों में से एक टैम्बोरा ज्वालामुखी (इंडोनेशिया) है, जिसमें वर्ष 1815 में विस्फोट हुआ, जिसके कारण फ्राँस से संयुक्त राज्य अमेरिका तक फसलें नष्ट हो गईं।
- इससे भी भीषण घटना वर्ष 1257 में घटित हुई थी जब इंडोनेशिया में समलास ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण अकाल पड़ा और संभवत: छोटे हिमयुग की शुरुआत हुई, यह असामान्य रूप से शीत काल था जो लगभग 19वीं शताब्दी तक चला।
ज्वालामुखी के प्रकार:
- सामान्यतः ज्वालामुखी को विस्फोट के प्रकार एवं विस्फोट की आवधिकता के आधार पर विभाजित किया जाता है।
- विस्फोट के प्रकार के आधार पर: विस्फोट की प्रकृति मुख्य रूप से मैग्मा की चिपचिपाहट पर निर्भर करती है और दो प्रकार की होती है:
- क्षारीय: क्षारीय मैग्मा बेसाल्ट की तरह गहरे रंग का होता है, इसमें आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है लेकिन सिलिका की मात्रा कम होती है। ये दूर तक प्रवाहित होते हैं और व्यापक शील्ड ज्वालामुखी का निर्माण करते हैं।
- अम्लीय: ये हल्के रंग तथा कम घनत्व वाला होता है जिसमें सिलिका की उच्च प्रतिशतता पाई जाती है और इसलिये ये एक शंक्वाकार ज्वालामुखी बनाते हैं।
- विस्फोट के प्रकार के आधार पर: विस्फोट की प्रकृति मुख्य रूप से मैग्मा की चिपचिपाहट पर निर्भर करती है और दो प्रकार की होती है:
- प्रस्फूटन की आवृत्ति के आधार पर:
- सक्रिय ज्वालामुखी: इनमें निरंतर प्रस्फूटन होता रहता है ये मुख्यतः अग्नि वलय (रिंग ऑफ फायर) के निकट पाए जाते हैं।
- जैसे: माउंट स्ट्रोमबोली एक सक्रिय ज्वालामुखी है और यह इतने सारे गैस के बादल उत्सर्जित करता है कि इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ कहा जाता है।
- सक्रिय ज्वालामुखी: इनमें निरंतर प्रस्फूटन होता रहता है ये मुख्यतः अग्नि वलय (रिंग ऑफ फायर) के निकट पाए जाते हैं।
- प्रसुप्त ज्वालामुखी: ये ज्वालामखी विलुप्त नहीं हैं लेकिन हाल के इतिहास में इनका उद्गार नहीं हुआ है। भविष्य में प्रसुप्त ज्वालामुखी प्रस्फुटित हो सकते हैं।
- उदाहरण: तंज़ानिया में स्थित माउंट किलिमंजारो, जो अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत भी है, प्रसुप्त ज्वालामुखी के रूप में जाना जाता है।
- भू-वैज्ञानिक अतीत में विलुप्त या निष्क्रिय ज्वालामुखी का उद्गार नहीं हुआ था।
- अधिकांश मामलों में ज्वालामुखी का क्रेटर जल से भर जाता है जिससे यह झील बन जाता है। जैसे: डेक्कन ट्रैप्स, भारत।
निष्कर्ष:
- प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति से लेकर साइबेरिया में हुई वनाग्नि तक, कोई भी घटना वैश्विक तापमान को प्रभावित कर सकती है।
- हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी प्रस्फूटन वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ले जा सकता है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पेरिस समझौता विफल हो गया है; इस घटना ने प्रदर्शित किया है कि विश्व अपने सहमत निर्णायक बिंदु के कितने निकट है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. 2021 में घटित ज्वालामुखी विस्फोटों की वैश्विक घटनाओं का उल्लेख करते हुए क्षेत्रीय पर्यावरण पर उनके द्वारा पड़े प्रभावों को बताइए। (2021) |