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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हूती विद्रोहियों का यूएई पर हमला

  • 19 Jan 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हूती, यमन की अवस्थिति और उसके पड़ोसी देश, लाल सागर, अदन की खाड़ी, ड्रोन, शिया, सुन्नी, अरब स्प्रिंग, ऑपरेशन राहत

मेन्स के लिये:

हूती और संबंधित चिंताएँ, हूती संघर्ष का महत्त्व, भारत का हित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की राजधानी अबू धाबी में एक संदिग्ध ड्रोन हमले में कई विस्फोट हुए जिसमें दो भारतीय भी मारे गए है।

Houthi-Insurgency

प्रमुख बिंदु

  • हूती :
    • हूती आंदोलन की जड़ें "बिलीविंग यूथ" (मुंतदा अल-शहाबल-मुमिन) में खोजी जा सकती हैं, जो हुसैन अल-हूती और उसके पिता बद्र अल-दीन अल-हूती द्वारा 1990 के दशक की शुरुआत में स्थापित एक ज़ायदी पुनरुत्थानवादी समूह था।
    • बद्र अल-दीन उत्तरी यमन में एक प्रभावशाली ज़ायदी मौलवी था। वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति और 1980 के दशक में दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह के उदय से प्रेरित होकर बद्र अल-दीन एवं उसके बेटों ने यमन के ज़ायदियों के बीच विशाल सामाजिक और धार्मिक नेटवर्क का निर्माण कार्य शुरू किया, जो सुन्नी-बहुसंख्यक आबादी वाले देश का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बनाते हैं।
    • लेकिन जब आंदोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया और अली अब्दुल्ला सालेह (यमन में) के "भ्रष्ट" शासन पर हमला करना शुरू कर दिया तो आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का युद्ध के लिये उनका समर्थन सालेह के लिये घातक बन गया।
    • उसने खुद को अंसार अल्लाह कहा और सरकार के खिलाफ उत्तर में आदिवासियों को लामबंद किया।
    • वर्ष 2004 में सालेह की सरकार ने हुसैन अल हूती के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया  और इस गिरफ्तारी के विरोध में विद्रोह की शुरुआत हुई।
    • सितंबर 2004 में सरकारी सैनिकों ने विद्रोहियों पर हमला कर हुसैन को मार डाला। तब से सरकार ने प्रतिरोध को समाप्त करने के लिये ज़ायदी के गढ़ सादा में कई सैन्य अभियान शुरू किये जिसे स्थानीय रूप में हूती आंदोलन कहा गया।
    • लेकिन इसने हूती विद्रोहियों को मजबूत किया जिन्होंने वर्ष 2010 तक यानी जब यह युद्ध विराम की स्थिति तक पहुंँच गया तो सरकारी सैनिकों की मदद से सादा पर कब्ज़ा कर लिया था।

ज़ायदी

  • ज़ायदी शियाओं की सबसे पुरानी शाखा है। ज़ायदियों का नाम ज़ैद बिन अली, इमाम अली के परपोते, पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद के नाम पर रखा गया है, जो शिया, सुन्नी और ज़ायदी का सम्मान करते हैं।
  • ज़ायद बिन अली ने आठवीं शताब्दी में उम्मायद खलीफा के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। जिसमे उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन उसकी शहादत के कारण जायदी संप्रदाय का उदय हुआ। हाँलाकि धर्मशास्त्र और व्यवहार के संदर्भ में जायदी को इस्लाम की शिया शाखा का हिस्सा माना जाता है। वे ईरान, इराक और लेबनान के 'ट्वेल्वर' शियाओं से भिन्न हैं।
  • सदियों से यमन के भीतर जायदी एक शक्तिशाली संप्रदाय था।
  • वर्ष 1918 में ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद ज़ायदी देश में एक राजशाही (मुतावक्किलित साम्राज्य) स्थापित करना चाहते थे लेकिन उनका प्रभुत्व वर्ष 1962 में उस समय समाप्त हो गया जब मिस्र समर्थित गणतंत्रों ने राजशाही को उखाड़ फेंका।
  • हूती के उदय का कारण:
    • वर्ष 2011 में जब ट्यूनीशियाई और मिस्र के तानाशाहों को गिराने वाले अरब स्प्रिंग विरोध के हिस्से के रूप में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, तो हूती (Houthis), उस समय अपनी सैन्य जीत से आश्वस्त थे और सदाह में उन्हें जो समर्थन मिला, उसने आंदोलन का समर्थन किया।
    • राष्ट्रपति सालेह, (एक जायदी) जो 33 वर्षों तक सत्ता में थे, ने नवंबर 2011 में इस्तीफा दे दिया तथा  अपने डिप्टी, अब्दराबुह मंसूर हादी, जो एक सऊदी समर्थित सुन्नी था को बागडोर सौंप दी। 
    • सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संरक्षण में यमन ने आंतरिक मतभेदों को हल करने के लिये एक राष्ट्रीय वार्ता शुरू की।
    • हूथी इस संवाद का हिस्सा थे लेकिन वे हादी की संक्रमणकालीन सरकार (Transitional Government) के साथ ही इस संवाद से बाहर हो गए तथा  यह दावा करते हुए कि प्रस्तावित संघीय समाधान, जो ज़ायदी-प्रभुत्व वाले उत्तर को दो भूमि-बंद प्रांतों में विभाजित करने की मांग करता था, का उद्देश्य आंदोलन को कमजोर करना था।
    • वे शीघ्र ही विद्रोह में पुन: शामिल हो गए। सालेह  जिन्हें अंतरिम सरकार और उसके समर्थकों द्वारा दरकिनार कर दिया गया था। अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वियों के साथ हाथ मिलाया और एक संयुक्त सैन्य अभियान शुरू किया। 
    • जनवरी 2015 तक हूती-सालेह गठबंधन (Houthi-Saleh alliance) ने सना और उत्तरी यमन के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा  कर लिया था, जिसमें महत्त्वपूर्ण लाल सागर तट भी शामिल था। (बाद में हूती, सालेह के खिलाफ हो गए और दिसंबर 2017 में उसे मार डाला)।
  • यमन पर सऊदी अरब के हमले का कारण:
    • यमन में हूती विद्रोहियों के तेज़ी से उदय ने सऊदी अरब में खतरे की घंटी बजा दी, जो कि उन्हें ईरानी प्रॉक्सी के रूप में देखता है।
    • सऊदी अरब ने मार्च 2015 में हूती विद्रोहियों के खिलाफ त्वरित जीत की उम्मीद में एक सैन्य अभियान शुरू किया था, लेकिन सऊदी अरब के हवाई हमले के बावजूद हूती विद्रोही पीछे नहीं हटे।
    • ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभावी सहयोगी नहीं होने और कोई विशिष्ट योजना न होने के कारण, सऊदी के नेतृत्व वाला अभियान बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया। पिछले छह वर्षों में हूती विद्रोहियों ने सऊदी हवाई हमलों के जवाब में उत्तरी यमन के सऊदी शहरों पर कई हमले किये हैं।
    • वर्ष 2019 में हूती विद्रोहियों ने दो सऊदी तेल प्रतिष्ठानों पर हमले का दावा किया था, जो कि देश के तेल उत्पादन के आधे हिस्से हेतु उत्तरदायी है (हूती विद्रोहियों के दावे को विशेषज्ञों और सरकारों द्वारा खंडित कर दिया गया था, जिन्होंने कहा कि विद्रोहियों के लिये यह हमला करना संभव नहीं था। अमेरिका ने इसके लिये ईरान को दोषी ठहराया था)।
    • हूती विद्रोहियों ने उत्तर में एक सरकार का गठन किया। युद्ध में सऊदी अरब और हूती दोनों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
    • जबकि सऊदी बम विस्फोटों में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए, हूती विद्रोहियों पर अधिकार समूहों और सरकारों द्वारा, सहायता को रोकने, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बलों को तैनात करने तथा नागरिकों व शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल का उपयोगप्रयोग करने का आरोप लगाया गया।
  • हूती विद्रोहियों के संयुक्त अरब अमीरात पर हमला करने का कारण:
    • यह पहली बार नहीं है जब हूती विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात पर हमला किया हो। वर्ष 2018 में जब संयुक्त अरब अमीरात समर्थित बल यमन में आगे बढ़ रहे थे, हूती विद्रोहियों ने अमीरात के खिलाफ हमलों का दावा किया।
    • तब संयुक्त अरब अमीरात ने यमन से अपने सैनिकों को वापस ले लिया और अदन स्थित विद्रोहियों के एक समूह, दक्षिणी ट्रांजीशनल परिषद को सामरिक समर्थन की पेशकश की, जो संयुक्त अरब अमीरात के सऊदी समर्थित सरकारी बलों से भी लड़ रहा था।
    • इस अवधि के दौरान हूती विद्रोही पूरी तरह से सऊदी अरब और यमन के अंदर सऊदी समर्थित बलों पर केंद्रित रहे।
    • लेकिन हाल के महीनों में, जायंट्स ब्रिगेड्स, एक मिलिशिया समूह, जो बड़े पैमाने पर दक्षिणी यमनियों (यूएई द्वारा समर्थित) से बना है और संयुक्त बलों (मारे गए पूर्व राष्ट्रपति सालेह के भतीजे के नेतृत्व में मिलिशिया) ने हूती विद्रोहियों के खिलाफ बंदूक उठा ली थी।
    • अब हमलों के साथ ऐसा प्रतीत होता है कि हूती विद्रोहियों ने अमीरात को एक स्पष्ट संदेश भेजा है कि वह यमन से दूर रहे या अधिक हमलों का सामना करें।
  • चिंताएँ:
    • यमन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले जलडमरूमध्य पर स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के अधिकांश तेल शिपमेंट गुज़रते हैं।
    • यह अल-कायदा या आईएस से जुड़े-देश के हमलों के खतरे के कारण भी पश्चिम को चिंतित करता है -जो अस्थिरता को उत्पन्न करते हैं।
    • अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध करने और छह साल से संघर्ष को कम करने के प्रयासों के बाद भी हूती विद्रोहियों ने राज्य पर सीमा पार हमले तेज कर दिये हैं।
    • संघर्ष को शिया शासित ईरान और सुन्नी शासित सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय सत्ता संघर्ष के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है।
  • भारत का हित:
    • भारत के लिये यह एक ऐसी चुनौती है जिसे तेल सुरक्षा और इस क्षेत्र में रहने वाले 8 मिलियन प्रवासियों को ध्यान में रखकर नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है जिनसे सालाना 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रेषण होता है।
  • भारतीय पहल:
    • ऑपरेशन राहत:
      • भारत ने अप्रैल 2015 में यमन से 4000 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकालने के लिये बड़े पैमाने पर हवाई और समुद्री अभियान शुरू किये।
    • मानवीय सहायता:
      • भारत ने अतीत में यमन को भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान की है और पिछले कुछ वर्षों में हजारों यमन नागरिकों ने भारत में चिकित्सा उपचार का लाभ उठाया है।
      • भारत ने विभिन्न भारतीय संस्थानों में बड़ी संख्या में यमन नागरिकों के लिये शिक्षा की सुविधा जारी रखता है।

स्रोत- द हिंद

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