हैबर-बॉश प्रक्रिया और उर्वरकों का उत्पादन | 17 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

हैबर-बॉश प्रक्रिया, नाइट्रोजन, अमोनिया, लाइटनिंग, एज़ोटोबैक्टर और राइज़ोबिया, ज्वालामुखी विस्फोट, अम्लीय वर्षा, जैविक खेती, जैव उर्वरक

मेन्स के लिये:

हैबर-बॉश प्रक्रिया का महत्त्व, उर्वरकों के उपयोग के निहितार्थ, नाइट्रोजन चक्र।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हैबर-बॉश प्रक्रिया के माध्यम से वायुमंडल की सौ मिलियन टन नाइट्रोजन को उर्वरक में परिवर्तित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप मृदा में 165 मिलियन टन अभिक्रियाशील नाइट्रोजन शामिल होती है।

  • इसकी तुलना में प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं से प्रतिवर्ष अनुमानित 100-140 मिलियन टन अभिक्रियाशील नाइट्रोजन उत्पन्न होता है। 

हैबर-बॉश प्रक्रिया क्या है?

  • परिचय: 
    • हैबर-बॉश, वायु से नाइट्रोजन को प्राप्त कर उसे हाइड्रोजन के साथ संयोजित करके अमोनिया के संश्लेषण की एक औद्योगिक विधि है, जिसकी उर्वरक उत्पादन में प्रमुख भूमिका है।
  • प्रक्रिया:
    • प्रयोगात्मक उपकरण:
      • यह अभिक्रिया स्टील चैम्बर में 200 atm के दाब पर होती है, जिससे नाइट्रोजन-हाइड्रोजन मिश्रण प्रभावी रूप से प्रसारित होता है।
      • विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया वाल्व उच्च दाब में N₂-H₂ मिश्रण को प्रवाहित होने देता है।
      • हैबर ने बाहर जाने वाली गर्म गैसों की ऊष्मा को अंदर आने वाली ठंडी गैसों में स्थानांतरित करने के लिये एक प्रणाली लागू की, जिससे ऊर्जा दक्षता को अनुकूलित किया जा सका।
    • उत्प्रेरक विकास:
      • हैबर ने शुरू में अभिक्रिया को गति देने के लिये उत्प्रेरक के रूप में उपयुक्त फिलामेंट पदार्थों की तलाश में विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग किया।
      • परीक्षण किये गए पदार्थों में ऑस्मियम भी शामिल था, जिसे जब N₂-H₂ मिश्रण के साथ दाब चैम्बर में रखा गया तो उसके द्वारा नाइट्रोजन त्रिबंध को सफलतापूर्वक तोड़ दिया गया, जिससे अमोनिया का उत्पादन संभव हो पाया।
        • यूरेनियम एक अन्य प्रभावी उत्प्रेरक था लेकिन ऑस्मियम और यूरेनियम दोनों ही बड़े पैमाने पर अनुप्रयोगों के लिये बहुत महँगे थे।
        • अधिक लागत प्रभावी उत्प्रेरक की खोज के परिणामस्वरूप विशिष्ट लौह ऑक्साइड को व्यवहार्य विकल्प के रूप में पहचाना गया।
  • अनुप्रयोग: 
    • विनिर्माण: औद्योगिक प्रशीतन प्रणालियों और वातानुकूलन में प्रशीतक के रूप में। 
    • घरेलू: घरेलू सफाई उत्पादों में एक घटक के रूप में, जिसमें काँच और सरफेस क्लीनर शामिल हैं। 
    • ऑटोमोटिव ईंधन: वैकल्पिक प्रणोदन प्रौद्योगिकी के रूप में अमोनिया द्वारा संचालित आंतरिक दहन इंजन की खोज में।
    • रसायन: नाइट्रिक एसिड और विस्फोटकों सहित विभिन्न रसायनों का अग्रणी।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ:
    • वर्ष 1913 में जर्मन रासायनिक कंपनी ने अपना पहला अमोनिया कारखाना खोला, जो उर्वरकों के उत्पादन में एक मील का पत्थर था।
    • जर्मन रसायनज्ञ फ्रिट्ज़ हैबर को अमोनिया संश्लेषण पर उनके कार्य के लिये वर्ष 1919 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला।

नाइट्रोजन चक्र क्या है?

  • परिचय:
    • पौधे जल में घुलित नाइट्रोजन-आधारित खनिजों जैसे अमोनियम (NH4+) और नाइट्रेट (NO3–) को अवशोषित करके मृदा से अभिक्रियाशील नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं।
    • मनुष्य और पशु नौ आवश्यक नाइट्रोजन युक्त अमीनो एसिड के लिये पौधों पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि मानव शरीर में नाइट्रोजन लगभग 2.6% होता है।
    • अंतर्ग्रहण के बाद नाइट्रोजन मलमूत्र और मृत जीवों के अपघटन के माध्यम से मृदा में वापस चला जाता है लेकिन नाइट्रोजन का कुछ अंश आणविक नाइट्रोजन के रूप में वायुमंडल में वापस चला जाता है, जिससे चक्र अधूरा रह जाता है।
  • नाइट्रोजन की प्राकृतिक उपलब्धता:
    • लाइटनिंग: लाइटनिंग बोल्ट में N2 बंधन को तोड़ने के लिये पर्याप्त ऊर्जा होती है तथा ये नाइट्रोजन को ऑक्सीजन के साथ संयोजित कर नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO और NO2) बनाने में सक्षम है। 
      • ये ऑक्साइड जलवाष्प के साथ मिलकर नाइट्रिक और नाइट्रस अम्ल बनाते हैं जो अम्लीय वर्षा के साथ मिलकर मृदा को अभिक्रियाशील नाइट्रोजन प्रदान करते हैं।
    • जैविक स्थिरीकरण: कुछ बैक्टीरिया जैसे एज़ोटोबैक्टर और राइज़ोबियम, वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अभिक्रियाशील नाइट्रोजन में परिवर्तित कर सकते हैं। 
      • इन जीवाणुओं का अक्सर फलियों या एज़ोला जैसे जलीय फर्न जैसे पौधों के साथ सहजीवी संबंध होता है, जिससे मृदा में नाइट्रोजन की उपलब्धता में वृद्धि होती है, जिससे ये कृषि के लिये अधिक मूल्यवान बन जाते हैं।
  • नाइट्रोजन पुनःपूर्ति की प्रक्रिया:
    • फलीदार पौधे प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं लेकिन चावल, गेहूँ, मक्का, आलू, कसावा, केले और अन्य फल तथा सब्जियों जैसी अधिकांश प्रमुख फसलें अपने विकास के लिये मृदा के नाइट्रोजन पर निर्भर हैं।
    • जैसे-जैसे मानव आबादी बढ़ती है, कृषि मृदा में नाइट्रोजन की कमी तेजी से होती है, जिससे मृदा की उर्वरता बनाए रखने के लिये उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता होती है।
  • नाइट्रोजन पुनःपूर्ति की परंपरागत विधियाँ:
    • परंपरागत रूप से किसान मृदा में नाइट्रोजन की प्राकृतिक पूर्ति के लिये फलियों की खेती करते थे या फसल की पैदावार बढ़ाने के लिये अमोनिया आधारित उर्वरकों का प्रयोग करते थे।
    • पूर्व में किसानों द्वारा मृदा की उर्वरता बढ़ाने के लिये ज्वालामुखी विस्फोटों से प्राप्त अमोनियम युक्त खनिजों एवं गुफाओं और चट्टानों में पाए जाने वाले प्राकृतिक नाइट्रेट्स का भी उपयोग किया गया।

उर्वरकों के औद्योगिक उत्पादन का क्या प्रभाव है?

  • लाभ:
    • हैबर-बॉश प्रक्रिया से सिंथेटिक उर्वरकों के बड़े पैमाने पर उत्पादन को संभव बनाया गया, जिससे 20वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक खाद्य आपूर्ति तथा जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई।
    • अनुमान है कि विश्व की एक तिहाई जनसंख्या नाइट्रोजन उर्वरकों से उत्पादित खाद्यान्न पर निर्भर है। 
      • नाइट्रोजन और हाइड्रोजन से अमोनिया के औद्योगिक उत्पादन के बिना, खाद्यान्न की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करना असंभव होता।
  • दोष:
    • यद्यपि सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरक खाद्य उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन इनका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • अत्यधिक नाइट्रोजन के प्रयोग से पौधों के अतिपोषण के साथ जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ती है और वायुमंडल में नाइट्रोजन का उत्सर्जन तीव्र होता है।
    • इससे पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा मिलता है जिसमें अम्लीय वर्षा, भूमि क्षरण तथा अपवाह के माध्यम से सतही जल का ऑक्सीजन रहित होना शामिल है, जिसके कारण जल निकायों में खरपतवार की अत्यधिक वृद्धि होती है।

आगे की राह:

  • उर्वरकों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देना: नाइट्रोजन की बर्बादी को कम करने, पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करने एवं खेती में उर्वरक उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिये परिशुद्ध कृषि और नियंत्रित-रिलीज़ उर्वरकों को अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों में निवेश करना: रासायनिक उर्वरकों के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये सिंथेटिक उर्वरकों के पर्यावरण अनुकूल विकल्पों (जैसे जैविक कृषि पद्धतियों, नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों और जैव उर्वरकों) का विकास और प्रचार करना चाहिये।
  • नीतिगत ढाँचे को मज़बूत करना: सरकारों को उर्वरक के अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करने तथा सतत् कृषि प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिये नियमों को लागू करना चाहिये ताकि पारिस्थितिकी तंत्र और लोक स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना: खाद्य वितरण संबंधी असमानताओं को दूर करने, कृषि नवाचारों तक पहुँच में सुधार लाने तथा खाद्य असुरक्षा वाले क्षेत्रों के लिये क्षमता निर्माण पहलों का समर्थन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये ताकि वैश्विक खाद्य चुनौतियों के लिये न्यायसंगत समाधान सुनिश्चित किये जा सकें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कृषि और पर्यावरण पर सिंथेटिक उर्वरकों के प्रभाव की आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों को कम करने के लिये टिकाऊ विकल्पों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार-संचालित है, और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2. अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, वह प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3. सल्फर, जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये एक कच्चा माल है, वह तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. सिक्किम भारत में प्रथम 'जैविक राज्य' है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं?